ओम कुमार
एक तरफ सरकार जहाँ प्रदेश के बेरोजगारों को सरकारी नौकरी देने के लिए तत्परता एवम पारदर्शी तरीके से कार्य करने के लिए रोज घोषणाएं कर रही है। वहीं, दूसरी ओर एक निदेशालय ऐसा है जो चयनित हुए अभ्यर्थियों की नियुक्ति को लटकाये रखा है।
मामला अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से चयनित 845 सहायक लेखाकारों का है जिनकी नियुक्ति निदेशक आन्तरिक लेखा एवम लेखा परीक्षा द्वारा की जानी है। नियुक्ति की आस लगाये एक लेखाकार ने बताया कि मनचाही जगह नियुक्ति देने के नाम पर 50,000 रुपए की मांग की जा रही है।
नव चयनित इस लेखाकार ने अपना दर्द बयां करते हुए यह भी कहा कि पैसे की डिमांड पूरी न करने पर निदेशालय द्वारा सत्यापन एवं पुलिस वेरिफिकेशन के नाम पर नियुक्ति को अब तक लटकाया जा रहा है। 16 अक्टूबर 2019 से अब तक नियुक्त न करना इस आरोप को पुष्ट करने के लिये काफी है।
क्या है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग, लखनऊ के विज्ञापन संख्या -12-परीक्षा / 2016 द्वारा सहायक लेखालेखाकार/ लेखा परीक्षक की सम्मिलित प्रतियोगिता परीक्षा 2016 के अंतर्गत आयोजित की गई थी। इसके बाद न्यायालय में वाद दाखिल होने के कारण की चयन प्रक्रिया में काफी विलंब हो गया।
कई वर्ष बाद उत्तर प्रदेश अधीनस्थ चयन सेवा आयोग, लखनऊ के आदेश संख्या 104/18/कम्प्यूटर अनुभाग/2016/12 परीक्षा/2016 दिनांक 16-10-2019 में सहायक लेखाकार के पद पर 845 अभ्यर्थियों का अंतिम रूप से चयन किया गया और आंतरिक लेखा/लेखा परीक्षा निदेशालय को इनकी इनकी पूरी सूची उपलब्ध करा दी गई ताकि यह उनकी तत्काल नियुक्ति कर सकें।
सूत्रों के अनुसार आयोग के माध्यम से अन्य विभागों में जहां भी चयन परिणाम भेजा गया वहां तत्काल नियुक्तियां की गई है तथा अन्य प्रकियाएं बाद में पूरी की गई है। लेकिन आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय मनचाहे जिलों और विभाग में पोस्टिंग देने के लिए 50,000 रुपए की डिमांड कर दी है और नियुक्ति को लटका दिया गया है, इस कारण अभ्यर्थियों में काफी रोष और निराशा व्याप्त है।
इसके लिए मुख्य रूप से निदेशालय में तैनात एक अपर निदेशक स्तर के अधिकारी का नाम आ रहा है। जिसने खुलेआम रिश्वत की डिमांड की है।
रिश्वत के बगैर नहीं होता कोई काम
आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय में इसकी स्थापना के समय से ही भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। विभागों में आडिट के कार्यक्रम एप्रूव्ड करने, विभागों में मनचाही पोस्टिंग के लिये धनराशि लिये जाने की बात आम है। अब तो कर्मचारियों की फर्जी शिकायतों की पुष्टि कराये बिना ही, कारवाई के नाम पर यहां के अधिकारी ,कर्मचारी पर दबाव बनाने की बात भी सामने आ रही है।
बोगस आडिट रिपोर्टों और आडिटरों पर नही होती है कारवाई-
निदेशालय हर साल आडिट रिपोर्ट विभागों से उनकी गुणवत्ता की समीक्षा के लिये मंगाता है, लेकिन आज तक इन रिपोर्टों की समीक्षा नहीं हुई। चर्चा है कि विभागों के आडिट कार्यक्रमों को स्वीकृत करने में भारी रिश्वत लिया जाने लगा और इसी लिये आज तक विभागों की बोगस आडिट रिपोर्टों और सतही आडिट रिपोर्ट देने वाले आडिटरों की पहचान करके उनके ऊपर कोई कारवाई नहीं की गयी।
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अभी पिछले सत्र में स्थानांतरण के लिये निदेशालय के एक कर्मचारी (लेखाकार) का नाम सामने आया था जिसके माध्यम से दलाली करके निदेशक आंतरिक लेखा परीक्षा को ट्रांसफर के लिए पैसे देने का बात सामने आई थी।
इस तरह से आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग में भ्रष्टाचार पूरी तरह फैल चुका है। देखना है कि रोजगार देने के बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार सहायक लेखाकारों की नियुक्ति को, रिश्वत के फेर में लटकाने और नियमानुसार तत्काल नियुक्ति देने के लिए निदेशालय के अधिकारियों पर क्या कारवाई करती है। चार साल से नौकरी की बाट जोह रहे बेरोजगारों की नौकरी के साथ नियुक्ति के नाम पर चल रहा ऐसा खेल उनके मन मे सरकार की क्या छवि बनाएगा, यह विचारणीय जरूर है।