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डंके की चोट पर : आप किससे डर गए आडवाणी जी ?

शबाहत हुसैन विजेता

6 दिसम्बर 1992 भारतीय इतिहास का काला दिन. आज़ाद हिन्दुस्तान की वह तारीख जिस दिन सेक्युलरिज्म का कत्ल कर दिया गया. जिस सेक्युलरिज्म को हिन्दुस्तान के संविधान की आत्मा कहा जाता है. बाबरी मस्जिद ढहाकर उस आत्मा पर सबसे बड़ा हमला किया गया था. सेक्युलरिज्म पर हुए उस हमले के सबसे बड़े ज़िम्मेदार आप थे आडवाणी जी. सिर्फ आप.

सीबीआई कोर्ट में आपने खुद को बेगुनाह बताया. अयोध्या में उस दिन की वीडियो को छेड़छाड़ वाला वीडियो बता दिया. 7 दिसम्बर 92 के अखबारों को आपने झूठा बता दिया. आपने यहाँ तक कह दिया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का संकल्प ही नहीं लिया था.

आप 93 साल के हैं. 2014 से लगातार राजनीति के हाशिये पर हैं. अपने शिष्य से लगातार तिरस्कृत होते रहे हैं. जिस दौर में आपके भीतर खूब सियासत भरी थी उस दौर में आपको मर्जी की सीट से चुनाव नहीं लड़ने दिया गया. चुनाव जीत जाने के बाद भी आपको रिटायर कर दिया गया. कोई आपकी राय लेने नहीं आता. कोई आपके दरवाज़े पर नहीं आता. कुर्सियां आपके लिए ख़्वाब बन गईं. फिर भी न जाने क्यों आप सीबीआई से इस कदर डर गए?

अयोध्या ने ही आपकी पार्टी को सियासी पार्टी बनाया था. अयोध्या ने ही आपकी पार्टी की सरकार बनवाई थी. अपनी पार्टी को खड़ा करने के लिए ही तो आप सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ पर सवार होकर रवाना हुए थे. आपका तब सिर्फ एक ही मकसद था कि किसी तरह से राम मंदिर का रास्ता तैयार हो जाए. उस रास्ते को बनाते हुए ही तो आप अयोध्या के सफ़र पर निकले थे. अयोध्या ने ही तो आपको इतना बड़ा नेता बना दिया था कि जब नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद आपकी अनदेखी हुई तो हर किसी को बुरा लगा. लेकिन आपने तो अपनी जननायक वाली छवि को एक सेकेण्ड में तोड़कर रख दिया. आपसे यह उम्मीद नहीं थी.

सीबीआई कोर्ट में आपने कहा कि आप बेगुनाह हैं. जब बाबरी मस्जिद गिरी आप मौके पर थे ही नहीं. आपको अपनी सुरक्षा अधिकारी अंजू गुप्ता याद हैं या नहीं. जी हाँ अंजू गुप्ता आईपीएस. 1990 बैच की यह तेज़ तर्रार महिला अधिकारी लखनऊ की एसपी सिटी रही हैं. यह आपकी सुरक्षा अधिकारी थी. इस समय वह अपर पुलिस महानिदेशक हैं. आप अयोध्या में नहीं थे तो आपकी सुरक्षा अधिकारी अयोध्या में क्या कर रही थीं.

इसी सीबीआई कोर्ट में आपकी सुरक्षा अधिकारी ने खुद कहा है कि आपने भड़काऊ भाषण दिया था. अंजू गुप्ता के ऑफिशियल बयान में कहा गया है अयोध्या में 6 दिसम्बर 92 को मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, कलराज मिश्र, अशोक सिंघल और प्रमोद महाजन मौजूद थे. अंजू गुप्ता ने अपने बयान में कहा था कि आडवाणी जी ने अपने समर्थकों से कहा कि मंदिर उसी जगह पर बनेगा. यह बात बाबरी मस्जिद से सिर्फ डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर राम कथा कुंज में कही गई थी. इसी भाषण के बाद भीड़ बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ गई थी.

