जुबिली न्यूज़ डेस्क
लखनऊ. कोरोना महामारी का असर अब उत्तर प्रदेश की सेहत पर भी नज़र आने लगा है. अर्थव्यवस्था पर भी इस महामारी की मार पड़ी है. रोज़गार के अवसर घटे हैं. बेरोजगारी बढ़ी है. निर्माण कार्यों के लिए बजट की व्यवस्था भी चौपट होती नज़र आ रही है.
बड़ी परियोजनाओं को समय से पूरा करने के लिए निर्माण एजेंसियों को हालांकि सरकार हर दो महीने के अंतराल पर ज़रूरत भर राशि उपलब्ध करा रही है लेकिन सरकारी विभागों के रुटीन पर नज़र दौड़ाएं तो उपलब्ध धन को खर्च कर पाने में भी अधिकारियों का रवैया सुस्ती भरा है. धन मौजूद होने के बाद भी परियोजनाओं पर खर्च नहीं किया जाए तो ज़ाहिर है कि चोट तो अर्थव्यवस्था पर ही पहुंचेगी.
उत्तर प्रदेश के सहकारिता विभाग के पास वर्ष 2020-21 के लिए 257.69 करोड़ का बजट स्वीकृत था. धन भी था लेकिन यह विभाग अब तक सिर्फ 71.67 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया है. लघु उद्योग निर्यात प्रोत्साहन विभाग 278.83 करोड़ रुपये के बजट में से सिर्फ 120.43 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया है.
उत्तर प्रदेश के विभिन्न विभागों के कामकाज की बात करें तो अब तक बजट का कम से कम आधा पैसा खर्च हो जाना चाहिए था लेकिन सच बात यह है कि अब तक सिर्फ 23 फीसदी धन ही खर्च हो पाया है. इतना कम धन खर्च होने की वजह कहीं पर कोरोना महामारी की वजह से काम करने में आने वाली दिक्कतें हैं तो कहीं पर धन की कमी की समस्या भी है.
योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए पूंजीगत मदों के लिए 1.35 लाख करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी लेकिन सितम्बर महीने तक इसमें से सिर्फ 10.665 हज़ार करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए. पूंजीगत खर्च घटता है तो स्पष्ट रूप से इसका असर विकास के साथ-साथ रोज़गार पर भी पड़ता है. यह असर अब दिखने भी लगा है. रिज़र्व बैंक ने हालांकि राज्य सरकारों को कुछ शर्तों के साथ अतिरिक्त ऋण की छूट का फैसला भी किया था. धन की कमी है तो यूपी सरकार को इस दिशा में भी सोचना चाहिए.
सरकार को रिजर्व बैंक के इस फैसले का लाभ इसलिए उठाना चाहिए क्योंकि इस ऋण से अतिरिक्त बजट की व्यवस्था हो जायेगी. काम बढ़ेगा तो रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे. सरकार को यह बात इसलिए फ़ौरन सोचनी चाहिए क्योंकि रोज़गार के नए अवसर तैयार न होने की वजह से लोगों के मन में अनिश्चितता के भाव पैदा हो गए हैं. जिन लोगों के पास पैसा है वह भी उसे खर्च करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उन्हें अब यह भरोसा नहीं रहा है कि उनकी नौकरी बाकी रह जायेगी और हर महीने पैसा आता रहेगा. आदमी हाथ रोककर खर्च कर रहा है ताकि ज्यादा दिनों तक अपना खर्च चला सके. धन का सर्कुलेशन रुकेगा तो उसका असर भी अर्थव्यवस्था पर ही पड़ेगा.
उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना का कहना है कि राज्य की अर्थव्यवस्था पिछले साल सितम्बर की अपेक्षा इस साल बेहतर स्थिति में है. उन्होंने बताया कि इस साल अतिरिक्त राजस्व प्राप्तियों के अनुमान पर ही कई नई योजनाओं का सरकार ने एलान किया है. उनका कहना है कि पिछले छह महीने कोरोना की वजह से डिस्टर्ब रहे, इसी वजह से राजस्व वसूली में बुरा असर पड़ा. साथ ही कोरोना से निबटने में भी सरकार ने काफी धन खर्च किया. अतिरिक्त राजस्व पर ही सरकार की फिलहाल नज़र है क्योंकि बगैर बजट के योजनाओं को अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता.
आर्थिक मामलों के जानकार कहते हैं कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकार बकाया एरियर भुगतान पर लगी रोक हटा ले. दीवाली पर बोनस देने पर विचार करे. नौकरी पेशा लोगों के पास धन आएगा तो त्यौहार के मौसम में बाज़ार को लाभ होगा. बाज़ार में पैसा आएगा तो हालात बेहतर होने लगेंगे.
अर्थशास्त्री मनीष हिन्दवी का कहना है सरकारी विभागों में आमतौर पर हर साल ही बजट को पूरे साल खर्च नहीं किया जाता. मार्च में क्योंकि वित्त वर्ष कम्प्लीट हो जाता है इसलिए 15 मार्च से 31 मार्च के बीच बचा हुआ पूरा बजट खर्च कर दिया जाता है. क्योंकि उसके पीछे कमीशनखोरी का खेल भी होता है. इस साल मार्च में कोरोना अ गया. इस वजह से बजट का धन बचा रह गया.
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अर्थशास्त्री का कहना है कि सरकार मनरेगा को जब नौकरी मान ले रही है तो फिर रोज़गार का सृजन कैसे हो पायेगा. अब कुएं में भांग नहीं पड़ी है बल्कि भांग का कुआं तैयार हो गया है. बनी हुई सड़कों पर डामर बिछाने का काम पहले भी होता रहा है.