आय हाय, रश्क होता है इस फाइव जी जमाने से। प्रेमी प्रेमिका आमने सामने मुंह देखी बात कर रहे हैं। व्हाटअप, इंस्टा, ट्विटर व फेसबुक पर हाले दिल बयां कर रहे हैं।
शोना, बेबी, जानू और बाबू की न खत्म होने वाली बहार है। अपना भी क्या जमाना था। सिर्फ आंखें चार होती थीं और शरीर के कोने-कोने में रिंग टोन बजने लगती थी।
ओल्ड मॉडल आउटडेटेड बैटरियां भी फुल बैकअप देने लगती थीं। ब्लैक एंड व्हाइट वाले चोंगा फोन ही एक मात्र लव लाइन हुआ करते थे, जो लॉक डाउन मोड में रहते थे।
हम भी कम नहीं थे, लाॅक होने से पहले खास नम्बर डायल कर काट देते। फिर रास्ता साफ देखकर रीडायल कर, खुसुर पुसुर करते।
आंखें जो एक बार महबूब की पिक्चर कैप्चर कर लेती थीं वह अगली होली तक धूमिल नहीं होती थी। मोबाइल के जमाने में उल्टी-सीधी रोमन में लिखे गये स्लैंग और कट शार्ट लैंग्वेज में प्रेम पाती ऐसी लगती है मानो होम्योपैथी के डाक्टर का प्रिस्क्रिप्शन हो।
जो मजा हमारे जमाने में इत्र से नहाये लव लेटर में आता था वह पोस्ट कार्ड से भी छोटी मोबाइल स्क्रीन में कहां। उस जमाने में लव लेटर के कोने में नाम का छोटा सा पहला आखर।
इत्र भीनी भीनी खूशबू। अब तो बस भद्दे-भद्दे काले अक्षर। अब हफ्ते भर का वेलेंटाइन वीक चलता है। साहबजादे पापा की जेब साफ कर रहे हैं और माता जी चोर बनायी जा रही हैं। पता नहीं क्या क्या डे बना दिए गये हैं। हग डे, चूम डे, भालू डे, गुलाब डे। डे की जगह दे ही समझें।
हमारा जमाने के प्यार को इस शेर से समझें-
हर फैसला होता नहीं सिक्का उछाल के
ये दिल का मामला है जरा देख भाल के
मोबाइल के दौर के आशिक क्या जानें
खत में रखते थे हम कलेजा निकाल के
शेर ओ शायरी से पगा लव लेटर किसी बच्चे के हाथ से भेजा जाता था। पहले उनके गली से गुजरने के ठीक आधा घंटा पहले ही आ जमते थे कि पता नहीं कब हुजुर की सवारी निकल जाए।
अब चौराहे-चौराहे से गुजरने की रिपोर्टिंग होती रहती है। प्रेमी जहां चाहे ज्वाइन कर ले। आजकल तो आप किसी का पीछा शुरू ही किया कि दस नब्बे मोबाइल हो गया और पुलिस के साथ उसका भाई आ धमका आपकी हजामत बनाने। हमारे जमाने में भाई तक बात पहुंचते-पहुंचते वह साला बन जाता था।… बाकी बातें फिर कभी।