राजेश कुमार
सूबे का नियुक्ति विभाग जिसके पास शीर्ष अफसरशाही की तैनाती, दंड से लेकर तबादला तक का काम देखने का जिम्मा होता है, उसके कारनामे एक से बढ़कर एक हैं। पीसीएस अफसरों के आईएएस में प्रमोशन को लेकर इस विभाग पर उंगली खुद उन्हीं अफसरों द्वारा उठायी गई है, जिनका प्रमोशन होना था।
विधूना के एसडीएम के सस्पेंशन को करीब 4 महीने होने को हैं लेकिन कमिश्नर की जांच में आरोप सही नहीं पाए जाने के बाद भी अभी तक नियुक्ति विभाग कोई फैसला नहीं ले सका है। चुनावी अचार संहिता लागू होने पर आयोग द्वारा प्रेक्षक बनाये जाने के लिए अफसरों की मांग की गयी तो विभाग की नाकामी सामने आयी।
नियुक्ति विभाग ने सूची तो भेज दी लेकिन कुछ चीजों का ख्याल नहीं रखा। बाद में निलंबित और छुट्टी पर चल रहे अफसरों की जगह दूसरे अफसरों को नामित कर चुनाव आयोग से अनुमति हेतु भेजा। विभाग के मुखिया का एक फैसला और भी इस समय चर्चा में है, जो PCS अफसरों का स्टेबलिशमेंट एक IAS अफसर और IAS अफसरों का स्टेबलिशमेंट एक PCS अफसर को दिए जाने को लेकर है।
नियुक्ति विभाग सवालों के घेरे में
चुनाव आयोग को पहले प्रेक्षक हेतु भेजे गए नामों में संशोधन करते हुए शासन द्वारा निलंबित या छुट्टी पर चल रहे आईएएस अफसरों की जगह बतौर प्रेक्षक दूसरे नामों को भेजा गया। ऐसे में सवाल यह है कि सूची बनाते समय इन बातों का ख्याल क्यों नहीं रखा गया।
इसके अलावा इस बदलाव के सम्बन्ध में सूत्रों का कहना है कि अफसरों द्वारा अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए चुनावी ड्यूटी कटवायी गयी है। जिसमें नियुक्ति विभाग का भी योगदान रहा है। जिन अफसरों को बदला गया उसमें भर्ती में आरक्षण की काउंटिंग की गड़बड़ी के आरोप में निलंबित आईएएस शारदा सिंह के स्थान पर ओम प्रकाश राय को भेजा गया।
आईएएस राय इस समय अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। इसके अलावा छुट्टी पर गई श्रुति के स्थान पर अमित सिंह बंसल, नेहा प्रकाश के स्थान पर राकेश मिश्रा -II, नीना शर्मा की जगह सुशील पटेल, अनुराग यादव के स्थान पर रविशंकर गुप्ता, संदीप कौर की जगह राजेश राय, चन्द्र विजय सिंह की जगह उमेश प्रताप सिंह और डा. विभा चहल की जगह राजाराम को प्रेक्षक नियुक्त किया गया है।
जांच रिपोर्ट में बरी लेकिन नियुक्ति विभाग नहीं कर रहा बहाल
25 नवंबर को अयोध्या में धर्म संसद में भाग लेने जा रहे लोगों को धर्मसभा के नाम पर हुडदंग मचाने पर उपद्रवियों को टोकने को लेकर खफा सरकार ने औरैया की बिधूना तहसील के एसडीएम को सस्पेंड कर दिया था। इस मामले की जांच कमिश्नर कानपुर को सौंपी गयी थी, लेकिन 2015 बैच के पीसीएस अफसर प्रवेन्द्र कुमार को नियुक्ति विभाग के प्रकोप का सामना करना पड रहा है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कमिश्नर कानपुर की जांच में एसडीएम किसी भी तरह से दोषी नहीं पाए गए और जांच रिपोर्ट को शासन भेज दिया गया। फिलहाल एसडीएम के इस प्रकरण की फाईल नियुक्ति विभाग में पड़ी धूल फांक रही है। अब सस्पेंशन के करीब 4 माह होने के बाद भी नियुक्ति विभाग कोई फैसला नहीं ले सका है। वहीं, सीओ की जांच अभी प्रक्रिया में है और इसमें अभी तक जांच अधिकारी द्वारा किसी तरह का फैसला नहीं लिया जा सका है। इस तरह नियुक्ति विभाग देरी करके अलग से सजा देने का काम कर रहा है।