जुबिली स्पेशल डेस्क
किसान आंदोलन अब सरकार के लिए गले की हड्डी बनता दिख रहा है। सरकार इस आंदोलन को किसी भी तरह से खत्म कराना चाहती है लेकिन किसानों ने तय कर लिया है कि जब तक उनकी मांगों को माना नहीं जायेगा तब तक वो पीछे हटने वाले नहीं है।
मोदी सरकार के लिए अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन किसान आंदोलन ने सरकार की नींद उड़ा दी है। कृषि कानून के खिलाफ किसानों का आंदोलन अब और तेज हो गया है।
जानकारी के मुताबिक करीब एक दर्जन किसान नेता सोमवार से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इसके साथ ही ये प्रक्रिया हर रोज रोटेशन के आधार पर चलेगी।
दूसरी ओर सरकार अब भी बातचीत के सहारे इस मामले को सुलझाना चाहती है। उसने एक बार फिर किसानों के सामने फिर से बातचीत का प्रस्ताव रखा है। हालांकि सरकार के इस प्रस्ताव पर किसानों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
इस आंदोलन को लेकर कुछ छोटे नेताओं ने अपनी बात रखकर इस आंदोलन को दूसरी तरफ मोडऩे की कोशिश जरूर की है। उदाहरण के लिए इस आंदोलन को पहले चीन-पाकिस्तान से जोड़ा गया। उससे नहीं बन पड़ा तो इसमें टुकड़े-टुकड़े गैंग की एंट्री कराकर किसान आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश जरूर की गई।
हालांकि किसानों पर इसका रत्ती भर असर नहीं हुआ है। किसान अब भी सड़क पर है और खुलेआम सरकार को चुनौती देते दिखाई पड़ रहे हैं। सरकार इस आंदोलन को कमजोर कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
केंद्र सरकार भले ही ऐसा जाहिर कर रही है कि उसे किसानों के आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ रहा, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं है। तभी तो सरकार आंदोलन की धार को कुंद करने के लिए किसानों के बीच दरार डालने की योजना बनाई है।
सरकार का ध्यान हरियाणा और पंजाब के किसानों पर है। सरकार ने हरियाणा के आंदोलनकारियों का ध्यान बंटाने की रणनीति बनाई है। दरअसल किसानों के इस आंदोलन को मुख्य ताकत पंजाब और हरियाणा से मिल रही है। पूरे आंदोलन को पंजाब के किसान लीड कर रहे हैं। इसीलिए सरकार ने इस जोड़ी में दरार डालने की योजना बनाई है।
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राजनीतिक दलों को ऐसा आरोप रहा है कि जो लोग भी सरकार के खिलाफ होते है उनके खिलाफ जांच एजेंसियों को लगाकर दबाव बनाया जाता है।
किसान आंदोलन में कुछ इसी तरह का माहौल तैयार किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण है पंजाब के आढ़तियों पर आयकर विभाग की छापेमारी। इसे भी इससे ही जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि आढ़तियों ने किसान आंदोलन का समर्थन कर रखा है।
उधर पंजाब के आढ़तियों पर पर आयकर विभाग की छापेमारी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। छापेमारी के विरोध में आढ़तियों ने अनिश्चित काल के लिए राज्य में मंडियों को बंद करने का फैसला किया है। उनका आरोप है कि आयकर के छापे राजनीतिक रूप से प्रेरित थे, क्योंकि कई आढ़तिएं किसानों के आंदोलन को समर्थन दे रहे थे।
आढ़तियों पर पर आयकर विभाग की छापेमारी को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि सरकार किसी भी तरह से किसान आंदोलन को कमजोर करना चाहती है।
इस वजह से जो लोग किसानों का समर्थन कर रहे हैं उनके साथ इसी तरह का बर्ताव किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि किसान आंदोलन को तोडऩे के लिए सरकार साजीश कर रही है लेकिन सरकार को ये मालूम होना चाहिए, उनकी यह कोशिश कामयाब नहीं होगी।
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सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि सरकार में हिम्मत है तो सीधे किसानों से आकर बातचीत करे। उन्होंने बताया कि कृषि मंत्री को मध्य प्रदेश में भारी विरोध का सामना करना पड़ा है।
सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए पहले भी साजिश की गई है। बीजेपी के नेता किसानों को खालिस्तानी, देशद्रोही बताने पर तुले हुए हैं।
इस तरह से किसान आंदोलन को भ्रमित करने की साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि किसान पीछे नहीं हटेंगे। कांग्रेस पार्टी किसानों के हक के लिए लड़ती रहेगी।
किसान आंदोलन में पंजाब के किसान अहम रोल अदा कर रहे हैं। हालांकि हरियाणा के किसान भी इस आंदोलन की नई धार देते दिखायी पड़ रही है। उधर इस आंदोलन से हरियाणा के किसान संगठनों ने दूरी बनाई तो पूरा आंदोलन पंजाब केंद्रित हो कर रह जाएगा। सरकार दूसरे राज्यों के किसान संगठनों को एक- एक कर साध रही है।
इससे यह धारणा बनेगी कि कृषि कानूनों के खिलाफ सिर्फ पंजाब ही है, जबकि दूसरे राज्यों के किसान इन कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। वहीं सरकार इस आंदोलन को पंजाब और हरियाणा से बाहर फैलने देने से रोकना चाहती है। इस काम में भाजपा नेतृत्व ने पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आगाह किया है।
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ऐसे में आंदोलन को कमजोर करने के लिए तमाम तरह की कोशिशे जारी है लेकिन फिलहाल किसानों का आंदोलन अब सरकार के लिए आने वाले समय में और परेशानी पैदा कर सकता है।