जुबिली न्यूज डेस्क
भारतीय हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री की हिंदी से अंग्रेजी में अनुवादित किए गए उपन्यास ‘टॉम ऑफ सैंड’ को प्रतिष्ठित 2022 इंटरनेशनल बुकर प्राइज से सम्मानित किया गया है।
मूल रूप से यह उपन्यास हिंदी ‘रेत समाधि’ के नाम के शीर्षक से लिखा गया है, जिसे अंग्रेजी में डेजी रॉकवेल ने अनुवाद किया है।
हिंदी में अंतरराष्ट्रीय बुकर तक पहुंचने की अब तक अधूरी रही कहानी को गीतांजलि श्री ने मुकम्मल कर दिया है।
इंटरनेशनल बुकर प्राइज हर साल अंग्रेजी में अनुवादित और इंग्लैंड/आयरलैंड में छपी किसी एक अंतरराष्ट्रीय किताब को दिया जाता है। इस प्राइज की शुरूआत साल 2005 में हुई थी।
बुकर प्राइज स्वीकार करने के लिए दिए गए अपने भाषण में गीतांजलि श्री ने कहा, ” मैंने कभी अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने की कल्पना नहीं की थी। मैंने कभी सोचा ही नहीं कि ये मैं कर सकती हूं। ये एक बड़ा पुरस्कार है। मैं हैरान, प्रसन्न , सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं।”
गीतांजलि श्री ने कहा, ” मैं और ये किताब दक्षिण एशियाई भाषाओं में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा से जुड़े हैं। विश्व साहित्य इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों से परिचित होकर समृद्ध होगा।”
वहीं बुकर पुरस्कार देने वाली संस्था ने कहा, “टूंब ऑफ सैंड अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा में मूल रूप से लिखी गई पहली किताब है और हिंदी से अनुवादित पहला उपन्यास। टूंब ऑफ सैंड उत्तर भारत की कहानी है जो एक 80 वर्षीय महिला के जीवन पर आधारित है। ये उपन्यास मूल होने के साथ-साथ धर्म, देशों और जेंडर की सरहदों के विनाशकारी असर पर टिप्पणी है।”
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राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘रेत समाधि’ हिंदी की पहली ऐसी रचना है जो न केवल इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार की लॉन्गलिस्ट और शॉर्टलिस्ट तक पहुंची बल्कि अंतरराष्ट्रीय बुकर जीती भी।
रेत समाधि का अंग्रेजी अनुवाद मशहूर अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है। 50,000 पाउंड यानी करीब 50 लाख रुपये के साहित्यिक पुरस्कार के लिये 5 अन्य किताबों से इसकी प्रतिस्पर्धा हुई। पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर-बराबर बांटी जाएगी।
निर्णायक मंडल ने गीतांजलि श्री के इस उपन्यास को ‘अनूठा’ बताया है। यह उपन्यास ठहरकर पढ़े जाने वाला उपन्यास है जिसकी एक कथा के धागे से कई सारे धागे बंधे हुए हैं। 80 साल की एक दादी है जो बिस्तर से उठना नहीं चाहती और जब उठती है तो सब कुछ नया हो जाता है। यहां तक कि दादी भी नयी। वो सरहद को निरर्थक बना देती है।
कौन हैं गीतांजलि श्री और डेजी रॉकवेल?
पिछले तीन दशक से गीतांजलि श्री लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं। 1990 के दशक में उनका पहला उपन्यास ‘माई’ और फिर ‘हमारा शहर उस बरस’ प्रकाशित हुए थे। इसके बाद ‘तिरोहित’ आया और फिर आया ‘खाली जगह’।
गीतांजलि श्री के कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हैं। वो स्त्री मन में, समाज के भीतर, समाज की परतों में बहुत धीरे धीरे दाखिल होती हैं और बहुत संभलकर उन्हें खोलती और समझती हैं।
गीताजंलि श्री की रचनाओं के अनुवाद भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मल सहित कई भाषाओं में हो चुका है। उनका उपन्यास ‘माई’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘क्रॉसवर्ड अवॉर्ड’ के लिए भी नामित हुआ था।
डेजी रॉकवेल ने रेत समाधि का अनुवाद ‘टूंब ऑफ सैंड’ नाम से किया है जिसे ‘टिल्टेड एक्सिस’ ने प्रकाशित किया है। अमेरिका में रहने वाली डेजी हिंदी साहित्य समेत कई भाषाओं और उसके साहित्य पर पकड़ रखती हैं।
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डेजी ने अपनी पीएचडी उपेंद्रनाथ अश्क के उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ पर की है। उन्होंने उपेंद्रनाथ अश्क से लेकर खादीजा मस्तूर, भीष्म साहनी, उषा प्रियंवदा और कृष्णा सोबती के उपन्यासों पर का अनुवाद किया है।
मीडिया से बातचीत में गीतांजलि श्री ने कहा कि उन्हें बुकर में नामित होने की दूर-दूर तक कोई आशा नहीं थी। वो कहती है कि मैं चुपचाप और एकांत में रहने वाली लेखिका हूं।