न्यूज डेस्क
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के तहत गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने को लेकर मचे बवाल के बीच मोदी सरकार की ओर से इसमें ड्राफ्ट में बदलाव किया गया है, जिसके तहत हिंदी के अनिवार्य होने वाली शर्त हटा दी गई है।
सोमवार सुबह भारत सरकार ने अपनी शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव किया। पहले तीन भाषा फॉर्मूले में अपनी मूल भाषा, स्कूली भाषा के अलावा तीसरी लैंग्वेज के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने की बात कही थी, लेकिन सोमवार को जो नया ड्राफ्ट आया है, उसमें फ्लेक्सिबल शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
यानी अब स्कूली भाषा और मातृ भाषा के अलावा जो तीसरी भाषा का चुनाव होगा, वह स्टूडेंट अपनी मर्जी के अनुसार कर पाएंगे। यानी कोई भी तीसरी भाषा किसी पर थोपी नहीं जा सकती है. इसमें छात्र अपने स्कूल, टीचर की सहायता ले सकता है, यानी स्कूल की ओर से जिस भाषा में आसानी से मदद की जा सकती है छात्र उसी भाषा पर आगे बढ़ सकता है।
बता दें कि नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट प्रकाश जावडे़कर के मानव संसाधन विकास मंत्री रहते हुए तैयार किया गया था। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में ये मंत्रालय उत्तराखंड के पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक को सौंपा गया है। नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट नए मंत्री को शुक्रवार को सौंपा गया था, जिस पर बवाल मचते देख मोदी सरकार ने इसमे बदलाव किया है।
केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है
गौरतलब है कि नई शिक्षा नीति में तीन भाषा प्रणाली को लेकर केंद्र के प्रस्ताव पर साउथ कई राज्यों हंगामा मचना शुरू हो गया। इसे लेकर सबसे पहले तमिलनाडु ओर कर्नाटक से विरोध की आवाज उठी। डीएमके और मक्कल नीधि मैयम ने विरोध किया है। डीमके के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और मक्कल नीधि मैयम नेता कमल हासन ने इसे लेकर विरोध जाहिर किया है। सिवा ने केंद्र सरकार को विरोध प्रदर्शन की चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है।
हिंदी लागू करना सल्फर गोदाम में आग फेंकने जैसा
सिवा ने कहा कि हिंदी भाषा को तमिलनाडु पर थोपने की कोशिश को यहां के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम यहां के लोगों पर हिंदी भाषा को जबरन लागू करने को रोकने के लिए किसी भी परिणाम का सामना करने के लिए तैयार हैं। सिवा ने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी लागू करना सल्फर गोदाम में आग फेंकने जैसा है। यदि वे फिर से हिंदी सीखने पर जोर देते हैं, तो यहां के छात्र और युवा इसे किसी भी कीमत पर रोक देंगे। हिंदी विरोधी आंदोलन 1965 इसका स्पष्ट उदाहरण है।
DMK leader T Siva in Trichy: The attempt to force Hindi language on people of Tamil Nadu will not be tolerated by its people. We are ready to face any consequences to stop Hindi language being forced on the people here. pic.twitter.com/WE990DUErN
— ANI (@ANI) June 1, 2019
दरअसल, शिक्षा नीति से पहले आई कस्तूरीरंगन समिति ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से अपील की है कि राज्यों को हिंदीभाषी, गैर हिंदीभाषी के तौर पर देखा जाना चाहिए। अपील की गई है कि गैर हिंदीभाषी राज्यों में क्षेत्रीय और अंग्रेजी भाषा के अलावा तीसरी भाषा हिंदी लाई जाए और उसे अनिवार्य कर दिया जाए।
भाषा का ये विवाद पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है। दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया है, तो वहीं सरकार सफाई दे रही है कि अभी ये सिर्फ ड्राफ्ट है, फाइनल नीति नहीं है। सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया है कि किसी पर भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, हर किसी से बात करने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
बताते चले कि ये बवाल सिर्फ राजनीतिक नहीं है, इस पर अब सोशल मीडिया पर भी कैंपेन चलने शुरू हो गए हैं. रविवार को भी हिंदी भाषा को थोपने के खिलाफ ट्रेंड हुआ तो आज फिर #HindiIsNotTheNationalLanguage ट्रेंड कर रहा है।