नेता पल्टूराम एक गुप्त स्थान पर विराजमान हैं। चेले -चापड़ सीक्रेट टास्क में ऐसे लगे हुए हैं मानो पोखरण में परमाणु विस्फोट की टेस्टिंग हो अमेरिका ने भूखे जासूसी कुत्ते छोड़ रखे हों। नेता पल्टूराम का सबसे बड़ा बेटा हाथ में लिस्ट लेकर आ रहे मटीरियल के मिलान में जुटा हुआ है। हां, तो सात प्रकार का जल आ गया। सात तरह की मिट्टी कहां है? ठीक है रख दो। सात कुंओं का पानी देखो कोई पी न ले। मुंह लगा चेला मटरू फुसफुसाया -‘पांच मेल का दूध तो मिलल पर दुई और तरह का कहूं नाहि मिलल भइया।” पूछा गया कि किस-किस का मिला, तो गाय, भैंस, बकरी, गधी, ऊंटनी के बाद गिनती थम गयी। ‘
अब केकर दूध लाईं , भइया?” समस्या कठिन थी। बड़े भइया बोले- ‘मटरू क्या हथनी का दूध मिल पायी?” मटरू बोला- ‘मिल तौ जात मुला आजकल हथनिन को बांधत है।” किसी ने सलाह दी कि घोड़ी का दूध भी चल सकता है। घोड़ी की लात की बात सोचकर उस विचार को नकार दिया गया। दूध के चक्कर में दिमाग का दही हुआ जा रहा था। बात मदार और कटहल के दूध से सुलटी। बीसा कछुआ, मुर्गे का दिल, बकरे की आंख, बत्तख के अंडे, फैजाबादी बंडे, मानवभक्षी शेर के नाखून, विधवा की नाखूनी, कच्ची दारू, कपाल, बाल, लोबान, कव्वे की चोंच… कुछ आदि, कुछ इत्यादि सजा कर रख दिये गये।
पल्टू तो पिछले छह दिनों से व्रत में हैं। खटिया खड़ी है। खुद जमीन पर हैं। सिला हुआ कपड़ा वर्जित है और पानी भी पीना है तो तांबे के लोटे में, मुंह आसमान की तरफ करके। तांत्रिक ने उन्हें ऐसे ही कुछ छोटे-मोटे दिशा-निर्देश दिये हैं। सुविज्ञ पाठकों से क्या छिपाना। आप कौन किसी को बताने जा रहे हैं।
पल्टू की चुनाव टिकट के लिए बड़ी पूजा की तैयारी चल रही है। गुप्त मिशन की सफलता को लेकर पल्टू की पेशानी पर चिन्ता की लहरें उछाल मारती हैं और फिर विलीन हो जाती हैं। नौसिखियों की फौज के रंगरूट अपना-अपना काम बखूबी बिगाड़ रहे हैं। सभी को तांत्रिक के आने का इंतजार है। समय निकलता जा रहा है। अंधेरी रात। अंधेरा और भी गहराता जा रहा है। घड़ी में बारह बजने वाले हैं।
पल्टू अर्धविक्षिप्त से एक कोने में पड़े हैं। समय बच जाए तो किसी ने नहाने की सलाह दे डाली। पल्टू नहाने के बाद शरीर को ऐसे हिलाने लगे मानो कोई आत्मा आ गयी हो। कंपकपी बढ़ती जा रही थी। उन्हें बुखार ने जकड़ना शुरू कर दिया। डाक्टर बुलाये गये। डाक्टर ने कहा- ‘पेट खाली है। दवा देने से पहले इन्हें रिच प्रोटीन दीजिए। मांस-अंडे दीजिए। दारू दीजिए।” तभी कोई चेला फुसफुसाया- ‘भइये, खिला-पिलाकर का इन्हीं की बलि होई… ?”
तभी नेता के मोबाइल की रिंग टोन बज उठी। तांत्रिक बता रहा था कि वह दिल्ली से एक बड़के नेता के बुलावे पर निकल चुका है। पूजा अगले हफ्ते रखते हैं। जबरदस्त मुहूर्त है। पक्का काम बनेगा। तुम व्रत जारी रखना। जय हो मंगलमय हो।
अंडे, मांस और दारू चेले उड़ा रहे थे।….