आडवाणी जी, जब आप अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा मास्टर प्लान ही भूल गए तो फिर आपको सबसे कम उम्र का कारसेवक संतोष कैसे याद होगा. वही संतोष दुबे जिसे आपने 300 कारसेवकों के साथ 500 साल की गुलामी के निशान मिटाने को कहा था. इस संतोष को आपने तीन दिसम्बर को अयोध्या में बुलाकर बात की थी. आपने संतोष से कहा था कि मुझे 300 ऐसे युवा चाहिए जो राम के लिए अपनी जान दे सकें. आपने कहा था कि 6 दिसम्बर के बाद बाबरी का यह ढांचा नहीं चाहिए. तुम्हें मस्जिद गिराने के लिए जो चाहिए वह मिलेगा राज्य में हमारी सरकार है. इस भाषा को तकनीकी भाषा में फिरौती बोलते हैं आडवाणी जी.

आपकी तरह यह संतोष भी सीबीआई की लिस्ट में है. इससे भी सवाल-जवाब हुए हैं. आपने संतोष के कहने पर बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए हथौड़े, बेलचा, लोहे के नुकीले राड, रस्सियाँ और ड्रिल मशीन की व्यवस्था करवाई थी. इन्हीं सामानों की मदद से पांच घंटे के भीतर इतनी बड़ी मस्जिद गिरा दी गई थी.

आडवाणी जी, सिर्फ 28 साल पुरानी घटना आप भूल गए हैं. लेकिन आपको सुप्रीम कोर्ट का ताज़ा फैसला तो याद ही होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मन्दिर गिराकर मस्जिद बनाने के सबूत नहीं मिले. ठीक यही बात 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियाँ रखी जाने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू को तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पन्त ने भी बताई थी कि ऐसे कोई सबूत नहीं हैं कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई लेकिन मूर्तियाँ रखे जाने के बाद माहौल बिगड़ रहा है. प्रधानमन्त्री नेहरू के निर्देश पर मस्जिद में ताला जड़कर हिन्दू-मुसलमानों दोनों को दूर कर दिया गया.

शाहबानो केस के बाद बैकफुट पर आयी राजीव गांधी की सरकार ने ताला खोलकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की थी. राजीव गांधी को लगा था कि शाहबानो केस से मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लग रहा है तो हिन्दू तुष्टिकरण कर सबकी ज़बान बंद कर दी जाए.

आप भूल सकते हैं मगर इतिहास सब याद रखता है. आप यह कहकर बच नहीं सकते कि वीडियो और अखबार झूठे हैं. देश में करोड़ों लोगों को आपकी रथयात्रा, आपकी गिरफ्तारी, आपके भाषण सब याद हैं. करोड़ों लोगों की याददाश्त आप जैसी नहीं है.

आडवाणी जी, उमा भारती बहुत बेहतर हैं जिन्होंने कहा कि मन्दिर बनना चाहिए. मस्जिद तोड़ने में भागीदार होने की जो सजा मिलेगी हँसते हुए सहूँगी.

सीबीआई से आप डर तो नहीं सकते. 92 में तो सिर्फ राज्य में सरकार थी. आज तो केन्द्र में भी आपकी सरकार है. हो सकता है कि इस सरकार में आपको मेहनताना नहीं मिला, छह साल से आपको हाशिये पर रखा गया. आपका चेला आपका गुरु बन गया तो आप इतने दुखी हो गए कि छह दिसम्बर भी भूल गए.

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सीबीआई अदालत में आपको सच बोलना चाहिए था. आपका सच आपको जननायक बनाए रखता. 93 साल की उम्र में आपको सजा का डर भी नहीं था. गुलामी का प्रतीक ढहाने पर आपको गर्व होना चाहिए था. सीमा पर घुसपैठियों का खून बहाने वाले सैनिकों को वीरता के चक्र मिलते हैं. आपने तो गुलामी का प्रतीक मिटाया था. फिर डर क्यों गए आडवाणी जी. आप तो नई पीढ़ी की प्रेरणा का स्रोत थे फिर आप डर क्यों गए. आपका यह डर 6 दिसम्बर 92 को हुए सेक्युलरिज्म के कत्ल से ज्यादा डरावना है. जननायकों के मुंह से न झूठ अच्छा लगता है न उनके चेहरे पर डर की लकीरें ही अच्छी होती हैं. इस पर सोचियेगा ज़रूर. पूरा देश यही सोच रहा है.

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