अभिषेक श्रीवास्तव
आठ मार्च की सुबह। गोदौलिया से मैदागिन तक की सड़क छावनी में तब्दील हो चुकी थी। सड़क से छंट चुके सांड और कुत्ते गवाह थे कि वो आ रहा है। जाने किस बेसुधी में शाकाहार के आदती मर्गिल्ले कुत्ते सारनाथ की तरफ मुंह उठाकर खोखली भूंक मारे पड़े थे। उधर गर्दन में खुजली से बेचैन सौ करोड़ हिंदुओं के माता-पिता खंभे की तलाश में जंगमबाडी मठ का रुख कर चुके थे।
तभी एक मोटरसाइकिल ओएं-ओएं करते हुए बहुत तेजी से गोदौलिया की ओर भगी। पांडे हवेली में पेड़ की छांव में लाल अमरूद पेल रहे भगवा गमछाधारियों के कान खड़े हो गए और हाथ से पत्तल छूटते छूटते बचा।
आ गयल का? एक ने दूसरे से पूछा। दूसरे ने तीसरे को सवाल शिफ्ट कर दिया। धीरे धीरे सवाल सड़क पर खड़े सिपाही तक पहुंचा। सिपाही ने पूरी बेरुखी से जवाब दिया – आवे त ग्रह कटे! ठेले पर अमरूद काट रहे बुड्ढे ने पहले बेढंगे तरीके से सजाई नमो घड़ी की ओर देखा, फिर बमुश्किल मुंह खोलते हुए कहा – अबहिं टाइम हव!
भगवा गमछाधारी बात को पकड़ नहीं सका। गरी की तरह मुलायम अमरूद में लाल दांत गड़ाकर भच्च से उसने एक फांक उदरस्थ की और हड़बड़ा कर बोला – “आवे में? केतना टाइम हव?” बुड्ढा डर के मारे मुस्कुरा भी नहीं सका। सिपाही ने मौज ली – “तोहार ग्रह कटे में, बुजरौ वाले!” दूसरा गमछाधारी डिफेंस में प्रकट हुआ। उसने सिपाही को घुड़कते हुए कहा – “आपन काम करबा की ढेर पदबा?” सुबह पांच बजे से ड्यूटी में तैनात सिपाही से रहा नहीं गया।
उसने तल्ख होकर थोड़ा अदब में कहा – “भैया, काला नमक पेल कर अमरूद आप खइबा त पदबो करबा आपे?”
गमछाधारी गिरोह तमतमा गया। बचा खुचा अमरूद निपटाते हुए नेता ने सफेद कुर्ते की सिलवट सीधी की और धमकाने के अंदाज़ में बोला – “इस बार मोदी जी बस आ जाएं, फिर देखो कैसे पेलते हैं सबको।” तब तक मोटरसाइकिल वाला उल्टी तरफ से ओयें ओयें करते हुए निकला।
अचानक समवेत स्वर में दोबारा पूर्ववर्ती सवाल निकला – “आ गयल का?” इस बार सिपाही ने इंकार नहीं किया। किसी ने कुछ नहीं कहा। प्रतिक्रिया में गली से अचानक भगवा झंडा बटोर के कार्यकर्ता सड़क पर निकल पड़े और नारा लगने लगा।
जुलूस थोड़ा आगे बढ़ा होगा कि मजिस्ट्रेट की गाड़ी सामने आ गई। एक घुटे हुए सिर वाले वर्दीधारी ने मुंह बाहर निकाला और पीक को चू जाने से बचाने के लिए कुत्ते की तरह मुंह ऊपर उठा कर कहा, “अबहिं टाइम हव!” जुलूस को पाला मार गया। नेता के मुंह से अनायास निकला – “बहुत हरामी हव!”
दरोगा ने सुन लिया, गुस्से में भरे मुंह वह गों गों करने लगा। नेता ने भांप लिया कि अर्थ का अनर्थ हो गया है, तुरंत बात को दुरूस्त करते हुए उसने कहा – “कुछ नाहीं साहब, हम त सिपहिया के कहत रहली। वो बताया नहीं कि अभी टाइम है।” अपने चेलों की ओर पीछे मुड़ कर उसने हुंकारी भरवाई – क हो? पीछे से गोया सहस्र सियारों ने हुआं हुआं से अनुकूल जवाब दिया।
जीप आगे बढ़ गई। नेताजी का ग्रह कट गया।
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, इस लेख में बनारस की स्थानीय बोली का प्रयोग किया गया है)