पॉलीटिकल डेस्क
लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में मतदान के लिए चुनाव प्रचार मंगलवार शाम पांच बजे बंद हो जाएगा। पहले चरण में 11 अप्रैल को उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश समेत 20 राज्यों की 91 सीटों पर मतदान होगा।
राजनीति के केन्द्र बिंदु उत्तर प्रदेश में पहले चरण में 11 अप्रैल को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आठ सीटों पर मतदान होगा। इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर शामिल है।
2014 के चुनाव में बीजेपी को मिली थी जीत
इन सभी सीटों पर 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत का परचम लहराया था। फिलहाल इन सभी सीटों पर बीजेपी अपनी पकड़ बनाने के लिए जी-जान से जुटी हुई है, लेकिन विपक्षी पार्टियों की रणनीति की वजह से इन सीटों पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।
सहारनपुर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सहारनपुर लोकसभा सीट राजनीतिक और जातीय समीकरण के हिसाब से काफी मायने रखती है। इस चुनाव में यहां दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। 2014 लोकसभा चुनाव में ये सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी। मोदी लहर में बीजेपी के राघव लखनपाल ने बड़ी जीत दर्ज की थी। इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पास महागठबंधन का तोड़ निकालते हुए सीट को बरकरार रखने की चुनौती है। इस बार कांग्रेस ने पिछली रनर अप इमरान मसूद को फिर से मैदान में उतारा है तो वहीं गठबंधन की तरफ से भी प्रत्याशी मैदान में होगा।
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2014 में राघव लखनपाल को देशभर में चल रही मोदी लहर का बड़ा फायदा मिला था। लखनपाल ने अपने प्रतिद्वंदी को 65 हजार से अधिक वोटों से मात दी थी। यहां भारतीय जनता पार्टी का सीधा मुकाबला कांग्रेस के इमरान मसूद से था। इमरान मसूद 2014 में अपने बयानों के कारण काफी चर्चा में रहे थे। बीजेपी के राघव लखनपाल को कुल 472,999 (39.6 फीसदी) वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के इमरान मसूद को कुल 407,909 (34.2 फीसदी) वोट और तीसरे नंबर पर रहे बसपा के जगदीश सिंह राणा को कुल 235,033, (19.7 फीसदी) वोट मिले।
कैराना
कैराना लोकसभा सीट इस बार फिर से काफी अहम होने जा रही है। सपा बसपा और रालोद के गठबंधन में इस बार ये सीट सपा के कोटे में आई है। कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लडऩे का दम भर रही है, लिहाजा मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार हैं। लेकिन इस सीट के पिछले तीन चुनावों का इतिहास बताता है कि यहां के मतदाताओं ने हर बार नई पार्टी और नया सांसद चुना है।
2014 में मोदी लहर के बीच इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उनके निधन के बाद 2018 में हुए उपचुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार ने भारतीय जनता पार्टी को मात दी और समूचे देश को बड़ा संदेश भेजा। कैराना लोकसभा सीट पर मुख्यत: पूर्व सांसद हुकुम सिंह और हसन परिवार के बीच ही चुनावी मुकाबला होता रहा है। साल 2009 में हुए चुनाव में बसपा प्रत्याशी के तौर पर उतरीं तबस्सुम बेगम और बाबू हुकुम सिंह में सीधी टक्कर हुई।
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जाट और मुस्लिम वोटरों से प्रभावित इस सीट पर मई 2018 में उपचुनाव हुए। जब चुनाव लडऩे की बात आई तो विपक्ष ने एकता दिखाते हुए बीजेपी के खिलाफ संयुक्त उम्मीदवार उतारा। गोरखपुर-फूलपुर फॉर्मूले के तहत तबस्सुम हसन को मौका दिया गया और भारतीय जनता पार्टी की ओर से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा गया था लेकिन बीजेपी का इमोशनल कार्ड नहीं चल पाया। उपचुनाव से पहले और विधानसभा चुनाव के दौरान कैराना में पलायन के मुद्दे ने काफी सुर्खियां बटोरीं थीं।
मुजफ्फरनगर
