रूबी सरकार
दारूण कोरोना संक्रमण काल ने हमें प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था और गांव की याद दिला दी। उस समय हर गांव की अपनी अर्थव्यवस्था हुआ करती थी । गांव में बढ़ई, नाई, लोहार, कुम्भार, माली के पास खेत नहीं होते थे, वे किसानों के घर जाकर साल भर सेवा किया करते और बदले में किसान, जमीनदार सालभर के फसल से उनका हिस्सा पहले निकालकर उन्हें दे दिया करते थे। उनके अलग-अलग हिस्से को ‘पर्जा पाऊनी‘ कहा जाता था । इसके अलावा किसानों के घर पर समय-समय पर जो मंगल प्रसंग होते थे, उसमें इनकी बड़ी भूमिका होती थी । शादी-व्याह का न्यौता देने नाई जाता था ।
मण्डप में लकड़ी की व्यवस्था बढ़ई तथा फूलों से सजावट माली, सबका काम बंटा होता था और बदले भी इन्हें किसानों से अनाज ही मिलता था । सिक्कों का कोई प्रचलन नहीं था। अंग्रेजों ने सबसे पहले दो चीजों से गांव वालों को परिचित कराया। एक मिट्टी का तेल और दूसरा माचिस। इससे पहले गांव में पड़ोस से आग मांगने की प्रथा चलती थी। आग किसी न किसी रूप में पड़ोस के घरों में जलती रहती थी ।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बदलाव आया, तो बिचौलियों की भूमिका अहम होती चली गई। पहले बिचौलियों को बनिया कहा जाता था, बाद में अन्य लोग भी बिचौलियों का काम करने लगे, जो किसानों से सस्ते दामों में गल्ला खरीदते और उसे शहर ले जाकर ज्यादा दामों में बेचते थे। इस तरह गांव में बिचौलिये समृद्ध हाता चला गया और किसान कमजोर । आगे चलकर बिचौलिया शहर से गांव में जरूरत का सामान भी लाने लगा और साथ में सिक्के और नोट भी। इससे पहले जरूरत का सामान गांव में ही आपस में आदान-प्रदान होता था। इस तरह गांव में बिचौलिये इतना मजबूत होता चला गया,कि वह जमीनदार को भी पैसा उधार देने लगा। जमीनदार से पहले किसानों को खाद-पानी के लिए उधार लेने की परंपरा शुरू हो चुकी थी।
गांव में बिचौलियों को शोषक के रूप में जाना जाने लगा और गांव की अर्थव्यवस्था बिगड़ती चली गई। खेती लाभ का धंधा नहीं रह गया, जिनके पास खेेत नहीं थे, जो खेतीहर मजदूर थे, उन्हें गांव में पैसे कम मिलने लगे और वे गांव से शहर की ओर पलायन करने लगे । अब तक पश्चिम की तर्ज पर शहरों में बेतहाश उद्योग-धंघे खुलने लगे थे , जहां गांव के लोग आकर मजदूरी करने लगे।
अब कोरोना-काल ने एक चीज साबित कर दिया, कि आदमी पैसा कमाने के लिए गांव से भागकर षहर जरूर आया, लेकिन उसकी आत्मा गांव में बसती है। लाखों मजदूर किसी भी क्षेत्र के हों, किसी भी जिले या राज्य के हो, सब हजारों किलोमीटर पैदल चलकर, साईकिल पर, नदियों में तैरकर, डण्डे खाकर भी भागकर गांव पहुंचना चाहते थे । सारी विपरीत परिस्थितियांे के बावजूद वे शहर में रूकने को तैयार नहीं थे।
कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन के दौरान यह बड़ा बदलाव देखा गया, जो यह साबित करता है, कि पष्चिम की तर्ज पर नीतियां बनाकर अब तक जो गांव को कमजोर किया जा रहा था, वह ठीक नहीं था। शहरों को मजबूत का कितना थोथा साबित हुआ। गांधी जी कहा करते थे,कि भारत की आत्मा गांव में बसती है, खेती को कमजोर मत करो, शहरों में उद्योगों को बढ़ावा मत दो, यह सारी बातें अब लोगों के समझ में आने लगी है। अभी तक गांव से सस्ते मजदूरों को लाकर शहरों में काम दिलाया , उनके रहने के लिए शहरों में बेतहा शा स्लम्स बसाये। जिसमें मजदूर नारकीय जीवन जीते थे ।
यह भी पढ़ें : किसान के सामने आपूर्ति नहीं मांग का है संकट
अब उनका इससे मोह भंग हो गया है। उन्हें लग रहा है, कि गांव में सामाजिक -आर्थिक और धार्मिक सुरक्षा अभी भी बहुत मजबूती के साथ जिन्दा है। गांव में भावनात्मक सुरक्षा भी है, अगर मरेंगे तो गांव में मरेंगे क्योंकि शहर में हमारा कोई नहीं है ।
लॉक डाउन के बाद सरकार चाहे तो गांधी का सपना साकार कर सकती है। गांव को मजबूत कर ग्रामोद्योग को बढ़ावा दे सकती है। मनरेगा में अंतर्गत पैसा देकर गांव में मजदूरों को रोकने की कोशिश तो हो रही है, लेकिन अब वहां इतना काम है नहीं, इसलिए सरकार अपने पास से पैसा देती है। गांव में अगर उद्योग हो, तो गांव से पलायन रूके और गांव के लोग आत्मनिर्भर बनें। इस तरह षहरों में जो पानी, बिजली स्लम्स आदि का दबाव है, वह खत्म होगा। इसके अलावा उद्योगों में मजदूरों का शोषण रूकेगा। कोरोना काल ने मजदूरों के गांव की ओर पलायन के जो दृष्य दिखाये वह आंखें खोलने के लिए काफी है ।कोरोना ने असुरक्षा बढ़ाकर इंसान को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी राष्ट््रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर देशभर के सरपंचाों से चर्चा करते हुए यही कहा, कि कोरोना वायरस ने हमें सबसे बड़ा सबक सिखाया है, कि हमें आत्मनिर्भर बनना है। इस वायरस ने काम करने के तरीके को बदला है। प्रधानमंत्री ने पंचायत, जिले व राज्य को आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ अपनी जरूरतों के लिए बाहरियों का मुंह न देखने की बातें बताई। अगर इसी तर्ज पर ग्रामोद्योग को बढ़ावा मिले और शहरों में उसके लिए बाजार उपलब्ध कराये जाने की दिषा में काम हो, तो भागकर गांव जाने वाले मजदूर वहीं रहेंगे। इसके लिए सरकार को योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)