अरमान इकबाल
सिद्धार्थनगर के जिला मुख्यालय से सटे के एक गांव के सैकड़ों लोग 40 साल से मताधिकार से वंचित हैं। गोबरहवा डीह नाम की यह बस्ती आज न तो नगरीय क्षेत्र में है और न ही किसी ग्रामपंचायत का ही हिस्सा है। जिसके वजह से यहां के सैकड़ों लोग पिछले 40 वर्ष से लोकतंत्र के महापर्व में नहीं शामिल हो पाते हैं।
1978 से ही मताधिकार से वंचित
1978 में नौगढ़ नगर पंचायत बना तो पिठनी खुर्द गांव के दो तिहाई हिस्से को नगरीय क्षेत्र में शामिल कर शेखनगर, बुद्धनगर, शास्त्री नगर वार्ड बना दिया गया। सरकारी दस्तावेजों में गोबरहवा डीह को न तो नगर पंचायत में शामिल किया गया न ही किसी गांव से जोड़ा गया। इससे इस बस्ती के तकरीबन पांच सौ लोग 1978 से ही मताधिकार से वंचित हैं।
एक हजार से अधिक की आबादी
वोटर कार्ड न होने से इन्हें कोई सुविधा भी नहीं मिल पाती है। एक हजार से अधिक की आबादी वाले शहर से सटे गोबरहवा की बदनसीबी का दौर 1978 से शुरू हुआ। 1978 में नगर पंचायत का दर्जा मिलने तक वह ग्राम पंचायत पिठनी खुर्द का हिस्सा था।
नगर पंचायत बना तो पिठनी खुर्द के दो तिहाई हिस्से को नगरीय क्षेत्र में शामिल कर शेखनगर, बुद्धनगर, आंशिक पूरब पड़ाव व आंशिक शास्त्री नगर वार्ड बना दिया गया। जो एक तिहाई हिस्सा छूटा था वह गोबरहवा डीह का था। बाद में भी उसे पड़ोसी ग्राम पंचायत का हिस्सा नहीं बनाया गया।
किस्मत नहीं बदली
1988 में जिला बनने के साथ ही नगर पंचायत को नगर पालिका का दर्जा दिया गया, बावजूद इसके गोबरहवाडीह के लोगों की किस्मत नहीं बदली। यहां के लोग जब-जब नगर निकाय व ग्राम पंचायतों का चुनाव आता है प्रदर्शन से लेकर ज्ञापन देकर दोनों में से किसी में शामिल करने की बात उठाते हैं पर उनकी आवाज हर बार अनसुनी कर दी जाती है।
न राशनकार्ड, न मिलती है सुविधा
गोबरहवा के लोगों के पास न राशनकार्ड है और न ही कोई और सुविधा उन्हें मिल पा रही है। वहीं इस गांव से निकल कर बाहर घर बनाने वालों ने किसी तरह आधारकार्ड और राशनकार्ड तो बनवा लिए पर बाकी आबादी अब भी केवल वोट के अधिकार ही नहीं तमाम सरकारी रियायतों से वंचित है।
श्याम बिहारी जायसवाल बताते है कि नगरीय क्षेत्र का हिस्सा नहीं होने से हम चाह कर भी गोबरहवा का विकास नहीं कर सकते हैं। सीमा विस्तार होने पर ही वह पालिका का अंग हो सकता है।