मुजफ्फरनगर सीट पर समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) गठबंधन की तरफ से चौधरी अजित सिंह चुनाव मैदान में हैं। यहां बीजेपी और कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। यह चुनाव अजित सिंह की चौधराहट की असली परीक्षा लेगा। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद आरएलडी का वोट बैंक पूरी तरफ से बिखर चुका है। वर्ष 2013 में दंगे के बाद ध्रुवीकरण और मोदी लहर में बीजेपी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट 4,01,135 मतों से जीती थी। अभी आरएलडी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। अगर गठबंधन यह सीट निकाल लेता है तो यह चौधरी परिवार की राजनीति के लिए संजीवनी का काम करेगी। इस लिहाज से इस सीट पर पूरे देश की नजर रहेगी।
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मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव में भाजपा के संजीव बालियान को जीत मिली थी। संजीव कुमार बालियान को 653,391 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के कादिर राणा को पराजित किया था। कादिर को 252,241 वोट मिले थे। वहीं, तीसरे नंबर पर सपा के विरेंदर सिंह थे जिन्हें कुल 160,810 वोट मिले। मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर चार बार बीजेपी का कब्जा रहा है। वहीं, अब तक छह बार कांग्रेस के उम्मीदवार को जीत मिली है। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को एक बार जीत मिली है। एक बार सपा के उम्मीदवार को भी जीत मिली है।
बिजनौर
बिजनौर लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की सबसे वीआईपी सीटों में से एक मानी जाती है। इस सीट पर कई राजनीतिक दिग्गज अपनी किस्मत आजमा चुके हैं, फिर चाहे वह बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती हों या फिर लोक जनशक्ति पार्टी के राम विलास पासवान, पिछले लोकसभा चुनाव में ही बॉलीवुड अदाकारा जयाप्रदा ने भी यहां से चुनाव लड़ा था। हालांकि मोदी लहर में यह सीट को भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी। बीजेपी के कुंवर भारतेंद्र सिंह ने यहां 2014 में 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी।
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इस सीट पर एक बार फिर बीजेपी जीत का परचम लहराने की तैयारी में है लेकिन विपक्षी दलों की रणनीति से मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। 2014 के चुनाव में कुंवा भारतेंद्र सिंह को कुल 486913 (45.9फीसदी) वोट मिले थे। वहीं सपा के शाहनवाज राना को 281136 (26.5फीसदी), बसपा के मलूक नागर को कुल 230124, (21.7फीसदी) और राष्ट्रीय लोकदल की जयाप्रदा को कुल 23348 (2.3फीसदी) वोट मिला था।
मेरठ
मेरठ लोकसभा सीट राजनीतिक संदेश के हिसाब से अहम सीट मानी जाती है। पिछले दो दशकों से यह सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती रही है। बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल यहां से लगातार दो बार सांसद चुने जा चुके हैं। इस बार बीजेपी किसे मैदान में उतारेगी इसे लेकर तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। फिलहाल ऐसी चर्चा है कि बीएसपी यहां से विवादित छवि वाले हाजी याकूब कुरैशी को चुनाव लड़ा सकती है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस यहां से किसी फिल्म स्टार को मैदान में उतार सकती है।
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बीजेपी के लिए इस सीट पर गठबंधन थोड़ी मुश्किल खड़ी कर सकती है। हालांकि बीजेपी इस सीट पर तीसरी पर विजय पताका फहराने के लिए कमर कस चुकी है। 2014 लोकसभा चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल को कुल 532,981 (30 फीसदी) वोट मिला था तो वहीं बसपा के मो शाहिद अख्लाक को 300,655 (17 फीसदी) और सपा के शाहिद मंज़ूर को 211,759 (12 फीसदी) वोट मिला था। चूंकि सपा-बसपा का गठबंधन है तो सपा का वोट बसपा को जाना तय है। यदि सपा का पूरा वोट बसपा को चला गया और बसपा अपना वोट सहेजने में कामयाब रही तो निश्चित ही बीजेपी की राह कठिन हो सकती है।
