राजीव ओझा
जो लड़ेगा वो जीतेगा, जो डरेगा वो भरेगा। जब समाज में चारों तरफ दरिन्दे घूम रहें हो तो उनका दमन ही उनसे बचने का रास्ता है। लेकिन इसके लिए हर बेटी और महिला को दामिनी बनन होगा। पुलिस के भरोसे न रहें बेटियाँ, पुलिस आपकी रक्षा नहीं करेगी। उत्तर प्रदेश में पुलिस बल की भारी कमी है। बाकी बचे हुए पुलिस बल की ताकत वीईपी को बचाने और भौकालियों का जलवा बनाने में खर्च हो रही है। उत्तर प्रदेश में लालबत्ती वाले वहां तो बहुत कम हो गए लेकिन लालबत्ती कल्चर बरकरार है। इसके बावजूद ऐसे पुलिस कर्मी और अधिकारी बचे हुए हैं जो भारी दबाव के बावजूद अपने काम को बेहतर ढंग से अंजाम दे रहे हैं।
अच्छी पुलिस खराब पुलिस
हमारा समाज दो तरह की पुलिसिंग के बीच सर्वाइव कर रहा है। एक जो वारदात के बाद सिर्फ ज्ञान देती है, दूसरी जो वारदात से पहले उसे रोकने के लिए काम को अंजाम देती है। ज्ञानी पुलिस का ताजा उदाहरण हैदराबाद की पुलिस है। हैदराबाद में वेटिनरी लेडी डॉक्टर के साथ हुई दरिंदगी और हत्या के बाद पुलिस ने जो गाइड लाइन्स जारी की उसमें यह सन्देश छिपा है कि बेटियाँ अपनी सुरक्षा खुद करें, पुलिस के भरोसे न रहें। दरिंदों से बचना है तो पुलिस की ये गाइडलाइन्स फॉलो करें- बेटियां घर से बता कर निकलें, हर पल अपनी लोकेशन घर वालों को बताएं, कैब या ऑटो में जाएं तो घर बात करने का नाटक करें। जी यह गाइड लाइन्स हैदराबाद पुलिस ने जारी की है।
लेकिन इसके थी उलटा कुछ पुलिस वाले ऐसे भी हैं जो अति संवेदनशील होते हैं और छोटी छोटी बातों का भी संज्ञान लेते हैं। इसका ताजा उदाहरण हैं उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एसपी जो रात दस बजे एक होटल के सामने वहां का इंतज़ार कर रही एक लड़की को देख कर रुक जाते हैं। लड़की उसी होटल की कर्मचारी थी और ड्यूटी ख़त्म कर घर के लिए पब्लिक ट्रासपोर्ट का इन्तजार कर रही थी।
एसपी लड़की के साथ होटल आते हैं और मैंनेजर को सख्त चेतावनी देते हैं की देर रात महिला कर्मचारी को सुरक्षित पहुँचाने की जिम्मेदारी होटल मैनेजमेंट की है और यह अनिवार्य है।
वीडियो के लिए लिंक पर क्लिक करें-
हरदोई के पुलिस कप्तान की तरह हर जिले की पुलिस संवेदनशील बने तो बेटियों के प्रति हिंसा में आयेगी कमी pic.twitter.com/0EpMDGJMEi
— Rajiv Ojha (@rajivojha9) December 4, 2019
ये तो हुई पुलिस की बात, बेटियों को निडर बनाने और आत्मरक्षा के गुर सिखाने के लिए कुछ संस्थाएं भी काम कर रहीं हैं। लखनऊ की ऐसे ही एक संस्था है रेड ब्रिगेड। संस्था की आगुआ हैं उषा विश्वकर्मा।
उनके नेतृत्व में 4 दिसम्बर की शाम से लखनऊ के कालिदास मार्ग पर रेड ब्रिगेड की लड़कियां सड़को पर रात गुजारेंगी क्योंकि बेटियां अब नहीं डरेंगी, वो दरिंदों को सबक सिखायेंगी।
वीडियो के लिए लिंक पर क्लिक करें-
लखनऊ की रेड ब्रिगेड ने छेड़ा बेटियों की सुरक्षा के लिए उजाला अभियान pic.twitter.com/32m2jNWXoc
— Rajiv Ojha (@rajivojha9) December 4, 2019
रेड ब्रिगेड का रात का उजाला अभियान हैदराबाद और संभल में हुई दरिंदगी के विरोध में चलाया जा रहा है। अभियान के माध्यम से संदेश दिया जायेगा कि लडकियां हिम्मत न हारें, लड़कियों के लिए रात बेखौफ हों। अभियान के माध्यम से सरकार से मांग की जाएगी कि असुरक्षित महसूस करने वाली लड़कियों और महिलाओं को माँग पर पुलिस सुरक्षा उपलब्ध करी जाए और सभी तरह के शिक्षा संस्थानों के छात्राओं के लिए आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण को अनिवार्य किया जाए।
