जुबिली न्यूज डेस्क
अरविंद केजरीवाल सरकार ने शुक्रवार के दिल्ली उच्च न्यायालय में गरीब बच्चों को दिए जाने वाले खाद्य सुरक्षा भत्तों के संबंध में एक हलफनामा दाखिल किया, जिस पर अदालत ने सरकार को खरी-खोटी सुनाया। अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वह खासतौर पर जब मिड-डे मील की बात है तो किसी को अपनी आंखों में धूल नहीं झोंकने देगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस प्रतीक जालान की पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार ने दावा किया था कि वह मिड-डे मील योजना के तहत हर महीने प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये का भुगतान करती है, पर सरकार ने इस साल मार्च में खुद के हलफनामे में कहा है कि उसने अपने साथ पंजीकृत 8.21 लाख बच्चों को करीब सात करोड़ रुपये का भुगतान किया, जो प्रति बच्चा 100 रुपये से भी कम है।
दिल्ली सरकार ने पीठ को बताया था कि सरकार ने अप्रैल से जून के बीच कुल 8.25 लाख बच्चों में से करीब पांच लाख बच्चों को कुल करीब 27 करोड़ रुपये का भुगतान किया। करीब दो लाख मामलों पर प्रक्र्रिया चल रही है और 75,000 अन्य मामलों में बैंक विवरण बेमेल हैं।
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सरकार के इस हलफनामे को देखने के बाद पीठ ने कहा कि अगर योजना के तहत केवल पांच लाख बच्चों को भुगतान किया गया है तो प्रत्येक बच्चे को 540 रुपये देने के लिए अप्रैल से जून तक हर महीने करीब 27 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना चाहिए।
इतना ही नहीं पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि, ‘हलफनामा उलझाने वाला लगता है। यह जान-बूझकर गुमराह करने वाला बनाया गया है। यह हलफनामा हमारी आंखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहा है। जहां तक गरीब बच्चों के मिड-डे मील की बात है तो हम निश्चित रूप से किसी को भी हमारी आंखों में धूल नहीं झोंकने देंगे।’
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील जवाहर राजा ने विसंगतियों को समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि मार्च महीने के बाद कक्षा आठवीं के अधिकतर बच्चों ने स्कूल छोड़ दिए होंगे और अनेक मामलों में बैंकों का ब्योरा उपलब्ध आंकड़ों से नहीं मिला। राजा ने अदालत से विसंगतियों का कारण पता लगाने के लिए और समय मांगा।
उनकी मांग पर अदालत ने दिल्ली सरकार को विसंगतियों के बारे में समझाने के लिए समय तो दिया, लेकिन सरकार के वकील राजा की दलीलों को स्वीकार नहीं किया। इस पर पीठ ने कहा, ‘आपको अपना खुद का हलफनामा पढऩा चाहिए। आप बिना तैयारी के दलीलें रख रहे हैं। आप क्या दलील दे रहे हैं, सोच लीजिए।’
मालूम हो कि बीते महीने आरटीआई से जानकारी मिली थी कि दिल्ली सरकार ने अप्रैल से जून तक किसी बच्चे को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं दिया।
वहीं, मार्च महीने में मिड-डे मील के तहत पके हुए भोजन के एवज में छात्रों के खाते में कुछ राशि डाली गई, लेकिन ये सिर्फ भोजन पकाने के लिए निर्धारित राशि से भी कम है। इसके अलावा ये धनराशि भी सभी पात्र लाभार्थियों को नहीं दी गई है।
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अदालत ने यह बातें एनजीओ महिला एकता मंच की एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। एनजीओ ने दिल्ली सरकार को कोविड-19 के लॉकडाउन में स्कूलों के बंद रहने के दौरान पात्र बच्चों को पका हुआ मिड-डे मील या खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
वहीं इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि उसने वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मध्याह्न भोजन योजना के तहत केंद्रीय सहायता के तौर पर दिल्ली सरकार को 27 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जारी की थी।
वहीं राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गई जानकारी के अनुसार मार्च महीने में उच्च प्राथमिक स्तर (छठी से आठवीं क्लास) के 429,027 छात्रों को 77.99 रुपये की दर से कुल 3.34 करोड़ रुपये का खाद्य सुरक्षा भत्ता देने का प्रस्ताव रखा गया था और प्राथमिक स्तर (एक से पांचवीं क्लास) के 136,094 छात्रों को 94.60 रुपये की दर से कुल 1.28 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया था।