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तालाबों का गहरीकरण करने वाले श्रमिकों को मिल रहा ये इनाम

रूबी सरकार

प्रकृति प्रदत्त बुंदेलखण्ड जल संरचनाओं के लिए विख्यात था। तब के राजाओं ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए जल संरचनाओं की ऐसी संस्कृति विकसित की, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है। चंदेल और बुंदेली राजाओं ने जगह-जगह पर तालाब, कुएं जैसे अनेक जल संरचनाओं का निर्माण करवाया था, जो कालांतर में अतिक्रमण के चलते सिकुड़ते चले गये।

वर्तमान में यहां भू-जल स्तर 200 से 300 फीट नीचे पहुंच चुका है। यहां तक, कि कई आधुनिक हैण्डपम्पों ने भी पानी उगलना बंद कर दिया है। इस तरह पहले गर्मी अब तो सर्दियों में भी ग्रामीणों को सूखा और जल संकट झेलने पड़ रहे हैं।

टीकमगढ़ जिले का बलदेवगढ़ विकास खण्ड भी इससे अछूता नहीं है। टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर बलदेवगढ़ में दो दर्जन छोटे एवं बड़े ऐसे तालाब है, जो कभी खेती के साथ ही क्षेत्र के भूमिगत जल स्तर को बनाए रखने में सक्षम थे। लेकिन अनियमित वर्षा के कारण इन तालाबों में से केवल बड़े तालाब ही गर्मी के मौसम तक पानी की आपूर्ति कर पा रहे हैं।

यह स्थिति वर्ष 2013 से लगातार बनी हुई है। इस साल भी औसत से लगभग आधी बारिश ने यहां के लोगों को चिंता में डाल दिया है, कि कहीं फिर से उन्हें सूखे का सामना न करना पड़े।

दूसरी तरफ कोरोना महामारी के कारण यहां के गरीब और मजदूरों की आजीविका पर भी संकट है। दोनों मूलभूत आवष्यकताओं की पूर्ति तथा भटक रहे ग्रामीणों के लिए गैर लाभकारी संस्था परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने एक अच्छी पहल शुरू की है, जिसके तहत ग्रामीणों को आजीविका भी मिल जाये और उन्हें पानी भी उपलब्ध हो।

संस्था ने पहले बलदेवगढ़ विकास खण्ड के कई गांवों में पानी पंचायत समिति का गठन किया, इसके बाद समिति के सदस्यों को जिम्मेदारी दी, कि वे क्षेत्रीय तालाबों का गहरीकरण ग्रामीणों से करवाये।

समिति के संयोजक रमाकांत राणा का कहना है, कि संस्थान द्वारा गांव-गांव में पानी पंचायत समिति का गठन किया गया। टीकमगढ़ में करीब 40 पानी पंचायत गठित की गई हैं, जो गांव में जल स्रोतों के संरक्षण एवं तालाबों के गहरीकरण का काम कर रहे हैं।

साथ ही ग्रामीणों केा जल संरक्षण तथा पर्यावरण से संबंधित शिक्षा भी दे रहे हैं, जिससे धरती के पेट में पानी जाये और वातावरण स्वच्छ हो। इस प्रशिक्षण से ग्रामीण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के प्रति भी जागरूक हो रहे हैं।

संस्थान द्वारा जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का यह काम पिछले 6 माह से चल रहा है।, इस काम के लिए ग्रामीणों को संस्थान की ओर से राषन सामग्री दी जा रही है। इस तरह संस्था ने सैकड़ों परिवारों को अब तक आजीविका के साधन मुहैया करवाये हैं।

बलदेवगढ़ विकास खण्ड के तमोरा तालाब के पास निवास करने वाली रैकवार समुदाय की रत्तीबाई बताती हैं, कि इस साल कम बारिश के चलते तमोरा तालाब का भराव कम है, इसलिए शासन ने सिंचाई के लिए इसमें से पानी निकालने पर रोक लगा दी है।

पिछले साल पानी की कमी के चलते अधिकतर मछलियां मर गई थीं । गांव में करीब ढाई सौ एकड़ भूमि पर खेती होती है, जिसमें से लगभग 100 एकड़ भूमि की सिंचाई इसी तालाब के पानी से की जाती है।

शासन द्वारा तालाब से पानी निकासी पर रोक के कारण इस बार यहां के लोगों ने कम पानी वाले अनाज बोए हैं । जिसके पास निजी कुआं या बोरबेल है, उन्हें ही अच्छी उपज मिलने की उम्मीद है।

