Tuesday - 29 October 2024 - 12:47 PM

प्रेम में हम क्या भूल जाते हैं

दिनेश श्रीनेत

दुनिया की हर प्रेम कहानी साहचर्य की कामना या वादे के साथ खत्म होती है। मगर जब वही प्रेम कहानियां अपने वादे की स्वर्णिम रेखा से आगे का सफर तय करती है तो उसमें जाने कौन सा अवसाद और कड़वाहटें समा जाती हैं। याद करें वो फिल्में- ‘गॉन विथ द विंड’ हो, गाइड हो, ‘अभिमान’ या फिर इंग्मर बर्गमैन की ‘समर विद मोनिका’।

या फिर वो सारे उपन्यास ही क्यों न हों, जो प्रेम के ज्वार-भाटे से आगे की लहरों पर सफर तय करते हैं। हम पाते हैं कि उन लहरों पर नाव डगमगाने लगती है। वादे झूठे पड़ने लगते हैं। रूमान का तिलिस्म टूट जाता है। तो क्या प्रेम महज एक मृग मरीचिका है? एक छलना? जिसे पाने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगता। फिर वे प्रेम के कौन से फूल हैं जो जीवन के लंबे अंतराल में खिलते हैं?

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प्रेम टिका रहे, उसकी आद्रता बढ़ती रहे, घटे नहीं- इसे बहुत छोटी-छोटी बातें तय करती हैं। इसमें शायद सबसे पहला है; जिसे हमें प्रेम करते हैं उसे यह महसूस कराना कि हमारे जीवन में उसके होने की अहमियत है। जाहिर सी बात है कि इससे पहले आपको यह समझना होगा कि क्यों वह शख़्स आपके लिए इतना अहम है। इसे समझना बहुत आसान है।

आप अपने प्रियजन के बिना जीवन की कल्पना करें और उस रीतेपन को टटोलें जो उसकी अनुपस्थिति से पैदा हो रहा है।
याद रखें इस सृष्टि के अन्य प्राणियों के मन में यह सवाल नहीं कौंधता कि वे इस धरती पर क्यों आए हैं और उनके जीने का मकसद क्या है। यह सवाल मनुष्य के मन में ही पैदा होता है और इसीलिए वह अपनी सार्थकता दूसरे मनुष्य में तलाशता है। प्रेम उसी सार्थकता को तलाशने का एक नाम है।

आपको बताना होगा कि कोई और आपके जीवन को पूर्ण बनाने में मदद कर रहा है ताकि वह भी अपने जीवन की पूर्णता को समझ सके। इसे जाहिर करने के अनगिनत तरीके हो सकते हैं। छोटी-सी बात का ख्याल रखने से लेकर साथ वक्त गुजारने और उसके मन की आँखों से संसार को देखने तक- कुछ भी हो सकता है।

दूसरा; प्रियजन की निजता और एकांत का सम्मान करना। जब हम प्रेम में होते हैं तो जाने-अनजाने अक्सर यह अपराध करते हैं। हम अपने प्रेम के बदले सामने वालो को गुलाम समझ बैठते हैं। हम यह मान लेते हैं कि हम उसके लिए इतने अहम हैं कि उसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है। हमारा प्रेम इस कदर उमड़ता है कि वह तय करने लगता है कि सामने वाला किस तरह जीएगा। प्रेम किसी अन्य के जीवन की शर्तें तय करने के लिए नहीं है। प्रेम की उस देहरी पर आपको थोड़ा संकोच से ठिठकना होगा जहां से आप किसी अन्य के मन में प्रवेश कर रहे हैं। याद रखिए आपका स्वागत तभी होगा जब उस मेजबान मन की निजता को सम्मान देंगे।

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तीसरी बहुत ही अहम बात हम भूल जाते हैं कि हमने जब किसी से प्रेम किया था तो वह हमें दुनिया में सबसे अनूठा लगा था। इसीलिए तो हमारे पास उसका कोई विकल्प नहीं था। उसके जैसा दुनिया में कोई और था ही नहीं। उसकी इस मौलिकता का पूरी जिंदगी सम्मान भी करना होता है। उसके सामने आइना बनकर उसे उसके खुद के चेहरे की याद दिलाना होता है।

चौथी बात; सामने वाले को अपेक्षाओं के बोझ से लादना सही नहीं। मैंने बचपन में एक रेडियो प्रोग्राम में किसी को कहते सुना था जब आपको किसी की कमियाँ भी सुंदर लगने लगें तो समझ लीजिए कि आपको उस शख़्स से प्रेम हो गया है। पूर्णता एक धोखा है। पूर्णता ही वह मरीचिका है जिसके पीछे हमें दौड़ना सिखाया गया है। इसलिए अधूरेपन का सम्मान करें। साथ मिलकर अपने संसार को विस्तार दें।

कभी आपने गौर किया है कि साथ मिलकर कुछ भी देखना कितना सुंदर होता है? हम हमेशा यही तो चाहते हैं। तभी तो हम खूबसूरत फूल, जंगल में भागते हिरन या चाँद को देखकर उछल पड़ते हैं, “वो देखो! कितना सुंदर…” अगर इतना ही सुंदर है तो अकेले क्यों नहीं देखते। किसी और के देखने से उसकी सुंदरता बढ़ जाती है क्या? हां, बढ़ जाती है।

मेरी प्रिय गायिका सुमन कल्याणपुर ने एक गीत गाया है, “मन से मन को राह होती है / सब कहते हैं”। इसे लिखा है अख़्तर रूमानी ने। दूर से आती घंटियों जैसे मधुर स्वर में जो बोल हमें मिलते हैं वो बहुत सरल है, लेकिन कितनी गहरी बात कह जाते हैं। “मन से मन को राह होती है / सब कहते हैं / जैसे वो रहते हैं हममें / या हम भी उनमें रहते हैं”।

तो पांचवीं और आखिरी बात यही है कि जब हम कहते हैं कि “देखो, कितना सुंदर…” तो मन से मन के बीच एक रास्ता खुल जाता है। हमें पता चलता है कि हम तो हमेशा से एक दूसरे के मन के भीतर रहते आए हैं। खिड़कियां-दरवाजे बंद रखेंगे तो कभी जानेंगे कैसे कि मन के भीतर था क्या? प्रेम अगर कुछ है तो बस यही है। यही सब कुछ उस ढाई आखर में समाया हुआ है।

(लेखक पत्रकार हैं , यह लेख उनके फ़ेसबुक वाल से साभार)

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