जुबिली न्यूज डेस्क
राज्यसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को चेतावनी देते हुए कहा था कि एमएलसी चुनाव में उनके किसी भी प्रत्याशी को जीतने नहीं देंगी चाहे इसके लिए उन्हें बीजेपी को समर्थन क्यों न देने पड़े।
उत्तर प्रदेश की 12 विधान परिषद (एमएलसी) सीटों पर चुनाव का ऐलान हो गया है। ऐसे में चर्चा शुरू हो गई है कि क्या राज्यसभा चुनाव का बदला मायावती एमएलसी चुनाव में ले पाएंगी।
दरअसल 12 सीटों में में से 10 सीटें बिना किसी लागलपेट के बीजेपी के पाले में जानी है जबकि एक सीट समाजवादी पार्ट की भी पक्की मानी जा रही है। बसपा और कांग्रेस अपने दम पर एक भी सीट जीतने की स्थिति में नहीं हैं।
बीजेपी 2022 के चुनाव से पहले 10 एमएलसी बनाकर अपने राजनीतिक समीकरण को साधने का दांव चलेगी। वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने मायावती के अलावा सबसे बड़ा संकट है कि वो एकलौती सीट के लिए किसे उच्च सदन भेजें?
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधान परिषद की ये 11 सीटें 30 जनवरी को खाली हो रही हैं जबकि एक सीट पहले से ही खाली है। यूपी की जिन 12 एमएलसी सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें से अभी 6 सीटें सपा के पास हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी के पास तीन, बहुजन समाज पार्टी के पास दो सीटें हैं। इसके अलावा एक नसीमुद्दीन सिद्दीकी की सदस्यता समाप्त हो जाने के चलते खाली हो रही।
यूपी विधानसभा में मौजूदा विधायकों की संख्या के आधार पर सपा सिर्फ एक सीट ही जीत सकती है। ऐसे में जाहिर है कि बाकी पांच सदस्यों का पत्ता साफ होगा। सपा के अहमद हसन, आशू मलिक, रमेश यादव, रामजतन राजभर, वीरेन्द्र सिंह और साहब सिंह सैनी के कार्यकाल पूरे हो रहे हैं. ये सभी सदस्य मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते हैं और अहमद हसन और रमेश यादव सपा के पुराने और दिग्गज नेताओं में शामिल हैं।
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साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा के लिए एक अनार और सौ बिमार वाली स्थिति खड़ी हो गई है। सपा के सामने अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव ही नहीं बल्कि पिछड़े वर्ग को साधकर रखने की चुनौती है। अभी जिन सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उनमें मुस्लिम यादव के साथ सैनी और राजभर जैसे समाज का प्रतिनिधित्व है। ऐसे अब सवाल उठता है कि इन छह में से अखिलेश यादव किसे उच्च सदन में भेजने के लिए चुनते हैं या फिर किसी नए सदस्य को भेजने का फैसला करते हैं।
वहीं, बीजेपी नेताओं में उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, यूपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और राज्य के बीजेपी उपाध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य का कार्यकाल 30 जनवरी को पूरा हो रहा है। उच्च सदन की एक सीट के लिए वोट काउंट 32 होगा और 309 विधायकों के साथ बीजेपी आसानी से 9 सदस्यों को भेज सकती है। इसके बाद भी बीजेपी के पास 21 वोट बचे रह जाएंगे। वहीं, 9 विधायकों वाले अपना दल (एस) की मदद से बीजेपी अपना 10वां उम्मीदवार भी उच्च सदन भेज सकती है।
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बसपा के प्रदीप जाटव और धर्मवीर सिंह अशोक भी विधान परिषद में अपना छह साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। हालांकि बसपा के पास महज दस सदस्य ही बचे हैं और जब तक उसे अन्य विपक्षी या बीजेपी का समर्थन नहीं मिलेगा, तब तक उच्च सदन में बसपा का एक भी सदस्य नहीं जा पाएगा। ऐसे में देखना होगा कि बसपा क्या स्टैंड लेती है। ऐसे में यूपी की 12 वीं विधान परिषद सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है।
बसपा प्रमुख मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि सपा को किसी भी सूरत में एमएलसी सीट नहीं जीतने देंगी, इसके लिए उन्हें बीजेपी को भी समर्थन करना पड़ेगा तो तैयार हैं। ऐसे में कांग्रेस, सपा, निर्दलीय और ओम प्रकाश राजभर मिलकर एक सीट जिताने की स्थिति में हैं, लेकिन इसके लिए बसपा के कुछ विधायकों का भी समर्थन जुटना जरूरी होगा।