जो हुआ उसे बार बार बताने की जरूरत नहीं। पुलिस मदद करती है लेकिन हमेशा नहीं। उत्तर प्रदेश में तो पुलिस बल की बहुत कमी है। जो हैं उनमें बहुत बड़ी संख्या वीआईपी की सुरक्षा, एस्कॉर्ट और उनकी खिदमत में लगी रहती है। वाहनों से लालबत्ती हट गई लेकिन लालबत्ती कल्चर जस का तस है। इस लालबत्ती कल्चर के चलते पुलिस समय पर मदद करने नहीं पहुँच पाती। लेकिन रेड ब्रिगेड बेटियों निडर बनाने की मुहिम में जुटी हुई है। इस अभियान की अगुआ हैं उषा विश्वकर्मा। उनके नेतृत्व में 4 दिसम्बर से लखनऊ के कालिदास मार्ग पर रेड ब्रिगेड की लड़कियां रातें गुजरेंगी सड़को पर क्योंकि अब बेटियों को डरने का मन नही है। बेटियां अब नहीं डरेंगी, रात में घूमेंगी और दरिंदों को सबक सिखायेंगी।
उत्तर प्रदेश में बेटियां सबसे ज्यादा असुरक्षित
उत्तर प्रदेश में बेटियां सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े हैं। इनमें मध्य प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश आता है, जहां 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। इसमें सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि 2012 में हुए निर्भया काण्ड के बाद क़ानून में बदलाव और आरोपियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी अपराधियों में इसका कोई खौफ नहीं है और रेप की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई।
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में 27 नवम्बर को जो हुआ वह 7 साल पहले हुए निर्भया काण्ड जैसा या कह लें उससे भी खौफनाक है। यह भी चिंता की बात है कि जब बेटियाँ रेप या हत्या जैसे किसी अपराध का शिकार होती हैं तो राजनीति होने लगती और समाज हिन्दू-मुसलमान के खेमों में बंट जाता है। हैदराबाद कांड के बाद अब शहर शहर प्रदर्शन हो रहें है। कुछ दिन लोग आंदोलित होंगे, रैलियाँ होंगी, प्रदर्शन होंगे, कैंडल मार्च निकाले जायेंगे और कुछ दिन बाद सब ठंडा।
अपना युद्ध खुद लड़ना होगा
जो समाज में उबाल निर्भया या हैदराबाद की बेटी के साथ हुई दरिंदगी के बाद दिखा वो हर बेटी या महिला के साथ होने वाली छोटी- बड़ी हिंसा के खिलाफ दिखना चाहिए। निर्भया कांड के सात साल बाद बेटियां पहले से ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहीं हैं। इसीलिए रेड ब्रिगेड लखनऊ में हर साल दिसंबर में रात का उजाला’ अभियान चलाता है।
पुलिस पता नहीं कब चेतेगी, फिलहाल हर बेटी को बोलना होगा, अपना युद्ध खुद लड़ना होगा। क्योंकि पुलिस सुरक्षा नहीं देती सुरक्षा की गाइड लाइन्स जरी करती है। हैदराबाद पुलिस ने तो यही किया। बेटियां घर से बता कर निकलें, हर पल अपनी लोकेशन घर वालों को बताएं, कैब या ऑटो में जाएं तो घर बात करने का नाटक करें। यह गाइड लाइन्स हैदराबाद पुलिस ने जारी की है। यह नाटक नहीं असलियत है पुलिस की।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
यह भी पढ़ें : संस्कृत को खतरा फिरोज खान से नहीं “पाखंडियों” से
यह भी पढ़ें : अयोध्या पर अब राजनीति क्यों !
यह भी पढ़ें : सोशल मीडिया सिर्फ मजा लेने के लिए नहीं
यह भी पढ़ें : “टाइगर” अभी जिन्दा है
यह भी पढ़ें : नर्क का दरिया है और तैर के जाना है !
यह भी पढ़ें : अब भारत के नए नक़्शे से पाक बेचैन
यह भी पढ़ें : आखिर क्यों यह जर्मन गोसेविका भारत छोड़ने को थी तैयार
यह भी पढ़ें : इस गंदी चड्ढी में ऐसा क्या था जिसने साबित की बगदादी की मौत