डॉ अभिनदंन सिंह
भइया आजकल मैं भी चौकीदार स्कीम भाजपा ने चलाई है। तो सबै लोग बैलाय कै वही मा पिल परे। नए लौण्डे सोचिन की पांच साल ना सही लेकिन जात टाइम मोदी कुछ तो रोजगार कै जुगाड़ कई दिहिन। ससुर हमउ का लाग की चलो बड़े पैमाने मा चौकीदारन कै भर्ती हो गए अब कम से कम मुहल्ले मा दो चार तो होई जइहैं।
देखा तो बगल के गप्पू के हाँथ मा मैं भी चौकीदार की मुहर लाग रा हय। हम कहा कि चलौ अब मुहल्ले और आस पड़ोस की बहिन बेटी भी सुरक्षित हुई गयी। काहे की गप्पू कै गैंग पहिले गुंडा रा हय।
हम मारे खुशी के यार गप्पू से पूछ लिहिन की भईया तनखाह तो बढ़िया होई और केन्द्र की आय तो सुविधा भी बहुत मिली। सुना बहुत लोगन कै भर्ती भई है। टीवी बाले एक करोड़ के आस पास बतावत रहैं। चलो जात जात मोदी अपन वादा का आधा पूरा कई दिहिन।
भइया अब ड्यूटी मन से करिव हमारे द्वारे मा आपन ड्यूटी लगवाए लेव। काहे से अब हर मुहल्ले मा कम से कम पाँच कै भर्ती तव हई है। यार देखत का हन, वही ” मैं भी चौकीदार की मुहर लगाये दुइ लौड़े कुछ का दौड़ाये रहै। हाँथ मा जूता भी लेहे रहैं।
हम गप्पू से पूछा भइया ई का है, यार गप्पू भक्क से रो दिहिस। हमार दिमाक सन्न की साला आदमी रोजगार मिलै मा खुशी मनावा थै लेकिन ई का कोई जूता लिए दौराये है और कोई रो रहा है। हम गप्पू से पूछा कि यार रो ना आपन बात बताओ ई सब का लफड़ा है।
गप्पू हिचिकी मारैं लाग और बताइस की, भइया चार साल से बी टेक करे घूमत रहन रोजगार की तलाश मा। अचानक तीन चार दिन पहिले ई चौकीदार वाली बात पता चली। तो हम सोचा कि चलो यही सही रोजगार तो मिली। गांव मा कुछ लोग ” मैं भी चैकीदार की मुहर दनादन ठोकत रा हय और भीड़ कै पिलंपिला परी राहय। कुछ लई दई कै मुहर हमउ लगवाए आईन। सोचा चलो अब रोजगार पक्का होई गा। लेकिन बाद मा पता चला कि ये भाजपा का चुनाव जीतो अभियान आय।
हम तो सब रोजगार के धोखे मा मुहर लगवाई अब टीवी वाले वही बेराजगार की संख्या का भाजपा की शोशल मीडिया कै जीत दिखा रहे। अब मुहल्ले मा आदमी चौकीदार कहिके चिड़ा और रहा है। अब बताओ हम रोयी ना तो का करी। हम माथा पीट लिया और सोचा कि कैसे भाजपा युवाओं की बेरोजगारी का फायदा उठाईस। अब वही बेरोजगारों की संख्या जेहिका जवाब मोदी कबहू ना दये पाये अब उनका चुनाव जीत का साधन बन रही। गप्पू और अपने देश के मोहर लगाए युवा का देख कै अब भइया हमहू का रोय आवा। अब सब अपने हाथ से मुहर चुटावैं मा लाग हैं। जै राम जी की अब कोउ धोखे मा ना रहव , जो फिर से मुहर पिलवाय कै रूआमे का हुए जाय।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)