शबाहत हुसैन विजेता
वो खुद को ड्रैगन कहता है. टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में खुद को सुपर पॉवर मानता है. संयुक्त राष्ट्र संघ में उसकी वीटो पॉवर के बड़े मायने हैं. वह चाहता है कि हाफ़िज़ सईद को आतंकवादी नहीं कहा जाए तो इंटरनेशनल लेबल पर आतंकवादी की शक्ल में पहचान के बावजूद उसके साथ आतंकवादी वाला व्यवहार नहीं होता है. इलेक्ट्रोनिक सामान का वह बादशाह है. दुनिया के ज़्यादातर स्मार्ट फोन पर उसके देश का नाम लिखा है. सुपर पॉवर अमेरिका के सामने भी वो झुककर नहीं तनकर बात करता है. पूरी दुनिया के नाम उसका स्पष्ट सन्देश है कि उसकी सेनाएं बहुत ताकतवर हैं. जो उससे टकराएगा वो चूर-चूर हो जाएगा.
जी हाँ आप बिलकुल सही समझे हम चीन की बात कर रहे हैं. चीन की टेक्नोलॉजी के हम भी कायल रहे हैं. उसकी फौजें और हथियार देखकर हमें भी उसकी ताकत का अंदाजा है. हमने भी चीन के बने सामान पर अपनी मेहनत के काफी पैसे लगाए हैं. चीन हमारा पड़ोसी मुल्क है और हमें हमेशा से यही सिखाया गया कि पड़ोसी के साथ अच्छे रिश्ते रखने चाहिए.
हमें पता है कि 1962 में चीन ने हमारे देश के साथ जंग की थी. हम यह भी जानते हैं कि जंग किसी मसले का हल नहीं है. इसी वजह से भारत ने हर मुमकिन कोशिश की कि जंग से बचकर चला जाए लेकिन हमें नहीं भूलता वह शेर, हम अम्न चाहते हैं मगर जंग के खिलाफ, गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही.
दुश्मन से जंग हो तो दुश्मन की पूरी सच्चाई परखना भी ज़रूरी होता है. चीन की ताकत की असल वजह क्या है? हम जंग नहीं चाहते लेकिन जो पड़ोसी पिछले 76 साल से सिर्फ अपने पड़ोसियों की ज़मीनें हड़पने का काम ही करता आ रहा हो उसे कब तक इग्नोर किया जाए. चीन हमारी 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर काबिज़ है. हमारी ही ज़मीन पर काबिज़ चीन हमीं को आँखें दिखा रहा है.
चीन ने सिर्फ भारत ही नहीं 23 देशों की ज़मीनों पर कब्ज़ा किया हुआ है. चीन की सीमा से 14 देशों की सीमा छूती है. उसने हर देश की जमीन को हथियाया है. सुनने वालों को ताज्जुब लग सकता है मगर सच यही है कि चीन का 43 फीसदी हिस्सा कब्ज़ियाया हुआ है. चीन ने 23 देशों की कुल 41 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा किया हुआ है.
दूसरे देशों की ज़मीनों पर काबिज़ होकर उसे अपने नक़्शे में शामिल करते जाना और दूसरे देशों की सीमाओं में अपने सैनिकों की चहलकदमी करवाते रहने का सिलसिला जारी रखते चीन को देखकर वाहिद अली वाहिद की चंद लाइनें ज़ेहन में उभरती हैं :- दर्द कहाँ तक पाला जाए, युद्ध कहाँ तक टाला जाये. तू भी राणा का वंशज, फेंक जहाँ तक भाला जाए. दोनों तरफ लिखा हो भारत, सिक्का वही उछाला जाए.
लद्दाख में अपनी सीमा की रक्षा करते 20 भारतीय जवानों को चीन के सैनिकों ने पीट-पीटकर शहीद किया है. जवानों की शहादत से भारत के हर नागरिक में गुस्सा है. ऐसे हालात में भी भारत सरकार के ढुलमुल रवैये को देखते हुए ज़रूरी लगता है कि लॉ ट्रोब यूनीवर्सिटी की एशिया सुरक्षा रिपोर्ट को देश के सामने रखा जाये. यह रिपोर्ट इस बात को साफ़ करती है कि पिछले 76 साल में चीन ने दुनिया के 23 देशों की ज़मीनों पर कब्ज़ा कर अपने देश का क्षेत्रफल दोगुना कर लिया है लेकिन न उसका लालच खत्म हुआ है और न ही सीमा विस्तार रुका है.
