स्पेशल डेस्क
कोरोना को रोकने के लिए सरकार लॉकडाउन को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। कोरोना और लॉकडाउन गरीबों के लिए लगातार परेशानी बन रहा है। आलम तो यह है कि मजदूरों के सब्र का बांध टूटने लगा है।
सरकार गरीबों की परेशानी को समझने का दावा कर रही है और सरकारी मदद देने का भरोसा जता रही है लेकिन देश में कई हिस्से ऐसे हैं जहां प्रवासी मजदूरों के लिए सरकारी मदद नहीं पहुंची है।
इस वजह से बेबस और लाचार मजदूर अकेले पैदल चलने पर मजबूर है। इस कारण से रास्ते में सडक़ हादसे में उनकी मौत तक हो रही है। मजदूर अपने घर जाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर है। लॉकडाउन में हजारों मजदूरों की बेबसी और लाचारी अब किसी से भी छिपी नहीं है।
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अभी हाल में जब लॉकडाउन के बीच एक बच्चा पैदल चलने से इतना थक चुका था कि सूटकेस पर सो गया और उसकी मां बेचारी बेबस होकर उस सूटकेस को सडक़ पर घसीटने पर मजबूर हो गई।
अब एक और मजदूर की हैरान करने वाली तस्वीर सामने आ रही है। ये मजदूर अपने घर लौटने के लिए कोई भी परेशानी उठाने को तैयार था। उसने अपने बच्चों को कंधे पर टांग कर घर लौटने पर मजबूर होना पड़ा है।
पूरा मामला ओडिशा के मयूरभांज जिले का बताया जा रहा है। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले रूपया टुडू अपने परिवार के साथ अपने घर लौटने के लिए 160 किलोमीटर पैदल चला है। इस दौरान उसने अपने दोनों बच्चों को कंधे पर टांगकर ले जाने पर मजबूर होना पड़ा है। यह मजदूर ईंट भट्ठे पर काम करने के लिए जाजपुर जिले के पनीकोइली गए थे लेकिन लॉकडान के बाद काम बंद हो गया और इस वजह से उनके पास घर लौटने के आलावा कोई चारा नहीं बचा था और उन्होंने अपने परिवार सहित पैदल सफर तय किया।
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हालांकि इस दौरान उनकी सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि उनके दो बेटे काफी छोटे हैं और वो पैदल नहीं चल सकते हैं। इसके बाद उन्होंने उन्होंने दो बड़े बर्तनों को बांस के डंडे से रस्सी से रस्सी से बांधा और इसमें अपने बेटों को इसपर रखकर अपने कंधे पर लटका कर 120 किलोमीटर का सफर तय करने पर मजबूर होना पड़ा है और किसी तरह से अपने घर पहुंच सके हैं।
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कुल मिलाकर देखा जाये तो कोरोना कम होने का नाम नहीं ले रहा है और लॉकडाउन के आलावा सरकार के पास कोई चारा नहीं है। इस वजह से गरीब प्रवासी मजबूरों को हाल बेहद खराब है और सरकारी मदद भी इनको नहीं मिल पा रही है।