सुरेंद्र दुबे
केंद्रीय नौकरशाही के हिस्से में लैटरल एंट्री (भारतीय प्रशासनिक सेवा से इतर के अधिकारियों की एंट्री) की इजाजत देने की केंद्र सरकार की पहल ने एक जटिल बहस को फिर से सुलगा दिया है, जिस पर कम से कम दो दशकों से जब-तब चर्चा होती रही है।
लोकसेवकों का एक बड़ा तबका इस विचार के पूरी तरह से खिलाफ रहा है। हालांकि वे भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में विशेषज्ञता की जरूरत को स्वाकार करते हैं। इस विचार के पैरोकारों का मानना है कि इससे सरकारी कामकाज में नई ऊर्जा आएगी और इससे नौकरशाहों की कमी को पूरा किया जा सकेगा।
मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले लैटरल एंट्री के तहत नौ ऐसे लोगों की नियुक्ति संयुक्त सचिव पदों पर की जो किसी प्राइवेट संस्थानों में बड़े पदों पर आसीन थे। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि मोदी सरकार के ये नौ रत्न भविष्य में क्या गुल खिलाएंगे।
वैसे तो इस देश में परंपरा रही है कि विशेष प्रतिभावन व्यक्तियों को सरकार विशिष्ट कार्यो के लिए चयनित करती रही है और उसके एक्सपर्टीज का फायदा उठाने के लिए सरकार में अहम पदों पर सुशोभित करती रही है परंतु इस तरह की नियुक्तियां एक कैडर बनाने के लिए कभी नहीं की गई। आपमें विशेष क्षमता है और देश को जरूरत है तो आपको महत्वपूर्ण पद दे दिया जाएगा और आपकी गतिविधियां एक दायरे तक ही सीमित रहेंगी।
इस क्रम में हम नाम लेना चाहे तो मिसाइल मैन अब्दुल कलाम, सूचना क्रांति के जनक सैम पित्रोदा, श्वेत क्रांति के पुरोधा वर्गीज कुरियन के नाम लिया जा सकता है। हाल ही में विदेश मंत्री बनाए गए एस जयशंकर को भी आप इस कड़ी में जोड़ सकते हैं, जिन्हें विदेश मंत्री बनाया गया है। ये बात अलग है कि वे ब्यूरोक्रेसी से मंत्री बनाए गए है किसी जगह से लाकर ब्यूरोक्रेट नहीं बनाए गए हैं।
विशिष्ट प्रतिभा वाले लोगों को अपने सलाहकार मंडल या मंत्रिमंडल में शामिल करने की परंपरा अनाधिकाल से रही है। आपने महान सम्राट अकबर का नाम सुना होगा। उनकी दरबार में नौ रत्न थे। ये है वो नौ रत्न :-
- बीरबल: दरबार के विदूषक और अकबर के सलाहकार थे।
- अबुल फ़ज़ल: अबुलफज़ल ने अकबर के काल को क़लमबद्ध किया था।
- टोडरमल: राजा टोडरमल अकबर के वित्त मंत्री थे।
- तानसेन: इनका असली नाम तन्ना मिश्रा था। इन्होनें हजरत मुहम्मद गौस से संगीत सीखा था। यह अकबर के दरबार में एक प्रमुख संगीतकार थे।
- मानसिंह: ये अकबर की सेना में एक सेनापति थे और अकबर के ससुर भारमल के पौत्र थे।
- अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना: एक मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रयदाता, दानवीर, कूटनीतिज्ञ, बहुभाषाविद, कलाप्रेमी, एवं विद्वान थे।
- मुल्ला दो प्याज़ा: इन्होंने अकबर के लिए एक सलाहकार के रूप में काम किया।
- हक़ीम हुमाम: यह खत (लिपि) पहचानने में और कविता समझने में अपने समय के एक विशेषज्ञ थे।
- फैजी: राजा अकबर ने इन्हें अपने बेटे के गणित शिक्षक के पद पर नियुक्त किया था।
इन रत्नों की इतिहास में बड़ी चर्चा रही है। अब यह प्रयोग केंद्र सरकार ने भी शुरू किया है। राजशाही भले न हो पर भारत जैसे दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री ने भी इस अभिनव तकनीक को अपनाया है।
ये नौ लोग अंबर दुबे, काकोली घोष, सुजित कुमार बाजपेयी, दिनेश दयानंद जगदले, सौरभ मिश्रा, राजीव सक्सेना, अरुण गोयल, सुमन प्रसाद सिंह, भूषण कुमार है। ये सभी नियुक्तियां लोकसभा चुनाव के पूर्व केंद्र सरकार के द्वारा संयुक्त सचिव के पदों पर की जा चुकी हैं।
केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव बड़े आईएएस संवर्ग का पद होता है, जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते हैं। ये लोग मुख्यत: सरकार की नीतियों के निर्धारण व कार्यान्व्यन के लिए उत्तरदायी होते हैं।
