Monday - 7 April 2025 - 5:17 PM

बिहार में राहुल गाँधी क्या कर रहे हैं ?

डा.उत्कर्ष सिन्हा

राहुल गांधी बिहार में क्या कर रहे हैं। बीते तीन महीनों में यह उनकी बिहार की तीसरी यात्रा है और सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि क्योंकि इस साल के अंत में बिहार में चुनाव होने हैं तो राहुल लगातार दौरे कर रहे हैं।

वैसे तो यह एक सामान्य बात है। लेकिन बिहार, जहां कांग्रेस कई सालों से अपनी जमीन तलाश रही है, ठीक वैसे ही जैसे वह उत्तर प्रदेश या उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में कर रही है, जहाँ कांग्रेस बहुत बुरी हालत में है, तो फिर इस बात को समझना जरुरी हो जाता है कि राहुल अपनी इन यात्राओं से क्या बदलना चाहते हैं ।

राहुल गांधी कहीं जाते हैं तो चर्चा तो होती ही है. फिर राहुल की तीसरी बिहार यात्रा में क्या खास है? और राहुल की नज़र कहाँ है? क्योंकि यह भी तय है कि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन में कांग्रेस छोटे भाई की भूमिका में है,यानी नंबर दो की भूमिका में है. बिहार में कांग्रेस के पास इंडिया एलायंस का नेतृत्व नहीं है.

अब अगर बिहार में कांग्रेस के पास नेतृत्व नहीं है और राहुल गांधी लगातार वहाँ हैं, तो क्या माना जाए? क्या ऐसा है कि जब राहुल बिहार जा रहे हैं, तो वे कांग्रेस की ऐसी ताकत बनाना चाहते हैं, जिससे राष्ट्रीय जनता दल की स्थिति कमज़ोर हो जाए? या फिर वो चाहते हैं कि बिहार में राजद से मजबूत रिश्ता बना रहे लेकिन कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिलें और कांग्रेस की राजनीतिक हैसियत कमज़ोर न रहे .

आज राहुल गांधी बेगू सराय में थे . बेगू सराय वो जगह है जहां से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह आते हैं और फिलवक्त गिरिराज सिंह कट्टर हिंदुत्व के एक पोस्टर ब्वाय हैं. तो बिहार में बेगू सराय में राहुल की मौजूदगी सिर्फ़ मौजूदगी ही नहीं, बल्कि उनकी लम्बी पदयात्रा भी, गिरिराज सिंह के बहाने भाजपा को सीधी चुनौती दे रही है.

कांग्रेस के युवा नेता, कन्हैया कुमार का घर भी बेगू सराय ही है. कन्हैया वहां से 2019 में सीपीएम के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़े और हारे भी हैं.उसके बाद वो दिल्ली चले गए लेकिन कन्हैया कुमार अब बिहार में कांग्रेस के पोस्टर बॉय हैं. बेगू सराय इसलिए भी ख़ास है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से वो जगह रही है जहां कम्युनिस्ट पार्टियां भी बहुत सक्रिय रही हैं. बेगू सराय क्रांति की धरती रही है.

और अब राहुल गांधी उसी बेगू सराय में हैं. तो कांग्रेस को बनवास से निकालने के लिए ये जो यात्रा राहुल गांधी ने की, ये कन्हैया कुमार की यात्रा का ही विस्तार है जो युवाओं पर केन्द्रित है, रोजगार पर केन्द्रित है. कन्हैया कुमार बिहार में लंबे समय से यात्रा कर रहे हैंऔर करीब 13 जिलों तक पहुँच चुकी है और अब इसमें राहुल गांधी भी शामिल हो गए हैं.

राहुल की सक्रियता का मतलब क्या है? राहुल गांधी का लक्ष्य क्या है?

राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस को कैसे मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं? राहुल गांधी बिहार पहुंचे. कन्हैया कुमार की इस यात्रा से पहले ही राहुल ने बिहार को लेकर दो बड़े फैसले लिए. पहला, कांग्रेस के महासचिव मोहन प्रकाश बिहार के प्रभारी थे. वे भी छात्र राजनीति से आते हैं. लेकिन अब उनकी बुजुर्गों की गिनती नेताओं में होती है उन्हें हटा दिया गया अब वहां एक नया चेहरा आया. उसके बाद, प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दलित समुदाय से आने वाले एक विधायक राजेश राम को बिहार कांग्रेस की कमान दी गई। वह एक युवा हैं और दलित समाज से हैं तो अब एक तरफ कन्हैया कुमार हैं, तो दूसरी तरफ राजेश राम हैं ।इन युवाओं के जरिये राहुल बिहार के युवाओं को एक नई ऊर्जा, एक नया संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने मुद्दा भी युवाओं का ही चुना है रोजगार और पलायन। बिहार युवाओं के पलायन के लिए जाना जाता रहा है और इस पर अच्छे शब्दों में भी चर्चा हुई है और बुरे शब्दों में भी।

राहुल ने तीसरा बदलाव बिहार विधान सभा दल के नेता के रूप में किया। बिहार विधायक दल के नेता अब शकील अहमद हैं। शकील अहमद के जरिये अल्पसंख्यको को प्रतिनिधित्व दिया गया है। बिहार की राजनीति का फैसला आबादी का लगभग 37% अति पिछड़ा वर्ग करता है और यह एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. नीतीश कुमार का वोट बैंक भी इसी 37% के अंदर है.

भारतीय राजनीति में नीतीश कुमार की स्थिति इस समय अजीब है. लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि नीतीश बाबू क्या कर रहे हैं. नीतीश बाबू वक्फ बिल के चक्कर में अपनी राजनीतिक साख खो चुके हैं।

राहुल संविधान बचाने की बात कर रहे हैं, यानी दलितों और पिछड़ों पर निशाना।वे नितीश कुमार के भाजपा से हाँथ मिलाने के बाद नाराजगी से बिखरे वोट बैंक पर है. हाल ही में जेडीयू के बड़े अल्पसंख्यक चेहरों को पार्टी से इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

राजनितिक पंडितों का कहना है कि बिहार में बीजेपी ने अपने सहयोगियों को कमज़ोर कर दिया है. क्या नीतीश कुमार की पार्टी उनके नियंत्रण में है? यह एक बड़ा सवाल है. ललन सिंह जैसे राजनेता बीजेपी की भाषा बोल रहे हैं. तो, नीतीश कुमार के पास क्या बचा है? दूसरे नंबर पर चिराग पासवान हैं. चिराग पासवान का परंपरागत वोट बैंक. उनके पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान ने तैयार किया था, पासवान समाज के साथ ही उस इलाके के राजपूत और अल्पसंख्य ही उनके वोट थे तो, फिलहाल चिराग पासवान भी वक्फ बिल मामले में घिरे हुए हैं तो, उनका अल्पसंख्यक वोट भी कट गया. अब, बीजेपी के सहयोगियों के पास भी सिर्फ़ भाजपा के हिंदुत्व का सहारा है. बिहार की धरती पर खास तौर पर चुनाव के समय हमने कभी नहीं देखा कि हिंदुत्व तूफ़ान बनकर आया हो.

ऐसे में अगर राहुल गांधी अल्पसंख्यक और दलितों के घेरे को मजबूत करते हैं और अगर वो जाति के पार रोज़गार के मुद्दे पर, पलायन के मुद्दे पर, विकास के मुद्दे पर युवाओं को जोड़ने में सफल होते हैं तो निश्चित तौर पर राजद के साथ कांग्रेस का गठबंधन मज़बूत होगा.

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जिस तरह से राहुल की यात्राओं में भीड़ आ रही है,जिस तरह से उन्हें समर्थन मिल रहा है वो भी इस बात का संकेत दे रहे हैं कि बिहार में राहुल की अपील बढ़ी है. यानी कांग्रेस की अपील बढ़ी है. ऐसे में राहुल फिलहाल तेजस्वी यादव को चुनौती नहीं दे रहे हैं। लेकिन हां, वह चाहते हैं कि कांग्रेस इतनी मजबूत हो जाए कि भविष्य की राजनीति में उनकी जगह सम्मानजनक हो । और जहां तक चुनाव की बात है, वहां आरजेडी और कांग्रेस एक मजबूत गठबंधन के रूप में सामने आए हैं।

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