जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर फटने से भारी तबाही मची हुई है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक का तंत्र राहत एवं बचाव कार्य में लगा हुआ है। सबकी पहली कोशिश है कि जान-माल के नुकसान को कम से कम किया जाए। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चमोली जिले के तपोवन इलाके में पहुंच गए हैं और वर्तमान स्थिति की जायजा ले रहे हैं।
#WATCH | Water level in Dhauliganga river rises suddenly following avalanche near a power project at Raini village in Tapovan area of Chamoli district. #Uttarakhand pic.twitter.com/syiokujhns
— ANI (@ANI) February 7, 2021
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने के कारण ऋषिगंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट क्षतिग्रस्त हुआ है और नदी का जल स्तर बढ़ने की सूचना मिली है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी को इस संबंध में सहायता का आश्वासन दिया है। हम इस घटना पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं।
100-150 casualties feared in the flash flood in Chamoli district: Uttarakhand Chief Secretary OM Prakash to ANI pic.twitter.com/JoR76lWEAb
— ANI (@ANI) February 7, 2021
बता दें कि जोशीमठ में ग्लेशियर टूटने से धौलीगंगा नदी में बाढ़ आ गई। पानी तेज गति से आगे बढ़ रहा है। आसपास के इलाकों में बाढ़ का पानी फैलने की आशंका है। अभी तक एनटीपीसी की साइट से तीन शवों को आईटीबीपी ने बरामद किया है। और 100-150 लोगों के मौत की आशंका है। एनडीआरएफ, आईटीबीपी और एयरफोर्स की टीम लगातार काम कर रही हैं।
ऋषि गंगा प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। यहां NTPC प्रोजेक्ट से 10 शव बरामद किए गए हैं। ITBP के डीजी ने यह जानकारी दी है। बताया जा रहा है कि टनल में 15-20 लोगों के फंसे होने की आशंका है। प्रोजेक्ट पर करीब 120 लोग काम कर रहे थे। प्रोजेक्ट में काम करने वाले लोग तेज पानी में बह गए।
#WATCH| Uttarakhand: ITBP personnel approach the tunnel near Tapovan dam in Chamoli to rescue 16-17 people who are trapped.
(Video Source: ITBP) pic.twitter.com/DZ09zaubhz
— ANI (@ANI) February 7, 2021
गौरतलब है कि भू-वैज्ञानिकों ने करीब आठ महीने पहले ऐसी आपदा को लेकर आगाह किया था। अगर उस समय इस पर कार्रवाई हुई होती तो शायद आज की घटना से हम लोगों को बचा सकते थे।
देहरादून में स्थित वाडिया भू-वैज्ञानिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिछले साल जून-जुलाई के महीने में एक अध्ययन के जरिए जम्मू-कश्मीर के काराकोरम समेत सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों द्वारा नदियों के प्रवाह को रोकने और उससे बनने वाली झील के खतरों को लेकर चेतावनी जारी की थी।
Rescue operation underway at the tunnel near Tapovan dam in Chamoli to rescue trapped people. #Uttarakhand
(Pic courtesy: Indian Army) pic.twitter.com/lcKlHdcNn3
— ANI (@ANI) February 7, 2021
2019 में क्षेत्र में ग्लेशियर से नदियों के प्रवाह को रोकने संबंधी शोध आइस डैम, आउटबस्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनिटी ऑफ ग्लेशियर में सेटेलाइट इमेजरी, डिजीटल मॉडल, ब्रिटिशकालीन दस्तावेज, क्षेत्रीय अध्ययन की मदद से वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट जारी की थी।
इस दौरान इस इलाके में कुल 146 लेक आउटबस्ट की घटनाओं का पता लगाकर उसकी विवेचना की गई थी। शोध में पाया गया था कि हिमालय क्षेत्र की लगभग सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
वहीं पीओके वाले काराकोरम क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इस कारण ये ग्लेशियर विशेष अंतराल पर आगे बढ़कर नदियों का मार्ग अवरुद्ध कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में ग्लेशियर के ऊपरी हिस्से की बर्फ तेजी से ग्लेशियर के निचले हिस्से (थूथन-स्नाउट) की ओर आती है।
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भारत की श्योक नदी के ऊपरी हिस्से में मौजूद कुमदन समूह के ग्लेशियरों में विशेषकर चोंग कुमदन ने 1920 के दौरान नदी का रास्ता कई बार रोका। इससे उस दौरान झील के टूटने की कई घटनाएं हुई। 2020 में क्यागर, खुरदोपीन व सिसपर ग्लेशियर ने काराकोरम की नदियों के मार्ग रोक झील बनाई है। इन झीलों के एकाएक फटने से पीओके समेत भारत के कश्मीर वाले हिस्से में जानमाल की काफी क्षति हो चुकी है।
इस शोध को डॉ राकेश भाम्बरी, डॉ अमित कुमार, डॉ अक्षय वर्मा और डॉ समीर तिवारी ने तैयार किया था। वैज्ञानिकों का ये शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेट्री चेंज में प्रकाशित हुआ था। जाने-माने भूगोलवेत्ता प्रो केनिथ हेविट ने भी इस शोध पत्र में अपना योगदान दिया था।