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिना किसी गुनाह के ऐसे नये अफसरों के करियर के साथ इस तरह का खिलवाड़ कितना उचित है, जब वह निर्दोष हैं। योगी सरकार के इस अफसर को सस्पेंशन के फैसले ने, अखिलेश यादव सरकार में दुर्गाशक्ति नागपाल प्रकरण को ताजा कर दिया। तब यह कहा जा रहा था कि अखिलेश सरकार में जिस तरह से पीसीएस अफसर दुर्गाशक्ति नागपाल का निलंबन राजनीति था, इसी तरह योगिराज में 2015 बैच के पीसीएस अफसर प्रवेन्द्र कुमार का निलंबन भी राजनीति ही रहा था।
मुखिया द्वारा कार्यों का बंटवारा
नियुक्ति विभाग में कार्यरत अफसरों के बीच कार्य आवंटन भी इस समय खासा चर्चा में है। विभाग के मुखिया द्वारा PCS अफसरों का स्टेबलिशमेंट एक IAS अफसर को और IAS अफसरों का स्टेबलिशमेंट एक PCS अफसर को दिया गया है। फिलहाल पीसीएस अफसरों का स्टेबलिशमेंट 2011 बैच के प्रमोटी आईएएस अफसर संजय सिंह को दिया गया है जबकि आईएएस अफसरों के स्टेबलिशमेंट का काम 2000 बैच के पीसीएस अफसर धन्नजय शुक्ला देख रहे हैं। फिलहाल इस तैनाती को लेकर यह चर्चा है कि आखिर प्रमुख सचिव नियुक्ति आईएएस को पीसीएस का और पीसीएस को आईएएस का स्टेबलिशमेंट देकर क्या मेसेज देना चाहते हैं।
अफसरों के प्रमोशन में अड़ंगा अटकाने को लेकर भी चर्चा में
जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश का नियुक्ति विभाग 34 पीसीएस अफसरों के प्रमोशन में अड़चने पैदा करता रहा। जब मुख्यमंत्री के दबाव और कोर्ट के आदेश के बाद प्रमोशन में रोड़ा अटकाने वाले पीसीएस अफसर उदय राज सिंह को उत्तराखंड भेजा गया था, तब नियुक्ति विभाग द्वारा नया पेच सामने लाने से मामला लंबा खिंच जाने की आशंका जतायी गयी थी। नियुक्ति विभाग उस नियम का हवाला देकर 34 पीसीएस अफसरों का प्रमोशन टालने में लगा था, जो कि वर्षो पहले समाप्त हो चुका है।
बता दें कि मुलायम सिंह की सरकार में विशेष परिस्थितियों में विशेष प्रतिभा के धनी दूसरे विभागों के अधिकारियों को आईएएस में प्रमोशन दिए जाने का प्रावधान दिया गया था। इस आदेश को बाद में राजनाथ सिंह द्वारा समाप्त कर दिया गया था, जिसके बाद इस मसले को अवार्डी आईएएस अफसरों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया।
पीसीएस और अन्य अफसरों की करीब 8-9 साल चली एक लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने दूसरे संवर्ग के अफसरों के प्रमोशन के लिए 2% के निर्धारित कोटे को निरस्त करते हुए कहा कि विशेष परिस्थितियों में रिक्तियों के आधार पर नियुक्ति की जा सकती है, लेकिन पीसीएस संवर्ग के इतने अफसर प्रमोशन के लिए हो जाते हैं की रिक्तियां ही नहीं बचती है। ऐसे में जब रिक्तियां ही नहीं है तो नियुक्ति विभाग द्वारा इस आधार पर 34 पीसीएस अफसरों के प्रमोशन के मामले को लंबा खींचा जा सकता था। पूर्व में इस 2% कोटे से आईएएस बनने वाले अफसरों में इंद्रजीत वर्मा, देवदत्त शर्मा, रमाकांत शुक्ला, राकेश वर्मा रमेश यादव जैसे कुछ अफसर शामिल थे।