फूलाबाई बताती हैं, कि संस्थान की ओर से वर्ष 2016, 2018 एवं 2019 में इस तालाब का गहरीकरण करवाया गया । तालाब के आस-पास रैकवार समुदाय के सौ परिवार हैं, इनके आजीविका का मुख्य साधन खेती के अलावा मछली पालन है।

तालाब से सिंचाई के लिए पानी लेने पर रोक के कारण गांव में अधिकतर लोग पलायन पर जा रहे हैं। क्योंकि बाहर उन्हें दिहाड़ी मजदूरी पर रोज 300 रूपये मिलते हैं, जबकि मनरेगा में 200 रूपये प्रतिदिन मजदूरी निर्धारित है।

जल-जन जोड़ो के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह बताते हैं, कि औसत से कम बारिश का प्रभाव बुंदेलखण्ड में दिखाई देने लगा है। यहां जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। अभी नवम्बर के महीना खत्म हुआ है और हैण्डपम्प में 3 से 5 मीटर नीचे जल स्तर चला गया है। बोरबेल में भी जलस्तर तेजी के साथ नीचे जा रहा है। जिस तेजी के साथ जल स्तर नीचे गिर रहा है।

उससे अप्रैल, मई,जून के मीने इस इलाके में बहुत अधिक कठिन होंगे। उन्होंने बुंदेलखण्ड के लोगों से अपील की है, कि वे पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर रखें जिससे आने वाले संकट में पानी जैसी अति आवश्यक जरूरत को पूरा कर सके।

बुंदेलखण्ड को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए जिस केन-बेतवा लिंकिंग परियोजना पर काम चल रहा है। इस परियोजना पर अपनी राय रखते हुए विशेषज्ञ डॉ काशी प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं, कि वर्तमान केन-बेतवा लिंकिंग से छतरपुर, बिजावर, बड़ा मलहरा, बल्देवगढ़, टीकमगढ़ निवाड़ी जतारा को पानी नहीं दिया जा सकेगा।

डॉ त्रिपाठी का मानना है, कि बेतवा-केन लिंक करना है तो चंदेरी के राजघाट बांध के बायें भाग से एक बड़ी नहर ललितपुर महरौनी, टीकमगढ़ के पूर्वी अंचल से गुजगंज, बिजावर अंचल से सटई क्षेत्र से बसारी के पूर्वी अंचल से बरियारपुर पर केन नदी से लिंक करना होगा।

इससे बेतवा की बाढ़ का अतिरिक्त पानी राजघाट बांध से नहर के माध्यम से केन में, मध्य क्षेत्र के तालाबों-नालों को भरता हुआ जा पहुंचेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो बुंदेलखण्ड हमेशा सूखा अकाल भोगने के लिए अभिशप्थ रह जायेगा।

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उल्लेखनीय है, कि बुंदेलखण्ड में चंदेलों और बुंदेली राजाओं के शासन काल में गबरबंद तकनीक से बरसात के पानी को संचित कर सैकड़ों तालाबों का निर्माण किया गया था। तकनीकी कौशल के लिए देशज ज्ञान तथा जल प्रवाह की मात्रा एवं वेग की गहरी समझ का उपयोग किया गया था।

राजा विक्रमादित्य ने इसी आधार पर बलदेवगढ़ क्षेत्र में बने तालाबों को लिंक किया गया था, जिससे एक तालाब के भरने के बाद अन्य तालाबों में पानी अपने-आप भरने में मददगार होते थे। इन तालाबों का पानी कृषि कार्य और दैनिक उपयोग में लाया जाता था। उस समय चंदेलों और बुंदेली राजाओं द्वारा बनाई तालाबों की लिंक योजना सार्थक रही है।

बताते चले, कि चंदैली राजाओं ने भविष्य को ध्यान में रखते हुए इन तालाबों का निर्माण करवाया था। बड़े तालाबों से पानी उसके नीचे बने अन्य तालाबों में पहुंचता था। प्रत्येक तालाब अपने नाम से पहचाने जाते थे। जैसे- गुखरई तालाब पूरा भरते ही पानी तालमड तालाब के लिए अपने-आप छोड़ देता था। कई दिनों की बारिश होने पर पानी ग्वालसागर सरोवर में पहुंचता था।

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बलदेवगढ़ का ग्वाल सागर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तालाब है, जिसका भराव क्षेत्र दस-बारह किलोमीटर की परिधि में है। जल सुविधा के कारण इसके किनारे-किनारे जन बस्तियां बस गई थी। यहां के पानी से जुगलसागर, धर्मसागर, जटेरा, सरकनपुर जैसे तालाबों में पानी पहुंचता था। इस तरह की जल संरचनाएं अब अतिक्रमण के भेंट चढ़ चुके हैं।

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