उत्कर्ष सिन्हा
जिन दिनों यूपी में मानसून के आने का वक्त होगा उसी वक्त प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर में होने वाले लोकसभा उपचुनावों में सियासी गर्मी और तेज होने वाली है.
ये दोनों लोकसभा सीते सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के लिए नाक का सवाल बनी हुयी है. आजमगढ़ की सीट पर मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की सीट होने का ठप्पा लगा है तो जेल में लम्बा वक्त बिता कर आये आज़म खान के लिए रामपुर की सीट नाक का सवाल बनी हुयी है.
जैसे जैसे वोटिंग का दिन नजदीक आ रहा है दोनों दलों के शीर्ष नेताओं के दौरों की खबर भी आने लगी है.
आने वाली 17 और 18 जून की तारीख को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों लोकसभा क्षेत्रों में रोड शो करेंगे तो उसके फ़ौरन बाद ही सपा सुप्रीमो के कार्यक्रम भी इन इलाकों में होने तय हैं.
योगी के अलावा यूपी के दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के भी रोड शो दोनों जगहों पर होंगे.
रामपुर में योगी ने अपने वित्त मंत्री सुरेश खन्ना को प्रचार की कमान दे रखी हैं जहाँ उनके साथ पश्चिमी यूपी से आने वाले कई और मंत्री भी सहयोग कर रहे हैं तो दूसरे तरफ सपा की ओर से आज़म खान ने कमान सम्हाल रखी है.
आजमगढ़ में सपा ने धर्मेन्द्र यादव को उतारा है और पार्टी पूरी ताकत से उनके साथ लगी है. साथ ही साथ गठबंधन के नेता ओम प्रकाश राजभर भी धर्मेन्द्र यादव के साथ दिखाई दे रहे हैं. आजमगढ़ की सभी 10 विधान सभाओं पर महज 2 महीने पहले ही सपा ने कब्ज़ा किया था. भाजपा ने अपने प्रत्याशी भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ के लिए आजमगढ़ की कमान भी कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही को दे रखी है जहाँ उनके साथ पूर्वांचल के कुछ मंत्री भी जुटे हुए हैं.
यूपी के वर्तमान हालत को देखते हुए भाजपा सतर्कता भी बरत रही है. पार्टी ने अपने नेताओं को स्पष्ट आदेश दिया है की वे कोई भी ऐसा बयान न दें जिससे विवाद उत्पन्न हो और विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिले.
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हांलाकि रामपुर में आज़म खान खुद के उत्पीडन को बड़ा मुद्दा बनने में अब तक कामयाब होते दिखाई दे रहे हैं.
आजमगढ़ में अखिलेश यादव के लिए उनके चाचा शिवपाल यादव की बेरुखी मुश्किलें खड़ी कर रही है तो वहीँ बसपा सुप्रीमों मायावती ने मुस्लिम कार्ड खेल कर वोट सपा को कमजोर करने की रणनीति पर चल पडी हैं. भाजपा ने भी यादव प्रत्याशी उतार कर सपा के यादव मुस्लिम गंठजोड़ वाले वोटबैंक की ताकत को तोड़ने की निति पर काम किया है.
ऐसे में इन दोनों सीटो के चुनाव शुद्ध रूप से जातीय गोलबंदी और योगी सरकार के कामकाज पर रायशुमारी के तौर पर देखा जा सकता है.