रूबी सरकार
उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा सहरिया जनजाति बाहुल्य गांव ‘शेखर’ है, जो झांसी मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बसा है। शहर से सटे होने के बावजूद यह गांव बहुत ही पिछड़ा है।
यहां तक कि झांसी जिले इन सहरियाओं को आदिवासी का दर्जा भी नहीं मिला है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी मात्र 698 और घर 132 है। महिलाओं की आबादी लगभग 50 फीसदी और महिला शिक्षा दर 15 फीसदी है। हालांकि यहां कुल शिक्षित 36 फीसदी ही है। षिक्षादर कम होने से यहां कामकाजी लोगों की आबादी भी मात्र 30 फीसदी है । अशिक्षित और पिछड़ेपन के कारण यहां के आदिवासी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते।
इस गांव में पानी का इंतजाम महिलाओं के हिस्से में आता है। चाहे पानी कई किलो मीटर दूर से ही क्यों न लाना पड़े। पुरुषवादी सोच यहां इतना हावी है, कि कभी भी वे पानी भरने जैसा काम नहीं करते और यह हाड़ तोड़ श्रम महिलाओं को करना पड़ता है। यहां महिलाओं की पानी की समस्या देखकर परमार्थ समाज सेवा संस्थान ने पानी पर महिलाओं की पहली हकदारी परियोजना के तहत वर्ष 2011 में यहां काम करना शुरू किया। जिसमें स्वयं सेवकों ने महिलाओं को पानी का उपयोग, जल संरक्षण, प्रबंधन और तालाबों का गहरीकरण करने का प्रशि क्षण दिया। इसे आगे बढ़ाते हुए जल-जन जोड़ों राष्ट्रीय अभियान ने पहल की और पानी पंचायत बनाया।
हर पानी पंचायत में 15 से 25 महिलाओं को स्थान दिया। प्रत्येक पानी पंचायत से पानी व स्वच्छता के अधिकार, प्राकृतिक जल प्रबंधन के साथ ही महिलाओं का पानी के साथ जुड़ाव बढ़ाने के लिये इनमें से दो महिलाओं को जल सहेली बनाया। जल सहेली उन्हीं महिलाओ को बनाया जाता है, जिनमें जल संरक्षण की समझ के साथ गांव का विकास करने की ललक हो साथ ही उनमें नेतृत्व क्षमता भी हो। 60 वर्षीय रामवती बताती हैं, कि उसकी चौथी पीढ़ी है, जो पानी की दिक्कतों से जूझ रही थीं।
एक किलोमीटर दूर एक तालाब है, जहां से पीने के लिए पानी लाना पड़ता था। सुबह के लिए रात को ही लाना पड़ता था, क्योंकि सुबह घर का सारा काम करना होता था। रास्ता जंगल से होकर गुजरता था, लिहाजा महिलाओं समूह में पानी लेने जाया करती थीं। रति भी रामवती की बातों को दोहराती हुई कहती है, कि सुबह 2 घण्टे और शाम को 2 घण्टे पानी के पीछे बरबाद होता था।
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रति ने कहा, गांव की परेशानी को देखकर 3 साल पहले जल-जन जोड़ों अभियान के स्वयं सेवकों ने यहां पानी पंचायत बनाया और गांव की महिलाओं को इकट्ठा कर उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू किया। आज रति और रामवती की तरह पुना, रामकली, पार्वती बेटीबाई, कलिया, सरजूबाई, दस्सो और हेमती जैसी कई महिलाएं पानी पंचायत की सदस्य है। इन महिलाओं ने केवल जल संरक्षण, प्रबंधन ही नहीं, तालाबों के गहरीकरण करने की तकनीक भी सीखीं। पानी के बहाने ये महिलाएं इतनी जागरूक हुईं, कि कलेक्टर, कमिश्नर को पत्र लिखकर अपनी समस्याएं भी बताने लगीं। यहां तक कि इन लोगों ने अपने गांव में 30 परिवारों के बीच एक-एक हैण्डपम्प भी लगवा लिये। आज की गांव की महिलाएं इतनी सशक्त हैं, कि वह सरकारी योजनाओं का लाभ न मिलने पर उसके लिए विकास खण्ड जाकर धरना और घेराव भी करती हैं। चाहे वह पेंशन, राशन, शौचालय और प्रधनमंत्री आवास की ही बात क्यों न हो उन्हें सब पता है।
सहरिया जनजाति के लिए विशेष विकास योजनाओं की जरूरत
शेखर गांव एक संकटग्रस्त गांव है। शहर के पास हाने के बावजूद सरकार की योजनाओं का यहां प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण सहरिया आदिवासी, जिन्हें झांसी जिले आदिवासी नहीं माना गया। उनके लिए खास तौर पर एक विकास योजना बने।
वर्तमान में पानी को लेकर दो पहलू हैं, मांग और आपूर्ति। मध्यप्रदेश में यह काम लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के पास है , जबकि उत्तर प्रदेश के संदर्भ में यह कामजल निगम करता है। दूसरा पहलू भू-जल भरण की है, जिसमें तालाबों का गहरीकरण, चेक डेम, स्टॉप डेम आदि शामिल है। खेत-तालाब बनाने का काम कृषि विभाग और गांव में तालाबों का काम ग्रामीण एवं पंचायत विभाग करता है। चेकडेम बनाने का काम जलशक्ति मंत्रालय के सहयोग से होता है। इस तरह तीन विभागों द्वारा भू-जल भरण का काम काम किया जाता है।
परमार्थ संस्था जल साक्षरता को लेकर एक व्यापक मुहीम चला रहा है। जिसके अंतर्गत सरकार से लेकर समाज को जगाने और पानी पंचायत के माध्यम से जल सहेलियों को जल संरक्षण, प्रबंधन, तालाबों का गहरीकरण और हैण्डपम्प के रख-रखाव शामिल हैं।
परमार्थ का प्रयास है, कि गांव की महिलाओं का समग्र विकास हो। उन्हें इस तरह सषक्त किया जाये, कि वह स्वयं अपनी समस्याएं सरकार तक पहुंचाने में सक्षम हों। परमार्थ चाहता है, कि हर गांव में पानी की एक कार्ययोजना बने। उस कार्ययोजना में हर गांव में पानी के उपलब्ध साधन क्या-क्या है, गांव में पानी की कितनी आवश्यकता है। इन सबका अध्ययन कर उसका रेखांकन किया जायेगा।
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