जुबिली न्यूज डेस्क
अमेरिका में 3 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है। कई लोग इस चुनाव को अमरीकी इतिहास के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बता रहे हैं।
इस बार का चुनाव वाकई महत्वपूर्ण है। अमेरिका में अभी जो हालात है और उस स्थिति में चुनाव होना वाकई दिलचस्प है। यहां कोरोना महामारी की वजह से अब तक दो लाख लोगों की मौत हो चुकी है। मौतों का सिलसिला अभी भी जारी है।
इतना ही नहीं कोरोना महामारी की वजह से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान हुआ है। लाखों की संख्या में लोगों की नौकरियां कई गई हैं। अमरीका इस हालात में राजनीतिक और सामाजिक रूप से बंटा रहा। इसके अलावा भी और कई समस्याएं चल रही हैं।
इन समस्याओं की वजह से ही राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप नहीं चाहते थे कि चुनाव समय पर हो। वह चुनाव टालने के फिराक में थे पर ऐसा नहीं हुआ।
ये भी पढ़े: फिर सवालों के घेरे में आई रूस की कोरोना वैक्सीन
ये भी पढ़े: अब उत्तराखंड के पिथौरागढ़ को नेपाल ने बताया अपना
अमेरिका चुनावी मूड में है। राजनीतिक दल पूरी ताकत के साथ मतदाताओं को प्रभावित कर अपने पक्ष में करने में लगे हुए है। तीन नवंबर को ही अमेरिका के कई राज्यों में भी चुनाव होना है और इस चुनाव में अमेरिका की ही नहीं बल्कि कई भारतीय और पाकिस्तानी मूल की महिलाएं किस्मत आजमा रही हैं।
इन सभी की किस्मत का फैसला तीन नवबंर को होना है। इस कोरोना संकट के बीच ये महिलाएं अपने चुनाव अभियान में जुट गई हैं। आइये जानते हैं वो कौन सी भारतीय और पाकिस्तानी मूल की महिलाएं है जो चुनाव लडऩे जा रही हैें।
सैन रैमन के मेयर पद के लिए मैदान में हैं सबीना जफर
सबीना जफर पाकिस्तानी अमरीकी हैं। उनके पिता राजा शाहिद जफर बेनजीर भुट्टो सरकार में पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। सबीना फिलहाल वाइस मेयर हैं और अब सैन रैमन के मेयर पद के लिए मैदान में हैं।
सैन रैमन पश्चिम कैलिफोर्निया राज्य में सैन फ्रांसिस्को से करीब 35 मील पूरब में स्थित एक ख़ूबसूरत शहर है। विविध आबादी वाले इस शहर की जनसंख्या 82 हजार है और इसमें लगातार इजाफा हो रहा है।
सबीना शादी के बाद अमरीका आईं और वो सैन रैमन में रहने लगीं। बीबीसी के अनुसार राजनीति में उनकी एंट्री कैसे हुई? के सवाल पर वह कहती है कि मैं अपने पिता के कामों की प्रशंसा होते देखते पली बढ़ी हूं। सात-आठ साल पहले सांसद एरिक स्वालवेल के साथ काम करने के दौरान मेरे अंदर सोया समाज सेवा का जुनून बाहर आया।
ये भी पढ़े: ‘वर्क फ्रॉम होम’ मोड में ट्रांसफर से बच गई लाखों नौकरियां, लेकिन…
ये भी पढ़े: उपचुनाव से पहले कांग्रेस ने बीजेपी को दिया बड़ा झटका
सबीना यहां की सिटी काउंसिल में जगह बनाने वाली पहली एशियाई अमरीकी हैं। सबीना कहती हैं कि सैन रैमन में 52 फीसदी लोग काले हैं और यह बीते 10-15 सालों में हुआ है।
कैसे शुरुआत हुई इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं, एक परिचित ने इमर्ज कैलिफोर्निया नाम के एक प्रोग्राम के बारे में बताया जिसे डेमोक्रेट महिलाओं को चुनाव में उतरने के लिए ट्रेनिंग देने के लिए डिजाइन किया गया था। इस ट्रेनिंग में अलग अलग पृष्ठभूमि की लगभग 40 महिलाएं शामिल थीं।
वह कहती है 2018 में सिटी काउंसिल में जगह बनाई और नवंबर 2019 में एक साल के लिए डिप्टी मेयर नियुक्त की गईं। सबीना सुरक्षा, ट्रैफिक, जलवायु परिवर्तन और कुछ अहम स्थानीय मुद्दे हैं जिस पर वो काम करना चाहेंगी।
नेवादा राज्य असेंबली डिस्ट्रिक्ट 2 के लिए मैदान में राधिका कुन्नेल
राधिका भारतीय अमेरिकी है। वह एक वैज्ञानिक हैं। राधिका 1996 में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पीएचडी करने अमरीका आईं और उनका थीसिस कैंसर बायोलॉजी पर था। बाद में, वो एक प्रवासी के तौर पर अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गईं।
राजनीति में कैसे आना हुआ के सवाल पर वह 11 सितंबर 2001 (9/11) के उस दिन को याद करती हैं।
राधिका कहती हैं कि वो मंगलवार का दिन था। मैं उस दिन किसी को टैक्स्ट कर रही थी। तभी मैंने लैब में काम कर रहे सहयोगियों को जोर-जोर से ‘ओह माइ गॉड, ओह माइ गॉड…’ कहते सुना।”
