जुबिली न्यूज डेस्क
अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत के दौरे पर आ रहे हैं। वह दो दिन भारत में बिताएंगे। बाइडेन सरकार के किसी भी शीर्ष सदस्य की पहली भारत यात्रा होने के कारण इस यात्रा पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
लॉयड ऑस्टिन अपने दो दिनों की इस यात्रा में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और अन्य नेताओं से मुलाकात करेंगे।
दरअसल अमेरिकी रक्षा मंत्री ऑस्टिन की भारत यात्रा को अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन की विदेश नीति के तहत भारत-अमेरिकी रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।
पिछले सप्ताह ही जो बाइडेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क्वाड समूह के देशों की वर्चुअल बैठक में बातचीत की थी।
बताया जा रहा है कि अमेरिकी रक्षा मंत्री ऑस्टिन, भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के सभी पहलुओं पर विस्तार से बातचीत करेंगे। इसमें हिंद-प्रशांत प्रांत में चीन की बढ़ती शक्ति के सामने संतुलन बनाने की रणनीति भी शामिल है।
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ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इन दोनों मंत्रियों के बीच अफगानिस्तान के हालात पर भी चर्चा होगी।
मालूम हो कि अफगानिस्तान से अमेरिका अपने सैनिकों को निकाल लेने के लिए अफगान सरकार और तालिबान के बीच समझौता कराने की कोशिश कर रहा है, लेकिन देश में हिंसा का चक्र रूकने का नाम नहीं ले रहा है।
जानकारों के अनुसार अगर वहां अस्थिरता और गहराती है तो उसका भारत पर भी सीधा असर पड़ेगा। लेकिन अमेरिका के राजनीतिक गलियारों में भारत-अमेरिकी रिश्तों को लेकर और भी चिंताएं हैं।
ऑस्टिन की यात्रा शुरू होने से ठीक पहले अमेरिकी संसद के ऊपरी सदन सीनेट की शक्तिशाली विदेशी रिश्ते समिति के अध्यक्ष बॉब मेनेंडेज ने उन्हें एक पत्र लिख कर दो प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया।
उन्होंने लिखा कि भारत अगर रूस से एस-400 मिसाइल खरीदने की अपनी योजना पर आगे बढ़ता है तो यह अमेरिका के हितों के खिलाफ होगा।
मेनेंडेज का तो यहां तक मानना है कि अगर भारत-रूस के बीच यह समझौता पूरा हो जाता है तो अमेरिका को भारत के खिलाफ प्रतिबंध लागू करने पड़ेगे।
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उन्होंने रक्षा मंत्री ऑस्टिन से कहा कि वो इन चुनौतियों को भारतीय पक्ष के सामने स्पष्ट तरीके से रखें। इसके अलावा मेनेंडेज ने ऑस्टिन से यह भी कहा कि उन्हें “भारत सरकार के साथ चर्चा में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को लेकर चिंताओं को भी उठाना चाहिए।”
उन्होंने लिखा कि भारत और अमेरिका की “साझेदारी सबसे मजबूत तब ही होती है जब दोनों पक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास दिखाएं और भारत सरकार उन मूल्यों से दूर जाती दिख रही है।”
मेनेंडेज ने इस संबंध में भारत में चल रहे किसानों के आंदोलन के खिलाफ केंद्र सरकार के कड़े कदम, पत्रकारों और सरकार के आलोचकों को डराने, बीते सालों में मुस्लिम-विरोधी भावना का फैलना, नागरिकता संशोधन कानून का लाया जाना जैसे कदमों का उदाहरण दिया।
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मेनेंडेज ने भारत में राजनीतिक वार्ताओं को दबाना, कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाना, राजनेताओं को गिरफ्तार किया जाना और राजनीतिक विपक्ष की आवाज को राजद्रोह के कानून से शांत करने की कोशिश करने जैसे कदमों को भी रेखांकित किया।
उन्होंने ऑस्टिन को याद दिलाया कि इन्हीं कारणों से अमेरिकी मानवाधिकार समूह ‘फ्रीडम हाउस’ ने अपने ताजा सर्वेक्षण में भारत के “स्वतंत्र” दर्जे को वापस ले लिया है।