जुबिली स्पेशल डेस्क
मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। हालांकि राज्य सरकार इसको काबू करने की पूरी कोशिश कर रही है लेकिन मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी हिंसा के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। ऐसे में मणिपुर में हिंसा को लेकर अब यूरोपीय संसद में बहस देखने को मिल रही है। \
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अब इस मामले को उठाया जा रहा है। भारत ने इसका विरोध जरूर किया है। यूरोपीय संसद इस मामले में बहस होने पर भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ के अनुसार इंडिया ने इसे अपना आतंरिक मामला बताते हुए यूरोपीय संसद की मणिपुर हिंसा पर ‘अर्जेंट डिबेट’ की योजना को ख़ारिज किया है।
बता दें कि यूरोपीय संसद बुधवार को होने वाली बहस का एजेंडा मणिपुर की हिंसा की निंदा और यूरोपियन यूनियन को भारत सरकार से बातचीत करने का निर्देश देना था।
यूरोपीय संसद की माने तो वो चाहता है कि इस पूरे मामले पर आला अधिकारी भारत सरकार से बात करें और मामले को सुलझाने के लिए कहें।
‘द हिंदू’ के मुताबिक़ भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने नई दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि भारत ने इस मुद्दे पर यूरोपीय संसद के सांसदों को इस मुद्दे को उठाने से रोकने की कोशिश की थी। भारत ने इस मुद्दे पर अपना नज़रिया उनके सामने रखा था, इसके बावजूद वो ये मुद्दा उठा रहे हैं।
क्वात्रा ने ‘द हिंदू’ के एक सवाल के जवाब में कहा, कि ये पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। हमें पता है कि यूरोपीय संसद में क्या चल रहा है। हमने उनसे इस बारे में बात की है. लेकिन हम ये भी बता दें कि ये पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है।
’’ वहीं इस दौरान उन्होंने एक मणिपुरी अख़बार में छपे इस ख़बर के बारे में बताने से साफ इनकार कर दिया कि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर लॉबिइंग के लिए ब्रसेल्स में एक कंपनी ‘अल्बेर एंड जिजर’ को हायर किया है।
‘द हिंदू’ ने लिखा है कि बुधवार को यूरोपीय संसद में कम से कम छह से आठ राजनीतिक दल इस मुद्दे पर बहस के बाद वोटिंग में हिस्सा लेंगे। अख़बार ने आगे बताया है कि यूरोपीय संसद में पेश किए प्रस्तावों पर भारतीय जनता पार्टी पर हेट स्पीच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है।
इसमें कहा गया है भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार विभाजनकारी जातीय नीतियों को लागू कर रही है। कुछ दलों ने अफस्पा, यूपीपीए और एफसीआरए नियमों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। कुल मिलाकर इस पूरे मामले पर यूरोपीय संसद काफी गम्भीर नजर आ रही है और जल्द से जल्द इस मामले को सुलझाना चाहता है।