जुबिली न्यूज ब्यूरो
प्रदेश में दवाओं की किल्लत न हो इसलिए सरकार ने उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन की स्थापना की थी , इसके जरिए यह उम्मीद की गई थी कि जिलों के अस्पतालों में दवाओं की सप्लाई अबाध गति से हो सके । लेकिन यह पूरा विभाग ही अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गया।
कार्पोरेशन में भ्रष्टाचार के किस्से आम होने लगे और यहाँ एक सिंडीकेट के वर्चस्व को ले कर भी कई खबरे आईं। हाल ही में घटिया पीपीई किट की सप्लाई में कार्पोरेशन की काफी भद पिट चुकी है ।
कार्पोरेशन की कार्यशैली इस बात से ही समझ लेनी चाहिए कि आवंटित बजट में से करीब 80 करोड़ रुपया 31 मार्च को सरेंडर कर दिया गया। जबकि यह पैसा यदि समय से खर्च हो जाता तो जिलों के अस्पतालों में दवाओं कि किल्लत नहीं होने पाती । कई जिलों ने इसके लिये कार्पोरेशन के अधिकारियों को पत्र भी लिखा लेकिन आवश्यक दवाओं की सप्लाई नहीं की गई।
क्या है पूरा मामला
वित्तीय वर्ष 2019-20 में महानिदेशक,चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने ग्राण्ट 32 और 36 का औषधि एवं रसायन तथा उपकरण मद में मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन को कुल पांच सौ करोड़ छियासी लाख सत्ताइस हजार चार सौ अठारह रूपये का आवंटन किया था।
इस बजट में से अस्सी करोड़ सोलह लाख तिरपन हजार आठ सौ पचहत्तर रूपये कार्पोरेशन ने ठीक 31 मार्च को सरेण्डर कर दिया।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि मार्च के शुरुआत में स्वास्थ्य विभाग के कुछ जिम्मेदारों ने यह प्रस्ताव भी दिया था कि यदि दवाओं की केन्द्रीकृत खरीद नहीं हो पा रही है तो सभी जिलों में कुछ राशियों का आवंटन कर दिया जाना चाहिए मगर उच्च स्तर पर यह निर्णय नहीं हो सका ।
कई जिलों में मलेरिया के प्रकोप के समय भी डिमाण्ड के बाद भी कार्पोरेशन दवाओं की आपूर्ति नहीं कर पाया था। मार्च महीने में ही करोना के संक्रमण के फैलाव के बाद ही अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो जानी चाहिए थी लेकिन उसके बजाए अस्सी करोड़ से अधिक पैसे के समर्पण से स्वास्थ्य विभाग में रोष व्याप्त है ।
बड़ी विडम्बना यह भी है कि जिला अस्पतालों मे़ कोरोना संक्रमण का बेहतर उपचार न देने के लिये जिलों के सीएमओ और सीएमएस दण्डित हो रहे हैं, लेकिन कार्पोरेशन के अधिकारी जो दवाओं और आवश्यक सामग्रियां जिलों को नहीं दे पा रहे हैं या फिर घटिया दे रहे हैं, तो उन्हें शासन सुरक्षा कवच दे रहा है।
नए वित्तीय वर्ष में मिला है सात अरब रूपये का बजट
वित्तीय वर्ष 2020-21 में उप्र मेडिकल सप्लाईज कार्पोरेशन को सात अरब चौदह करोड़ बानबे लाख रूपये का बजट आवंटित किया गया है।
शासन ने दिनांक 7अप्रैल के शासनादेश में वित्तीय वर्ष 2020-21 में अनुदान संख्या 32और 36 के कुल आवंटन का अस्सी प्रतिशत ही उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन को देने की स्वीकति प्रदान की थी,शेष बीस प्रतिशत धनराशि स्थानीय क्रय के लिये रखना था। लेकिन कार्पोरेशन के अस्सी करोड़ से अधिक बजट सरेण्डर करने के बाद भी महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवायें के द्वारा ग्रामीण मद का पूरा सौ प्रतिशत बजट,सात अरब चौदह करोड़ बानबे लाख रूपये उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन को ट्रांसफर कर दिया गया। जबकि वर्ष 2019-20 में भी अस्सी प्रतिशत ही धनराशि कार्पोरेशन को दी गयी थी उसमें से भी अस्सी करोड़ कार्पोरेशन खर्च ही नहीं कर पाया।
