- चीन में फैले कोरोना वायरस से दुनिया अलर्ट
- वायरस म्युटेशन से नहीं होता टीके का असर
- भारत की घनी आबादी पर हमेशा है वायरस हमले का डर
राजीव ओझा
परमाणु युद्ध जैसा ही खतरनाक हो सकता है मानव जाति पर वायरस का हमला। परमाणु युद्ध की चाभी तो मनुष्य के पास है लेकिन पल पल रूप बदलने वाले वायरस को काबू करना मनुष्य के लिए आसान न होगा। ताजा और गंभीर खतरा है कोरोना या करॉन वायरस। जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान ने प्रगति की, नये-नये वायरस का पता चलने लगा।
पिछले पांच दशक पर नजर डाली जाये तो स्माल पॉक्स यानी चेचक के वायरस पर ही पूर्णतः काबू पाया जा सका है। जबकि उससे भी खतरनाक नये नये वायरस अब मानव जाति के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। मानव जाति को परमाणु युद्ध के बाद अगर किसी चीज से सबसे ज्यदा खतरा है तो वह है वायरस का हमला।
कोरोना वायरस से चीन में करीब डेढ़ दर्जन लोगों की मौत हो चुकी और करीब 500 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं। खासबात कि ज्यादातर वायरस संक्रमण के लक्षण सामान्य फ्लू जैसे होते हैं और एक दूसरे वायरस से मिलते जुलते हैं। कभी एचाईवी, कभी बर्ड फ्लू, कभी स्वाइन, कभी रोटा वायरस, कभी इबोला वायरस और अब कोरोना वायरस का खतरा। फिलहाल चीन के हुवेई प्रांत के वुहान शहर में इसका प्रकोप सबसे ज्यादा है। वैसे चीन के अलावा थाईलैंड, सिंगापुर, जापान में भी कोरोनो वायरस के मरीज मिल रहे हैं। इंग्लैंड में भी एक परिवार के इस वायरस की चपेट में आने की जानकारी सामने आई है। कहा जा रहा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में भी यह वायरस पहुँच गया है।
इत्तफाक से भारत में अभी तक कोरोना वायरस का कोई मरीज सामने नहीं आया है लेकिन अगर देश में कोरोनो वायरस फैला तो इसे आसानी से काबू करना मुश्किल होगा। कहा जा रहा है कि चीन में कोरोना वायरस सी-फूड से फैला। इसके लक्षण भी फ्लू जैसे ही हैं। इसमें सांस लेने में दिक्कत और निमोनिया जैसा संक्रमण भी हो सकता है। अन्य वायरस कि तरह यह भी हवा से, जानवरों और मनुष्य से मनुष्य में फ़ैल सकता है।
पूरी दुनिया इस वायरस कि जद में है। भारत में तो आबादी के बड़े हिस्से पर वायरस का खतरा हमेशा मंडराता रहता है, ख़ासकर दूसरे देशों से आये वायरस का खतरा। इसका प्रमुख कारण है भारत में सफाई या सैनिटेशन की भारी कमी।
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आपको याद होगा कि पिछले साल सितम्बर में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक नए और खतरनाक वायरस को लेकर अलर्ट जारी किया था। उस समय सिर्फ दो-तीन दिन में पूरी दुनिया में इसके फैलने का खतरा मंडरा रहा था। उस वायरस से पूरी दुनिया में करीब आठ करोड़ लोगों की जान जा सकती थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस बताया था।
इतिहास में यह भी दर्ज है कि करीब सौ साल पहले 1918 में स्पेनिश फ्लू से करीब 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, जो तब की दुनिया की आबादी के एक तिहाई के बराबर था। स्पेनिश फ्लू ने 50 करोड़ लोगों में से पांच करोड़ की जान ले ली थी। लेकिन सौभाग्य से अनुकूल परिस्थितियां न मिलने के कारण यह ज्यादा नहीं फ़ैल सका और तीन चार मामले ही सामने आए। लेकिन खतरा अभी टला नहीं हैं। मौक़ा पाकर यह नए रूप में कब प्रगट हो जाये, कहा नहीं जा सकता।
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इसी तरह अफ्रीका के जंगली जानवरों से मनुष्य में फैलने वाला मंकी पॉक्स का वायरस शुरुआत में तो स्थानीय स्तर पर ही फैलता है लेकिन मनुष्यों में पाए जाने वाले दूसरे वायरस और उनके डीएनए के संपर्क में आने के बाद इस वायरस में म्युटेशन शुरू हो जाता है यानी इनकी आनुवांशिक संरचना में ऐसे बदलाव आने लगते हैं कि इन पर टीका या दवाओं का आसानी से असर नहीं होता। यही चिकित्सा विज्ञान के लिए बड़ी चुनौती है। ध्यान देने कि बात है कि कोरोना वायरस उसी वायरस परिवार का है जिस फैमिली का सार्स वायरस था। सार्स वायरस भी शरीर के श्वसनतंत्र पर हमला करता है। वायरस चीन की सीमाओं को पार कर गया है। इससे डब्लूएचओ कि चिंता बढ़ रही है। अब दुनिया की आबादी करीब सात अरब हो चुकी है। इसके अलावा घनी आबादी वाले शहरों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। इसी लिए भारत इस तरह के किसी भी वायरस के हमले का आसान शिकार हो सकता। भारत समेत कई देशों ने चीन से आने वाले यात्रियों की मेडिकल स्क्रीनिंग शुरू की है लेकिन किसी भी तरह के वायरस के हमले से बचाव का सबसे अच्छा उपाय है स्वच्छता और भारत के लिए यह बड़ी चुनौती है।