Thursday - 7 November 2024 - 12:09 PM

बंगाल विधानसभा चुनाव को कितना प्रभावित करेंगे ‘भाईजान’

जुबिली न्यूज डेस्क

पश्चिम बंगाल का सियासी पारा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ज्यादातर विश्लेषक आने वाले विधानसभा चुनाव को तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले के तौर पर देख रहे हैं, तो वहीं अन्य दलों के बीच बनते गठबंधन भी राज्य में लोगों की नजर में आने लगे हैं।

वैसे तो कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन सबसे प्रमुख है लेकिन अब एक और राजनीतिक फ्रंट राज्य में सुर्खियां बटोर रहा है। इस फ्रंट को बनाने वाला कोई नेता नहीं, बल्कि अजमेर शरीफ के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी सूफी मजार (बंगाल के टालटोला स्थित फुरुफुरा शरीफ) के प्रमुख पीरजादा अब्बास सिद्दीकी हैं।

ऐसी चर्चा है कि 34 साल के सिद्दीकी बंगाल चुनाव के लिए आज एक फ्रंट का ऐलान कर सकते हैं। सिद्दीकी के अनुसार, उनका गठबंधन 10 दलों के साथ होगा और वे 60 से 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

सिद्दीकी की मानें तो उनके गठबंधन में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी शामिल हो सकती है, जो कि काफी पहले ही बंगाल में चुनाव लडऩे की मंशा जता चुकी है। चुनाव के मद्देनजर ही ओवैसी सिद्दकी 3 जनवरी को मुलाकात भी कर चुके हैं।

बंगाल में भाईजान के नाम से लोकप्रिय हो रहे पीरजादा सिद्दीकी फिलहाल पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं। वे खुद को मुस्लिमों, दलितों और आदिवासियों की आवाज तक करार दे रहे हैं। साथ ही उनके हमले मुख्य तौर पर सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस और भाजपा पर केंद्रित रहे हैं।

सिद्दीकी का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस की वजह से ही बंगाल में बीजेपी का उदय हुआ है। खास बात यह है कि अगर यह राजनीतिक फ्रंट बनता है, तो सिद्दीकी के 26 साल के भाई पीरजादा नौशाद चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे। नौशाद इतिहास में मास्टर डिग्री रखने के साथ बीएड भी कर चुके हैं।

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राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सिद्दीकी अगर अपनी पार्टी चुनाव में उतारते हैं, तो वे मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा ले जाएंगे। दक्षिण बंगाल में मुस्लिमों के यह वोट अब तक तृणमूल को मिलते थे, जबकि उत्तर बंगाल में यह कांग्रेस की झोली में जाते रहे थे। यानी दोनों ही तरफ ध्रुवीकरण की वजह से तृणमूल और कांग्रेस को बड़ा नुकसान होने का अनुमान है।

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अपने राजनीतिक मंसूबों पर सिद्दीकी ने कहा, “सालों के कांग्रेस राज और फिर सीपीएम और टीएमसी के बंगाल में शासन ने मुस्लिमों और गरीबों के लिए कुछ नहीं किया। मैं सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं बल्कि यहां के गरीब आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लिए भी बात कर रहा हूं। पहले एनआरसी और फिर सीएए की वजह से ही मैंने धार्मिक उपदेश देना बंद किया और राजनीतिक मंच बनाने के लिए काम करना शुरू किया। हमें यकीन है कि हमें अपने लोगों को विधानसभा भेजना होगा, ताकि सही मुद्दों को उठाया जा सके और गलत को रोका जाए।”

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