चेतन गुरुंग
रणजी ट्रॉफी में उत्तराखंड की टीम के फेल के बाद अब क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड में बगावत हो गई है। शक जताया जा रहा है की बोर्ड ऑफ क्रिकेट फॉर कंट्रोल इन इंडिया (BCCI) के ही एक ओहदेदार इसके पीछे है। उसके पीछे एक पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। ये शक CAU की बैठक में 8 जिलों के न आने और उसी दिन यानि, कल ही हल्द्वानी में नैनीताल क्रिकेट संघ के सचिव की नियुक्ति के लिए बैठक बुलाने से पुख्ता हो गया। खास बात ये है कि विवादित और चर्चित धीरज खरे को नैनीताल का सचिव बनाया गया, लेकिन वह देहरादून क्रिकेट संघ में निदेशक और कोषाध्यक्ष हैं।
एलीट ग्रुप में अपमानजनक प्रदर्शन कर निचली टीमों के ग्रुप प्लेट में धकिया दी गई उत्तराखंड टीम को बेहतर बनाने पर CAU में कोई सोच नहीं दिख रही। इसके बजाए सारा ध्यान इस पर है कि कैसे सचिव की खाली कुर्सी पर अपना चेहरा बिठाया जाए। चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है। 8 मार्च को चुनाव हैं। अंदरखाने की खबर ये है कि सचिव की कुर्सी पर कब्जे के लिए BCCI के एक विवादित ओहदेदार और उसके आका पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा कानपुर लॉबी जी जान से जुटी हुई है।
वे इस कोशिश में हैं कि जब तक अपनी लॉबी का कोई चेहरा तय न हो, तब तक चुनाव को ले कर असमंजस के हालात पैदा हो। इसकी मिसाल कल सामने आई। CAU की बैठक में पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पौड़ी के प्रतिनिधियों ने शिरकत नहीं की। इसे उनका बागी हो जाना कहा जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक CAU में सीधे-सीधे धड़ेबाजी हो चुकी है। BCCI खुद इसमें घुसी हुई है। उसके एक पदाधिकारी ईकाइयों के लोगों से मिल के उनको अपने हक में प्रभावित कर रहे हैं।
BCCI के ईशारे के बगैर जिलों की ईकाइयों की मजाल नहीं कि वे राज्य की सर्वोच्च नियंत्रण संस्था के फरमान की अवहेलना करने का दुस्साहस दिखा सके। CAU के कोषाध्यक्ष पृथ्वी सिंह नेगी ने `Newsspace’ को बताया कि सभी ईकाइयों को कई दिन पहले E-Mail और संदेशों के जरिये देहरादून बैठक के बारे में आधिकारिक तौर पर सूचित कर दिया गया था। इसके बावजूद उनकी गैर हाजिरी पर उनसे जवाब तलब किया जाएगा।
बैठक में इतनी बड़ी तादाद में जिलों के लोगों के न आने पर उपाध्यक्ष संजय रावत और प्रभारी सचिव अवनीश वर्मा भी भड़के। दोनों ने इसके बारे में पड़ताल करने की जरूरत जताई। खास बात ये है कि CAU की अहम बैठक की जानकारी होने के बावजूद हल्द्वानी में धीरज खरे को सचिव बनाने के लिए बैठक कल ही रख दी गई। इसको रद्द भी नहीं किया। खरे भी वर्मा-शुक्ला लॉबी से है। टीमों के चयन में घपलों को ले कर खरे का नाम शुरू में ही खूब आ चुका है।
उत्तराखंड क्रिकेट में आखिर हो क्या रहा, इसकी शानदार ताजा मिसाल खरे के तौर पर सामने आई है। खरे देहरादून क्रिकेट संघ (जो एक कंपनी के तौर पर कंपनी एक्ट में रजिस्टर्ड है) में भी निदेशक-कोषाध्यक्ष हैं। नैनीताल क्रिकेट संघ सोसाइटी एक्ट में रजिस्टर्ड है। खरे को नैनीताल में सचिव बनाने में BCCI के उपाध्यक्ष माहिम वर्मा और उनके पिता पीसी वर्मा का खास योगदान समझा जा रहा है। देहरादून क्रिकेट संघ के अध्यक्ष नीनु सहगल और सचिव विजय प्रताप मल्ल को खरे के नैनीताल में सचिव बनाए जाने की भनक नहीं थी।
मल्ल ने कहा-खरे देहरादून-नैनीताल में एक साथ अहम पदों पर रह सकते हैं या नहीं। ये पता किया जाएगा। एक शख्स एक साथ दो जिलों में न्याय नहीं कर सकता है। सूत्रों के मुताबिक सचिव के चुनाव से पहले ये कोशिश चल रही है कि जिलों में अपने खास लोग बैठा दिए जाएँ। चुनाव में वे उनके ईशारों पर वोट करेंगे। CAU के अध्यक्ष जोत सिंह गुनसोला बेहद कमजोर साबित होते रहे हैं। उपाध्यक्ष संजय और प्रभारी सचिव अवनीश ने जिला ईकाइयों की गैर मौजूदगी पर कार्रवाई की जरूरत जताई।
इसके बावजूद गुनसोला ने किसी भी कार्रवाई से इंकार कर दिया। इससे संजय,अवनीश, पृथ्वी के साथ ही कई सदस्य भड़के हुए हैं। उनका आरोप है कि अध्यक्ष अहम मुद्दों पर भी ढुल-मुल रुख अपनाए हुए हैं। अभी चुनाव को ले के ये भी मुद्दा उठ रहा है कि जो लोग CAU के आजीवन सदस्य हैं, उनके नाम वॉटर लिस्ट से बाहर क्यों हैं। उत्तराखंड क्रिकेट का हाल आपसी सियासत और खराब नेतृत्व के कारण बेहद बुरा हो चुका है।
चंद महीने के भीतर ही वह घूसख़ोरी, अंदरूनी सियासत और खराब प्रदर्शन के कारण देश भर में कुख्याति हासिल कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट में उसका मामला पहुँच चुका है। धड़ेबाजी रोकने में गुनसोला बहुत कमजोर साबित हुए हैं। पूर्व अध्यक्ष हीरा सिंह बिष्ट और एसोसिएशन को जमाने में अहम भूमिका निभाने वालों में शुमार विधायक हरबंस कपूर, गुरचरण सिंह, रामप्रसाद समेत तमाम लोग CAU में बाहरी दखल और गुटबाजी के साथ ही उत्तराखंड क्रिकेट के लगातार गर्त में जाने से नाखुश-नाराज हैं।