जुबिली न्यूज डेस्क
देश की जानी-मानी वरिष्ठ पत्रकार व लेखिका तवलीन सिंह ने कहा है कि जब भविष्य के इतिहासकार इन 12 महीनों की पड़ताल करेंगे तो वो इसे भारत के नफरत के साल के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।
तवलीन सिंह ने यह बातें अपने एक लेख में कहा है। अपने लेख में उन्होंने कहा है कि स्वतंत्रता दिवस हमेशा मेरे लिए बीते हुए साल की तरफ देखने का समय होता है। यह समीक्षा इस साल अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने 15 अगस्त 2019 के बाद से कई नाटकीय बदलाव देखे हैं। बड़े दुख की बात है कि उस तरह नहीं जो मुझे गर्व महसूस कराते हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह वो वर्ष भी है जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद उस काम को पूरा किया जिसे आरएसएस विभाजन का ‘अधूरा काम’ काम कहता है। यह विडबंना है कि पाकिस्तान के नेता भी इस अभिव्यक्ति का प्रयोग करते हैं मगर उनके लिए इसका मतलब सिर्फ पूर्व राज्य जम्मू कश्मीर को निष्पक्ष या बेईमानी से अपने अधिकार में लेना है।
अपने लेख में तवलीन सिंह ने हाल ही में कर्नाटक के बेंगलुरु में हुई हिंसा पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने लिखा है कि बेंगलुरु हिंसा से सवाल उठता है कि किसी ने भी उस हिंसा के बारे में नहीं पूछा जिसमें हम लोगों ने जिहादी भीड़ को पुलिस थानों पर हमला करते, पुलिस गाडिय़ों और सार्वजनिक संपत्ति को आग के हवाले करते देखा।
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उन्होंने कहा कि हिंसा कथित तौर पर सोशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया(SDPI) द्वारा की गई थी। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) की राजनीतिक शाखा है। पीएफआई खुले तौर पर जिहादी संगठन हैं जो अल-कायदा और तालिबान के विश्व दुष्टिकोरण को साझा करता है। सवाल उठता है कि पिछले छह सालों में इस संगठन पर किसी ने प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया।
वह कहती हैं कि याद रखें कि ये पीएफआई ही था जो दस साल पहले केरल में न्यूमेन कॉलेज के प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काटने का जिम्मेदार था, क्योंकि उनका मानना था कि प्रोफेसर ने इस्लाम के पैगंबर का अपमान किया। इस संगठन के विचार और विचारधारा भारत के मूल्यों के खिलाफ हैं।
तवलीन सिंह आगे लिखती हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएफआई जैसे जिहादी संगठनों के खिलाफ सख्त कदम उठाया होता तो अधिकतर मुस्लिम उनका समर्थन करते।