अब ये पद जब सभी गैर आईएएस अधिकारियों के जरिए भर दिए गए हैं। यानी की आईएएस अधिकारियों के बड़े पर मचान चढ़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम हो गई हैं। ये एक शुरूआत थी अब डिप्टी सेक्रेटरी के पदों पर भी निजी क्षेत्रों से लोग लाए जा रहे हैं, जिनके कुछ पदों के लिए नीति आयोग ने विज्ञापन भी जारी कर दिए हैं। कुल मिलाकार निजी क्षेत्र के 400 विशेषज्ञों की भर्ती की जानी है।
यानी केंद्र सरकार की नौकरशाही में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसे अफसरों का हो जाएगा जो न तो आईएएस हैं न आईपीएस और न ही आईआरएस। यानी की प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले होनहार अब हाथ मलकर रह जाएंगे, उनके लिए अवसर आगे चलकर और भी कमतर होते जाएंगे।
तर्क ये दिया जा रहा है कि निजी क्षेत्रों में काम करने वाले ऐसे तमाम अफसर हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में सरहानीय कार्य कर सकते हैं। परंतु वे किसी प्रशासकीय संवर्ग के नहीं हैं इसलिए सरकार ऐसे लोगों का उपयोग नहीं कर पाती है।
इस बात में दम हो सकता है परंतु ये भी देखना होगा कि ऐसे अफसरों की निष्ठा उन व्यापारी घरानों के प्रति होती है जो उन्हे सेवायोजित करते हैं। परंतु सरकार अफसरों की निष्ठा संविधान व जनता के प्रति होती है। इसलिए उनका दृष्ठिकोण ज्यादा जनोन्मुख होता है।
इस व्यवस्था के और भी खतरे हैं। निचले स्तर पर भी अपनी पंसद के कर्मचारियों व अधिकारियों की भर्ती का सिलसिला शुरू हो जाएगा। और इस तरह एक समानंतर नौकरशाही राज करने लगेगी।
विभिन्न प्रतियोगिताओं के जरिए चयनित हुए नौकरशाहों और निजी क्षेत्र से आए नौकरशाहों के बीच एक शीतयुद्ध जैसी स्थिति बन सकती है जो शायद शासन-प्रशासन के संचालन में आगे चलकर बड़ी बाधा बने।
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विश्व में तमाम देशों में ऐसी व्यवस्था है कि जो पार्टी चुनाव जीतती है वे अपने नौकरशाह और टेक्नोक्रेट अपने साथ लेकर आती है और सरकार बदलने के बाद ये पूरी टीम उन्हीं के साथ वापस चली जाती है। यहां जो नियुक्तियां की जा रही हैं। उनका ऐसा कोई प्रारूप नहीं है। न ही हमारे यहां ऐसी कोई पंरपरा है। लेकिन नई सत्ता के साथ नई ब्यूरोक्रेसी आने की कोई परंपरा बनती है तो इसमें कोई एतराज भी नहीं हो सकता है बशर्ते नई टीम के लोग सरकार बदलने के साथ ही बदल जाए।
चलिए सबसे पहले उन नौ रत्नों की चर्चा करते हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने अपने सरकार को सुशोभित करने के लिए चुना है। सरकार द्वारा तैनात किए जाने वाले विशेषज्ञों में अंबर दुबे, बहुराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के साथ जुड़े हुए हैं। केपीएमजी में वह एयरोस्पेस और डिफेंस के प्रमुख हैं। सरकार द्वारा उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय में तैनात किया गयाा है। अंबर दुबे ने आइआइटी बॉम्बे व आइआइएम अहमदाबाद से पढ़ाई की है और उन्हें 26 वर्षों से ज्यादा का अनुभव है।
दूसरी विशेषज्ञ काकोली घोष है, जो फिलहाल कृषि के अलग-अलग क्षेत्र के लिए काम करने वाली एजेंसी से जुड़ी हुई हैं। उन्हें उनके अनुभव के अनुसार कृषि मंत्रालय में तैनात किया गया है। तीसरे विशेषज्ञ हैं सुजित कुमार बाजपेयी, जो कि राज्य द्वारा संचालित NHPC में कार्यरत हैं, उन्हें पर्यावरण मंत्रालय में संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया है।
रिन्यूएबल एनर्जी ग्रुप के सीईओ दिनेश दयानंद जगदले, न्यू और रिन्यूबल ऊर्जा मंत्रालय में तैनाती मिली है। इनके अलावा सौरभ मिश्रा को वित्तीय सेवा विभाग में संयुक्त सचिव, राजीव सक्सेना आर्थिक मामलों के विभाग में तैनात किए गए हैं। साथ ही अरुण गोयल को वाणिज्य मंत्रालय, सुमन प्रसाद सिंह को सड़क परिवहन मंत्रालय, भूषण कुमार को शिपिंग मंत्रालय में तैनात किया गया है।