न्यूज डेस्क
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को बजट पेश किया। बजट को लेकर आम लोगों के साथ-साथ आर्थिक जानकार भी खुश नहीं है। जानकारों के मुताबिक भारत को मंदी के दौर से बाहर निकालने में शायद ही निर्मला सीतारमण के बजट से कोई मदद मिल पायेगी।
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाने वाला भारत मंदी के दौर से गुजर रहा है। इस बजट से सबको बहुत उम्मीदे थी कि सरकार मंदी से उबराने के लिए कुछ खास कदम उठायेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वित्त मंत्री सीतारमण के बजट पर आर्थिक जानकारों ने कहा कि सरकार ने अपने खर्च में मामूली इजाफा ही किया है, इसके अलावा इनकम टैक्स की कम कटौती भी बहुत ज्यादा उत्साह बढ़ाने वाली नहीं है।
जानकारों के मुताबिक सरकार को 2020-21 में अपने वित्तीय घाटे के लक्ष्य को भी तय करने में मुश्किल आ सकती है। ऐसे में उसे वित्तीय संस्थानों और सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने पर मिलने वाली करीब 30 अरब डॉलर की रकम पर ही निर्भर रहना पड़ सकता है।
गौरतलब है कि शनिवार को पेश किए गए बजट में सरकार ने वित्तीय घाटे के लक्ष्य को कुछ कम किया है। ऐसे में उसके पास करीब 15 अरब डॉलर की रकम अतिरिक्त तौर पर खर्च करने के लिए उपलब्ध होगी।
इस राशि को सरकार मुख्य तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि पर खर्च करना चाहेगी। इसके अलावा निजीकरण के जरिए भी सरकार बड़ी रकम जुटाना चाहेगी।
जानकारों और इंडस्ट्री के लीडर्स के अनुसार इस बजट से लंबे समय में ग्रोथ को कुछ मदद मिलेगी, लेकिन अर्थव्यवस्था में तत्काल इससे कोई सुधार आना मुश्किल दिखता है।
बताते चले कि 31 मार्च को समाप्त हो रहे मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक ग्रोथ के महज 5 फीसदी या उससे भी कम रहने का अनुमान जताया गया है, जो बीते 11 सालों में सबसे कम है। पहले ही संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर दबाव झेल रही सरकार को अब आर्थिक मुद्दे पर भी चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
नोमुरा से जुड़ी अर्थशास्त्री सोनल वर्मा ने कहा कि हम इस बजट को ग्रोथ और महंगाई के लिहाज से न्यूट्रल मानते हैं और बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं लगती। इसके अलावा रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा कि बजट में सरकार ने ग्रोथ में कमी की चुनौती को स्वीकार किया है और यह सुस्ती लंबी चल सकती है।
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