Tuesday - 29 October 2024 - 1:39 PM

लोकसभा चुनाव को लेकर मायावती की नई रणनीति क्या है?

लखनऊ: बसपा में लोकसभा क्षेत्र प्रभारी के तौर पर प्रत्याशियों के चेहरे सामने आने लगे हैं। इसकी शुरुआत सहारनपुर से हुई है। यहां पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तस्नीम बानो के पति माजिद अली को लोकसभा क्षेत्र प्रभारी बनाया गया है। माना जा रहा है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी हो सकते हैं और वर्तमान सांसद हाजी फजलुर्रहमान का टिकट कट सकता है।

तस्नीम बानो 2016 में बसपा के टिकट पर जिला पंचायत अध्यक्ष बनी थीं। इसके बाद 2021 में भी माजिद जिला पंचायत का टिकट चाह रहे थे। टिकट न मिलने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी। वह आजाद समाज पार्टी में चले गए थे। अब दो दिन पहले उन्होंने सहारनपुर में एक कार्यक्रम में बसपा जॉइन कर ली है। इसी के साथ पश्चिमी यूपी के प्रभारी शमसुद्दीन राइन ने उनको लोकसभा प्रभारी घोषित किया और समर्थन मांगा।

सपा के संपर्क में

वर्तमान में हाजी फजलुर्रहमान सहारनपुर से बसपा के सांसद हैं। उसी लोकसभा क्षेत्र में माजिद को प्रभारी बनाए जाने का मतलब है कि फजलुर्रहमान का टिकट कट सकता है। सूत्रों का कहना है कि वह पहले से सपा के संपर्क में हैं। यही वजह है कि यहां से बसपा ने माजिद के तौर पर विकल्प तलाश लिया है।

दूसरे सांसद भी तलाश रहे ठिकाना

फजलुर्रहमान के अलावा बसपा के कई और सांसदों को लेकर भी चर्चा है कि वे लोकसभा चुनाव से पहले नया ठिकाना तलाश रहे हैं। जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव पिछले साल राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे। उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और नितिन गडकरी की प्रशंसा की थी। भाजपा से उनकी नजदीकी की चर्चाएं तब और तेज हो गई थीं, जब उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी। इसी तरह बिजनौर के सांसद मलूक नागर भी भाजपा के कई कामों की खुलकर तारीख करते रहे हैं। अम्बेडकरनगर के सांसद रितेश पांडेय की सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात भी चर्चा में रही थी।

क्या है बसपा और उसके सांसदों की चिंता?

बसपा ने 2019 में सपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था। उसे 10 सीटें हासिल हुई थीं। इस बार बसपा प्रमुख अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। 2022 का विस चुनाव बसपा अकेले लड़ी थी और उसे एक ही सीट हासिल हुई थी। ऐसे बसपा के लगातार गिरते जनाधार को लेकर सांसद चिंतित हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर पार्टी अकेले चुनाव लड़ती है तो सीट निकालना मुश्किल हो सकता है। यही वजह है कि वे अपने लिए सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं।

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बसपा नेतृत्व को भी इसका एहसास है। यही वजह है कि उसने पहले से विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि उसने अभी से प्रभारियों का ऐलान करना शुरू कर दिया है। हालांकि, पार्टी में ऐन वक्त पर किसी को भी टिकट दिया जा सकता है। अगर ऐन वक्त पर वर्तमान सांसद पार्टी छोड़कर जाते हैं तो पार्टी के पास प्रभारी के रूप में एक विकल्प होगा।

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