जुबिली न्यूज डेस्क
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को जहां भाजपा, आरएएस पर सवाल उठाया तो वहीं बसपा प्रमुख मायावती को लेकर एक बड़ा खुलासा भी किया।
राहुल गांधी ने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बसपा संग गठबंधन करना चाहती थी। मायावती को मुख्यमंत्री पद का ऑफर भी दिया गया था, लेकिन उन्होंने इसका कोई जवाब तक नहीं दिया।
कांग्रेस सांसद ने कहा कि मायावती ने इस बार चुनाव लड़ा ही नहीं है। हमारी तरफ से उन्हें गठबंधन का प्रस्ताव दिया गया था। हमने तो यहां तक कहा था कि वे मुख्यमंत्री बन सकती हैं, लेकिन उन्होंने हमारे प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं दिया।
राहुल गांधी ने कहा कि दरअसल बसपा प्रमुख मायावती ईडी, सीबीआई के डर से अब चुनाव लडऩा नहीं चाहती हैं।
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राहुल ने कहा, हम काशीराम का काफी सम्मान करते हैं। उन्होंने दलित को सशक्त किया था। कांग्रेस कमजोर हुई है, लेकिन ये मुद्दा नहीं है। दलित का सशक्त होना जरूरी है, लेकिन मायावती कहती हैं कि वे नहीं लड़ेंगी। रास्ता एकदम खुला है, लेकिन सीबीआई, ईडी, पेगासस की वजह से वे लडऩा नहीं चाहती हैं।
#WATCH Mayawatiji didn’t fight elections, we sent her the message to form an alliance but she didn’t respond. Kanshi Ram Ji raised voice of Dalits in UP, though it affected Congress. This time she didn’t fight for Dalit voices because there are CBI, ED & Pegasus: Rahul Gandhi pic.twitter.com/Jf7nvHAec0
— ANI (@ANI) April 9, 2022
चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी का आया ये बयान काफई मायने रखता है। दरअसल सवाल तो ये भी है कि क्या अगर चुनाव से पहले बसपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन होता, क्या जमीन पर स्थिति बदलती, क्या दोनों पार्टियों का प्रदर्शन ज्यादा बेहतर हो पाता?
वैसे यूपी चुनाव में कांग्रेस और बसपा अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ी थीं। दोनों ही पार्टियों का इस चुनाव में सूपड़ा साफ हुआ है। एक ओर कांग्रेस दो सीट जीत पाई तो बसपा ने तो अपना सबसे खराब प्रदर्शन करते हुए सिर्फ एक सीट जीती है।
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चुनावी नतीजों के बाद बसपा प्रमुख ने जरूर मुसलमानों का जिक्र किया, ये भी कह दिया कि उनका वोट एकतरफा सपा को चला गया, लेकिन तब मायावती ने इस प्रस्ताव के बारे में कोई बात नहीं की थी। अब राहुल गांधी ने इस मुद्दे को उठाकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज कर दी है।
कहां चूकी बसपा?
उत्तर प्रदेश चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन की बात करें तो इस बार पार्टी को 10 फीसदी कम वोट मिले थे। बसपा का वोट शेयर महज 12 फीसदी रह गया था जो 2017 में 22 फीसदी था। इस सब के ऊपर मायावती का कोर वोटर जाटव भी बीजेपी के साथ चला गया था। ऐसे में ना मुस्लिमों का वोट मिला, ना ब्राह्मण साथ आए और ना ही जाटव का समर्थन मिला।