राधिका आगे कहती हैं, दुनिया भर के टीवी नेटवर्क ट्विन टावर्स से निकलते भयावह लहराते धुंए की तस्वीरें दिखा रहे थे। उसके बाद, मैंने ऐसी भी बातें सुनी कि अपने देश वापस जाओ। वो पड़ोसी जो पहले बहुत ज्यादा फ्रैंडली थे, अब फ्रैंडली नहीं रह गए, यहां तक कि उन्होंने हमसे बातचीत तक बंद कर दी थी।
वो कहती हैं, इसका मुझ पर इतना प्रभाव पड़ा कि बाद के समय में मैं और अधिक संवेदनशील हो गई और साथ ही इस बात की हिमायती भी कि हमारा प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
राजनीति में उतरने का दूसरा कारण वो विधायिका में वैज्ञानिकों के कम प्रतिनिधित्व को भी बताती हैं। राधिका स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के साथ ही राज्य में विविधता को और बेहतर बनाना चाहती हैं।
कैलिफोर्निया के अरवाइन शहर में मेयर की चुनावी दौड़ में शामिल है फराह
फराह खान जब तीन साल की थी तब अमरीका आईं थीं। उनकी मां लाहौर और पिता कराची से हैं। 2004 में दक्षिण कैलिफोर्निया में आने से पहले वो शिकागो और सैन फ्रांसिस्को में पली बढ़ीं।
स्थानीय गैर लाभकारी संस्थाओं के साथ उनके काम करने के दौरान उन्होंने सिटी काउंसिल की सदस्यता के लिए उतरना तय किया। 2016 में वो मैदान में उतरीं और हार गईं। उससे उन्हें खूब अनुभव मिला।
ये भी पढ़े: आखिर क्यों हो रहा कृषि बिल का विरोध
ये भी पढ़े: महिला पत्रकारों ने महामारी के दौरान रिपोर्टिंग के अनुभवों को साझा किया
फराह कहती हैं, “जब आप चुनाव लड़ रहे होते हैं, लोगों को लगता है कि यह बेहत प्रतिष्ठा की बात है लेकिन यह वाकई कठोर होता है। आपको कई तरह की बातें सुनने को मिलती हैं, जैसे हो सकता है यह शहर इतनी विविधता के लिए तैयार ही न हो और आप पूछते हैं कि इसका क्या मतलब है?”
फराह कहती हैं कि “फिर आप ये भी सुनते हैं कि आपके जैसे नाम के लोग शायद न चुने जाएं। तो आप सवाल करते हैं, हमारे पीछे आ रहे लड़के लड़कियों से कि वो क्या सोच रहे हैं। जब राजनीति में अपना प्रतिनिधित्व नहीं देखते हैं तो उन्हें क्या लगता है।”
फराह कहती हैं, “यही मेरे लिए प्रेरणा बन गई और मैं एक बार फिर 2018 में मैदान में उतरी और जीत गई।”
फराह का मकसद है लोगों को आपस में जोडऩा और एक साथ लाना।
पद्मा कुप्पा: मिशिगन राज्य में ट्रॉय और क्लॉसन का फिर से प्रतिनिधित्व करने की रेस में
पद्मा कुप्पा भारतीय अमरीकी हैं। वह 70 के दशक में अपनी मां के साथ अमरीका गईं थी। उनके पिता पहले से ही वहां रह रहे थे।
पद्मा को किताबें पढऩे का शौक है। वह लेखिका और गणित पसंद करने वाली महिला हैं। इसलिए जब 1981 में उनके माता-पिता ने भारत वापस लौटने का फैसला किया तो उन्हें लगा कि उनके मौजूदा विकल्प उनसे छीन लिए गए हों। तब वो 16 बरस की थीं।
लेकिन पद्मा 1998 में मास्टर्स करने के लिए फिर अमरीका वापस लौट आईं। उनके पिता और भाई दोनों पीएचडी हैं।
पद्मा कहती हैं, “जब मैं मिशिगन आई तो यहां के लोग अन्य संस्कृतियों के लोगों से परिचित नहीं थे। हम अन्य हैं क्योंकि हम अप्रवासी के रूप में अलग रहते हैं। पद्मा का करियर इंजीनियर और एक अनुभवी प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में ऑटोमोटिव, फाइनैंस और आईटी इंडस्ट्री में रहा है।
पद्मा महानगर डेट्रॉयट के स्थानीय भारतीय मंदिर में स्वेच्छा से काम करते हुए विभिन्न धर्मों से जुड़ा काम किया। वह कहती हैं मैंने मंदिर में स्वेच्छा से काम किया क्योंकि मैं चाहती थी कि बच्चे अपनापन महसूस करें, क्योंकि आप ऐसी जगह पर हैं जहां सभी ब्राउन हैं, आप उनके बीच आराम से गुम हो जाते हैं। यहां आपको आराम और अपनापन मिलता है।”
“मैं चाहती थी कि वो हिंदू धर्म को अपने संपूर्ण रूप में समझें, न कि जैसा कि हम अपने घरों में करते हैं और उस पर बातें भी नहीं करते। ”
2018 में वो चुनाव जीती थीं और फिर से चुनावी मैदान में हैं। स्थानीय राजनीति के नेताओं के लिए लोगों से मिलने के दौरान उन्हें काफी अनुभव प्राप्त हुआ।
ये भी पढ़े: अर्थव्यवस्था को लेकर आरबीआई गर्वनर ने फिर जताई चिंता
ये भी पढ़े: राज्यसभा में कांग्रेस ने उठाया ‘चीन की निगरानी’ का मुद्दा
ये भी पढ़े: भारतीय कंपनियों में चीन का है एक अरब डॉलर का निवेश