जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति रमेश यादव का कार्यकाल आज 30 जनवरी रात 12 बजे समाप्त हो रहा है। रमेश यादव की विदाई के साथ सभापति की कुर्सी को लेकर सियासी संग्राम शुरू हो गया है। विधानपरिषद में सदस्यों की संख्या के लिहाज से समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा दल है।
रमेश यादव सपा से ही एमएलसी थे। इसलिए सपा चाहती है कि सभापति का चुनाव हो और उस पर वह अपनी मर्जी का चेहरा चुन सके। वहीं, सत्तारुढ़ बीजेपी फिलहाल प्रोटेम स्पीकर के जरिए इस कुर्सी को अपने पाले में रखने की जुगत में है। इस मसले को लेकर सपा राजभवन जाने की तैयारी में है। बीजेपी ने प्रोटेम स्पीकर के लिए चार नामों का प्रस्ताव बनाकर राज्यपाल को भेजा है, जिसमें से एक नाम पर राज्यपाल अपना मुहर लगाएंगी।
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में अध्यक्ष और विधानपरिषद में सभापति चुनने की प्रक्रिया का संवैधानिक प्रावधान है। विधान परिषद में जब-जब सभापति का पद रिक्त होगा, तब-तब परिषद किसी अन्य सदस्य को सभापति चुनेगी। इसके अलावा सभापति और उपसभापति का पद रिक्त है तो राज्यपाल सभापति के कर्तव्य पालन के लिए किसी सदस्य को नियुक्त कर सकते हैं, जिसे प्रोटेम स्पीकर कहा जाता है।
अगर चुनाव होता है तो बीजेपी के दस विधायकों के पहुंचने के बाद भी सपा के पास अभी सदन मे अधिक विधायक हैं। बीजेपी को उच्च सदन में बहुमत स्थानीय निकाय क्षेत्र की 35 एमएलसी सीटों के चुनाव के बाद ही हासिल हो सकता है, जिसके लिए बीजेपी को इंतजार करना होगा। ऐसे में बीजेपी की कोशिश होगी कि फिलहाल किसी तरह से सभापति का चुनाव न हो और तब तक के लिए राज्यपाल से गैर सपा सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नामित कराया जाए। ऐसे में सभापति के पद पर बीजेपी और सपा के बीच जबरदस्त शह-मात का खेल होगा।
दूसरी ओर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि बीजेपी के पास विधान परिषद में न तो बहुमत है और न हीं वरिष्ठतम कार्यकाल का कोई सदस्य है। सपा ने सभापति का चुनाव करवाने की मांग की है। पार्टी राज्यपाल से मिलकर इस मुद्दे पर हस्तक्षेप की मांग करेगी।
एमएलसी व सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी ने कहा कि बीजेपा लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर रही है। सरकार अपना प्रोटेम स्पीकर थोपना चाहती है। सदन में हमारा बहुमत है। सभापति का चुनाव होना चाहिए।
गौरतलब है कि रमेश यादव का एमएलसी का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद सभापति की कुर्सी खाली हो गई है। सदन में कोई उपसभापति भी नहीं है। बीजेपी से पहले सपा-बीएसपी सरकारों ने भी उपसभापति के चुनाव से परहेज ही किया। आखिर बार उपसभापति के तौर पर कुंवर मानवेंद्र सिंह 6 अगस्त 2004 को चुने गए थे और 5 मई 2006 तक इस पद पर रहे थे।
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इससे पहले भी 14 साल तक कुर्सी खाली थी। नित्यानंद स्वामी 1992 में उपसभापति बने थे। फिलहाल, इस समय सदन के कार्यों के संचालन के लिए चेहरे का चयन जरूरी हो गया है। 18 फरवरी से बजट सत्र शुरू होगा।
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी फिलहाल प्रोटेम स्पीकर नामित कर सदन चलाने की तैयारी में है। बीजेपी का तर्क है कि प्रोटेम स्पीकर के जरिए सदन पहले भी चलता रहा है।
वरिष्ठतम सदस्य को सभापति बनाए जाने की बाध्यता नहीं है। नियमों में भी इसका उल्लेख नहीं है। पार्टी शिव प्रसाद गुप्ता, कुंवर मानवेंद्र सिंह सहित दूसरे नाम गिना रही है, जो वरिष्ठतम सदस्य न होते हुए भी स्पीकर बने थे।
सभापति का चुनाव राज्यपाल की ओर से तय तारीख पर होता है। अगर अभी चुनाव करवाया जाता है तो एसपी का पलड़ा भारी रहेगा। 100 सदस्यीय सदन में एसपी के पास 51 सदस्य हैं। बीजेपी के पास इस समय 32 सदस्य ही हैं।
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विधान परिषद में अल्पमत में होने के चलते सरकार को अपने कानून पास करवाने के लिए प्रभाव बनाए रखना जरूरी होता है। ऐसे में सभापति की भूमिका अहम हो जाती है। इसलिए, बीजेपी संख्या का खेल सधने तक प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करा संतुलन साधने के मूड में है।
विधान परिषद की निकाय कोटे के 36 सीटों का कार्यकाल अगले साल मार्च में समाप्त होगा। चूंकि, उस समय विधानसभा चुनाव भी होंगे, इसलिए एमएलसी की 36 सीटों पर चुनाव दिसंबर-जनवरी में हो जाएंगे। बीजेपी को उम्मीद है कि इन चुनावों में वह संख्या बल को बहुमत के पार ले जाने में सफल होगी और तब अपना सभापति बनाना आसान हो जाएगा।