Monday - 28 October 2024 - 10:29 PM

विकास दुबे के एनकाउंटर से उपजा सवाल

ओम दत्त

विकास दुबे के एनकाउंटर ने सवाल पैदा कर दिया है कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए नीति निर्माताओं को परंपरागत नियमों में बदलाव करना होगा।

उत्तर प्रदेश में योगी के कार्यकाल में एसटीएफ ने एनकाउंटर में 09 अपराधियों को मार गिराया और कोई चर्चा नहीं हुई‌। लेकिन उज्जैन से कानपुर लाए जाने के दौरान कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे का एनकाउंटर और उसके बाद वहां होने वाली घटनाओं पर हो रही महत्वपूर्ण चर्चा के दूरगामी प्रभाव होने की उम्मीद दिखाई पड़ने लगी है।

हालांकि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर रहा है कि खूंखार गैंगस्टर दशकों से अपने आपराधिक कृत्यों के लिए ऐसी ही किसी मुठभेड़ में मरने का हकदार था। लेकिन जिस तरह से यह एनकाउंटर किया गया था उसपर हमारे जैसे ज्यादातर लोग भी पुलिस थ्योरी पर सहज विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। जबकि आधिकारिक संस्करण यह है कि बंदूक छीनने के बाद भागने की कोशिश करने पर उसे गोली मार दी गई थी।

प्रमुख भावना अभी भी यह है कि यह एक योजनाबद्ध एनकाउंटर था। दूसरी ओर जिस तरह से सोशल मीडिया ने इस समाचार पर खुशी जाहिर की और बिना तथ्य के ही इस एनकाउंटर को महिमा मण्डित किया जो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

जहां एक ओर लोग यूपी पुलिस द्वारा लगाए गए आधिकारिक संस्करण पर भरोसा न करके अंतर्मन के अविश्वास को प्रकट कर रहे है, वहीं दूसरी ओर वे इस तथ्य पर भी भरोसा करते हैं कि उसे सामने से सीने पर गोली लगी,जो विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाता है।

सोशल मीडिया और कुछ न्यूज चैनलों पर इस तरह का जन समर्थन पीड़ित करने वाले एक गहरी अस्वस्थता की ओर इशारा करता है जो लोकतांत्रिक संस्थान में विश्वास की कमी और तत्काल न्याय से उपजे आनन्द का प्रतिफल है।

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ऐसा कोई वर्ग नहीं है जो पुलिस के इस तरह के कृत्यों या पुलिसिया विधान का समर्थन करता होगा। हां इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि एक छोटा समूह जरूर है जो मानता है कि लंबे समय तक खींची गई आपराधिक न्याय प्रणाली को इसका स्थान लेना उचित मान रहा है।

हम सामान्य नागरिकों को दोष भी नहीं दे सकते क्योंकि एक अपराधी दशकों तक गम्भीर अपराध करने के बाद भी अक्सर दाग मुक्त हो जाता है और उन्होंने देखा है कि कैसे न्याय प्रणाली विफल होती है। हर बार अदालत “सबूतों की कमी” के चलते एक खूंखार क्रिमिनल विकास दुबे के साथ इसी तरह का कई बार न्याय कर चुकी थी। यह उस प्रणाली में विश्वास है जिसे हमारी संस्थाएं खत्म कर रही हैं, विकास दुबे की घटना उस की एक स्पष्ट याद है।

संविधान, न्याय प्राप्त करने के लिए उचित प्रक्रिया प्रदान करता है और यह स्पष्ट है कि संवैधानिक अधिकारों को स्वीकार भी किया जा रहा है। लेकिन सीधी पुलिस कार्रवाई से यह प्रक्रिया उलट गई। हालाँकि, भारतीय प्रणाली और जनता को इस उम्मीद में इतनी निराशा हुई है कि त्वरित कार्रवाई के साथ न्यायिक प्रणाली को दरकिनार कर ऐसे एन्काउंटर का सक्रिय रूप से समर्थन किया जाने लगा है। मध्यम वर्ग भी इस तरह के कृत्य का समर्थन करता है या कम से कम आंखे मूंद लेता है।

मुठभेड का एक संक्षिप्त इतिहास है

1960 के दशक में नक्स-एलाईट आंदोलन के दौरान, मुठभेड़ों ने इसे कुचलने में बड़ी भूमिका निभाई। पाकिस्तान की मदद से पंजाब में आतंकवाद पर लगाम लगी। मुंबई पुलिस ने तो शहर को अंडरवर्ल्ड की पकड़ से मुक्त करने के साथ-साथ बड़े गैंगों को या तो खतम कर दिया या फिर बाहर भागने के लिये मजबूर कर दिया।

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इस लिये अब समय आ गया है कि न्यायिक सुधारों की ओर पहल हो और फास्ट-ट्रैक अदालतों से समयबद्ध त्वरित न्याय सुनिश्चित हो ताकि विकास दूबे जैसे दुर्दांत अपराधियों को कानून के दायरे में निपटाया जा सके।

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