न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में पिछले कई दिनों से जन जीवन अस्त–व्यस्त है। कई महीनों से लगातार हो रही राजनीतिक हिंसा और अब डॉक्टरों की हड़ताल के बाद से बंगाल की जनता त्रस्त नजर आ रही है। राज्य का माहौल दिन ब दिन बिगड़ता ही जा रहा है और एक अनकहा सवाल गूंज रहा है कि पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र है या लहूतंत्र।
कभी आजादी के दीवानों की धमक से दमकने वाला पश्चिम बंगाल आज सत्ता की प्रायोजित हिंसा से लाल हुए जा रहा है। कभी टीएमसी के किसी कार्यकर्ता की हत्या तो कभी बीजेपी के किसी कार्यकर्ता के घर मौत का मातम। कभी मुर्शिदाबाद, कभी बांकुरा, कभी बीरभूम, कभी मालदा, कभी नाडिया कभी 24 परगना। पश्चिम बंगाल बेगुनाहों की मौत और गुनहगारों के उत्पात का घात अपने सीने पर लिए सिसक रहा है। लेकिन मुख्यमंत्री की ममता नहीं दिखाई दे रही है।
कई बुद्धिजीवियों की माने तो प्रदेश में ममता राज नहीं जंगल राज हो गया है। उनका मानना है कि ममता का रवैया ठीक वैसा ही है जैसा वाम मोर्चे की कार्यशैली थी, जिसके बाद उनका पतन हुआ। मां, माटी और मानुष का नारा देने वाली ममता अब अतिवादी रवैया अपनाने लगी हैं।
बंगाल में जिस तरह से ममता का विरोध शुरू हो गया है उससे साफ जाहिर है कि वे अपना आधार खो रही हैं। कई लोग तो यह भी कहने लगें हैं कि ममता से अच्छा तो ज्योति बाबू का राज था। इससे ममता समझ सकती हैं कि जनता की विपुल शुभेच्छा जो उनकी कमाई थी, वह कितनी जल्दी उन्होंने गंवा दी है।
हिंसा का हवनकुंड
पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद शुरू हुई हिंसा का दायरा बढ़ता जा रहा है। ममता बनर्जी ने आधिकारिक रूप से कहा है कि अब तक इस हिंसा में 10 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। तृणमूल के नेताओं का कहना है कि सबसे ज़्यादा उनके लोग मारे गए हैं जबकि बीजेपी का कहना है कि उनके कार्यकर्ता ज़्यादा मारे गए हैं और घायल हुए हैं।
डॉक्टरों की हड़ताल
पिछले पांच दिनों से लगातार जारी डॉक्टरों की हड़ताल के टूटने के आसार नहीं दिख रहे। मुख्यमंत्री झुकने को तैयार नहीं दिख रही है और वहीं डॉक्टर भी अपनी मांगों को लेकर अड़े हैं। इन दोनों के बीच के गतिरोध में हज़ारों मरीज़ तबाह हो रहे हैं।
बंगला भाषा
इस बीच जब पश्चिम बंगाल जल रहा है तभी ममता का भाषा प्रेम उमड़ पड़ा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में रहने वालों को बांग्ला भाषा में बोलना सीखना होगा। ममता ने कहा कि हमें बांग्ला को आगे लाना होगा। ममता बनर्जी ने कहा कि जब हम दिल्ली जाते हैं तो हम हिन्दी में बोलते हैं, जब हम पंजाब जाते हैं तो पंजाबी में बोलते हैं। मैं भी ऐसा करती हूं। जब मैं तमिलनाडु जाती हूं तो मैं तमिल भाषा नहीं जानती लेकिन मैं कुछ शब्द जानती हूं। इसलिए इसी तरह से अगर आप बंगाल आते हैं तो आपको बांग्ला बोलनी होगी। हम यह नहीं होने देंगे कि बाहर से लोग आएं और बंगालियों को पीट दें।
ममता का भाषा प्रेम ठीक वैसा लगा जैसा महाराष्ट्र में शिवसेना का मराठी प्रेम रहा है। हालांकि, शिवसेना का उत्तर भारतीयों के साथ व्यवहार जगजाहिर है। अगर वैसी स्थिति बंगाल में भी उत्पन्न हुई तो राज्य में हिंसा में कम होने के बजाए बढ़ जाएगा।
हालांकि, पश्चिम बंगाल की हिंसा पर केंद्र सरकार ने ममता सरकार से जवाब मांगा है कि हिंसा के दोषियों पर राज्य सरकार ने क्या कार्रवाई की है। साथ ही ये भी पूछा है कि राजनीतिक हत्या की घटनाओं की जांच में क्या प्रगति हुई। इसके अलावा लगातार हो रही हिंसा को रोकने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं। केंद्र के अलावा जनता भी इस बात जवाब मांग रही है कि आखिर कब तक पश्चिम बंगाल जलता रहेगा।