बागपत
पिछले लोकसभा चुनाव में आरएलडी को यहां से बड़ा झटका लगा था। चुनाव में पार्टी प्रमुख अजित सिंह को यहां से हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने इस सीट से 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की। इस बार इस सीट पर पूरे देश की नजर रहेगी। यहां से गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर जयंत चौधरी मैदान में हो सकते हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी यहां से एक बार फिर सत्यपाल सिंह को मौका दे सकती है। गठबंधन के लिहाज से देखें तो बीजेपी के सामने इस बार कड़ी चुनौती होगी। जयंत चौधरी के दादा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से 1977, 1980 और 1984 में लगातार चुनाव जीते हैं। जयंत के पिता और आरएलडी अध्यक्ष अजित सिंह 6 बार 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में बागपत से सांसद रहे।
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2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सत्यपाल सिंह को कुल 423,475 (28फीसदी) वोट मिला था। वहीं सपा के गुलाम मोहम्मद को 213,609 (14फीसदी) और आरएलडी के अजित सिंह को 199,516 (13फीसदी) वोट मिला था। यदि यहां गठबंधन अपना वोट सहेजने में कामयाब रही तो निश्चित ही बीजेपी को बड़ी चुनौती मिलेगी।
गाजियाबाद
देश की राजधानी दिल्ली से सटी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा है। इस सीट पर दो बार ही लोकसभा चुनाव हुए हैं और दोनों ही बार ये सीट बीजेपी के खाते में गई है। गाजियाबाद लोकसभा सीट की गिनती प्रदेश की वीआईपी सीटों में होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सेंटर के तौर पर भी गाजियाबाद सीट अहम मानी जाती है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह अभी इस सीट से सांसद हैं।
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पहली बार 2009 में जब यहां से चुनाव हुए तो मौजूदा केंद्रीय मंत्री और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने यहां से बड़े अंतर से चुनाव जीता था लेकिन 2014 में राजनाथ सिंह लखनऊ से चुनाव लडऩे चले गए तो यहां से वीके सिंह को टिकट दिया गया और उन्होंने जीत हासिल की। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के वीके सिंह को कुल 758,482 (32फीसदी) वोट मिला था तो वहीं कांग्रेस के राज बब्बर को 191,222 (8फीसदी) और बसपा के मुकुल को 173,085 (7फीसदी) वोट मिला था। फिलहाल यहां यदि बीजेपी अपना वोट बैंक सहेजने में कामयाब होती तो यहां कमल खिलना तय है।
गौतमबुद्ध नगर
राजधानी दिल्ली से सटी उत्तर प्रदेश की गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में से एक है। इस सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है। यहां से सांसद महेश शर्मा केंद्र सरकार में मंत्री हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में गौतम बुद्ध नगर का विस्तार हुआ, जिसके बाद से ही ये क्षेत्र हमेशा सुर्खियों में रहा है।
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इस सीट पर गुर्जर समाज के वोटरों की संख्या अधिक है, ऐसे में लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सभी की नजरें हैं। 2015 में हुए दादरी कांड के दौरान इस क्षेत्र ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के महेश शर्मा को कुल वोट 599,702 (50फीसदी) मिला था तो वहीं सपा के नरेंद्र भाटी को 319,490 (26.6फीसदी) और बसपा के सतीश कुमार को कुल 198,237 (16.5 फीसदी) वोट मिला था। फिलहाल यहां बीजेपी को गठबंधन से चुनौती मिलती दिख रही है। यदि सपा अपना वोट बैंक बसपा की ओर ट्रांसफर कर पायी तो बीजेपी के लिए डगर मुश्किल होगी।