14 हज़ार 380 वर्ग किलोमीटर का अक्साई चीन भारत का हिस्सा है. पीओके के 5180 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर भी चीन काबिज़ है. पीओके की ज़मीन को उसने पाकिस्तान से लिया है. इसी वजह से चीन नहीं चाहता कि पीओके भारत में वापस मिले. यही वजह है कि आतंकी हाफ़िज़ सईद का अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर चीन ही वकील है. संयुक्त राष्ट्र संघ में सईद के मुद्दे पर चीन ने कई बार अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल किया है.
चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा किया है. तिब्बत का विस्तार भारत तक कर लिया है. तुर्किस्तान की 16.55 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया है. मंगोलिया की 11.83 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर चीन काबिज़ है. मकाऊ और हांगकांग पर चीन का कब्ज़ा है. ताइवान को भी चीन अपना मानता है. जापान के आठ दीपों को हड़पने की कोशिश में लगातार लगा है. रूस की 52 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर कब्ज़े की कोशिश चीन पिछले 50 साल से कर रहा है. ब्रूनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और सिंगापुर की ज़मीनों को भी चीन हड़पना चाहता है. भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को तोड़कर लद्दाख को नया राज्य बनाया तो चीन ने लद्दाख में 60 किलोमीटर अन्दर तक अपनी सेना को भेज दिया. भारतीय सैनिकों ने इसी का विरोध किया तो बातचीत के लिए बुलाकर 20 भारतीय सैनिकों को शहीद कर दिया.
सैनिकों की शहादत से देश के हर नागरिक में रोष है लेकिन भारत सरकार चीन को माकूल जवाब देने को तैयार नहीं दिखती. यही वजह है कि भारत में रहने वाले बौद्ध भिक्षु और सांस्कृतिक रक्षा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुमित रत्न थेरा की इतनी हिम्मत पड़ी कि उसने कहा है कि भारत और चीन में युद्ध हो तो बौद्ध भिक्षु चीन की मदद करें. यही वजह है कि भारत में नौकरियों के लिए अपने नागरिकों को भेजने वाले गरीब देश नेपाल की इतनी हिम्मत पड़ी कि पहले उसने कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए बनायी गई 80 किलोमीटर लम्बी सड़क के कुछ हिस्से को अपना बता दिया. नया नक्शा बनाकर उसे संसद में पास करवा लिया और अब बिहार सीमा पर चल रहे निर्माण को नेपाल बार्डर फ़ोर्स ने रुकवा दिया.
हमारी ज़मीनें पड़ोसी कब्ज़ा कर लेगा, हमारे सैनिकों को शहीद कर देगा और हम चुप बैठे रहेंगे. विपक्ष की बात को सरकार गंभीरता से नहीं लेगी, सैनिकों की शहादत के मूल्य को नहीं समझेगी तो पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसी हमें आँख दिखाते रहेंगे. राहुल गांधी ने आज जिस सरेंडर शब्द का इस्तेमाल किया है उस पर राजनीति की नहीं मंथन की ज़रूरत है. हम अपनी ज़मीन और अपने जवानों की हिफाजत भी नहीं कर सकते तो किस आधार पर और किस अधिकार से दुनिया के सामने सर उठाकर चलने का दम रखेंगे.
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दस हाइड एन्ड सीक खेल रहे थे..
हमारा पड़ोसी तो इतना भला है कि हमारे साथ झूला झूलता है, और हमारे लिये सड़कें ,बुलेट प्रूफ जैकेट ही नहीं, योग करने की मैट्स तक भिजवाता है..
बहस से कोई फ़ायदा नहीं दोस्तों,
अपनी अपनी बुलेट उठाओ और लद्दाख् निकल लो,
अपने सैनिकों से गले मिल कर उन्हें भरोसा देना भी ज़रूरी है..कि सिर्फ तुम ही नहीं इस झूठ को हम सब झेलते है..,
किसे पता था 2020 में ..
“सच की तलाश” का ये मतलब भी होना था
कि अपनी ही घाटी और सीमा की तलाश में हम निकलें