यह भी पढ़ें : यूपी मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन का मकड़जाल: दवाओं की सप्लाई करने में विफल
बिना स्पष्ट आदेश के अफसरों ने दे दिया पूरा पैसा
शासन के निर्देश के विरूद्ध जा कर एक अरब बयालिस करोड़ अट्ठानबे लाख चालीस हजार रूपये अधिक कार्पोरेशन को देने आदेश वित्त नियंत्रक ने कैसे दे दिया ,यह जांच का विषय है।लेकिन कोरोना के इस संकट काल में जिलों में ग्रामीण अस्पतालों में दवा के मद में बजट न देना जिलों के सीएमओ को परेशानी में डालने वाला जरूर है।
जानकारों का कहना है कि नियमानुसार वित्तीय वर्ष के बाद उप्र मेडिकल सप्लाईज कार्पोरेशन के कार्यों की समीक्षा की जानी चाहिये थी कि दवाओं और स्वास्थ्य सम्बन्धी सामग्रियों के क्रय, आपूर्ति और उनकी गुणवत्ता मेनटेन करने में कार्पोरेशन कितना सफल रहा। अब तक न केवल कार्पोरेशन पूरा बजट खर्च करने में असफल रहा, बल्कि महामारी के समय भी घटिया दवा और पीपीई किट की सप्लाई की, खराब इन्फ्रारेड थर्मामीटर भेजे , यहाँ तक कि खरीद के टेण्डर भी सही समय पर नहीं हो पाया । दवाओं को रखने के लिए जो वेयर हाउस किराए पर लिए गए वे भी मानकों के विपरीत थे। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि इन सभी बिंदुओं पर समीक्षा नहीं हुई ।
शासन ने दिनांक 7अप्रैल के शासनादेश में वित्तीय वर्ष 2020-21 में अनुदान संख्या 32और 36 के कुल आवंटन का अस्सी प्रतिशत ही उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन को देने की स्वीकति प्रदान की थी,शेष बीस प्रतिशत धनराशि स्थानीय क्रय के लिये रखना था। लेकिन कार्पोरेशन के अस्सी करोड़ से अधिक बजट सरेण्डर करने के बाद भी महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवायें के द्वारा ग्रामीण मद का पूरा सौ प्रतिशत बजट,सात अरब चौदह करोड़ बानबे लाख रूपये उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन को ट्रांसफर कर दिया गया।जबकि वर्ष 2019-20 में भी अस्सी प्रतिशत ही धनराशि कार्पोरेशन को दी गयी थी उसमें से भी अस्सी करोड़ कार्पोरेशन खर्च ही नहीं कर पाया।
कार्यप्रणाली पर है प्रश्नचिह्न
प्रदेश में औषधियों एवं उपकरणों व स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाओं के क्रय हेतु,मेडिकल सप्लाईज कार्पोरेशन लि० की स्थापना शासनादेश सं०-1981/पांच-1-2016-5 (36)/2017,दिनांक 03-10-2017 द्वारा की गयी है। इसके अनुसार औषधियों का क्रय उप्र मेडिकल सप्लाईज कार्पोरेशन लि0 द्वारा किया जायेगा। कार्पोरेशन एशिंसियल ड्रग की प्रदेश के जिलों में पर्याप्त मात्रा में डिमाण्ड लेकर समुचित आपूर्ति बनाये रखेगा।
पहले स्वास्थ्य महानिदेशालय के सीएमएसडी से जारी रेट कान्ट्रैक्ट की दरों पर जिलों के अधिकारी कुछ दवाओं की खरीद करते थे और कुछ दवायें और सामग्रियां महानिदेशालय स्तर पर क्रय किया जाता था।
लेकिन कार्पोरेशन ने बिना डिमाण्ड के अनावश्यक खरीद भी की और कई बार घटिया दवाओं की खरीद का मामला भी सामने आया। इन सबके बीच जिला अस्पतालों में आवश्यक दवाओं का लगभग टोटा पड़ गया।
यह भी तथ्य है कि जबसे कार्पोरेशन ने दवा की खरीद शुरू की है प्रदेश के अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी देखी जा रही है, जो दवायें सप्लाई भी हो रही हैं उनमें बहुत सी बिना डिमाण्ड के और अधोमानक हैं ।