जुबिली न्यूज ब्यूरो
उत्तर प्रदेश के कई जिलों में डेंगू और मलेरिया ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। बदायूं और बरेली जनपद के कई ब्लाक में मलेरिया का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ गया है। लेकिन जनपदों में दवाओं की सप्लाई में यूपी मेडिकल सप्लाई कॉर्पोरेशन फिसड्डी साबित होता जा रहा है।
जनपद के मझगवां, बिशारतगंज, देवरनिया, आंवला, रामनगर, भमौरा, क्यारा जैसे कई ब्लॉकों में मलेरिया बुखार ने भयावह रूप धारण कर लिया है। अकेले बरेली जनपद में जांच में मलेरिया के 20000 मरीज मिल चुके हैं।
चिकित्साधिकारियों के अनुसार लगभग 20,000 ही रोगी मिलने की संभावना है, लेकिन जिलों में दवाओं की सप्लाई के लिए बनाया गया कॉर्पोरेशन मलेरिया की दवाओं की सप्लाई नहीं कर पा रहा है। सूत्रों के अनुसार, गांवों मे मच्छरों को मारने की जिस दवा का छिड़काव हर साल किया जाता है, सुस्त कारपोरेशन अब तक उसकी भी सप्लाई नहीं कर पाया है।
बता दें कि पहले छिड़काव के लिए मैलाथियान, टैबीफास, पायराथ्रिम महामारी फैलने से पहले ही सप्लाई कर दी जाती थी। लेकिन कछुए की चाल चल रहा कॉर्पोरेशन अभी तक कोई उचित कदम नहीं उठा पाया है।
जानकारी के अनुसार, साल के शुरू में प्राइमर 7.5 एमजी की डेढ़ लाख गोली सप्लाई की गई थी। इसके बाद कोई भी दवा सप्लाई नहीं की जा रही है, जबकि मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के स्तर से मलेरिया रोगियों की बढ़ती संख्या को देखते हए चिकित्सा स्वास्थ्य और मेडिकल कॉरपोरेशन के उच्चाधिकारियों को मलेरिया की दवायें उपलब्ध कराने के लिये कई बार पत्र लिखा जा चुका है। लेकिन जिम्मेदारों द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गयी।
चिकित्साधिकारियों के अनुसार मलेरिया बुखार के उपचार के लिए क्लोरोक्विन 250 ,एसीटी 50,100,150, 200 एमजी की जरूरत होती है। एक मरीज को 28 गोली प्राइमाक्विन 2.50,7.50,15 एमजी दी जाती है और एक मरीज को एक बार में चौदह दिन की दवा दिये जाने का आदेश है।
अकेले बरेली जनपद में पांच लाख प्राइमाक्विन की डिमाण्ड है। भारत सरकार की नेशनल मलेरिया ड्रग पॉलिसी 2013 एनवीबीडीसीपी के अनुसार आयु वर्ग वार प्लाज्मोडियम बाइवेक्स के केसेज पीवी के शेड्यूल का चार्ट देखा जा सकता है ।
चार्ट के अनुसार दवाओं की सप्लाई अत्यधिक मात्रा में की जानी आवश्यक है। जिलों की को दवाओं की सप्लाई करने में कॉर्पोरेशन सफल नहीं हो पा रहा है। मलेरिया की बढ़ती महामारी को रोकने के लिये सरकार के लाख प्रयास के बाद भी अधिकारी, दवाओं की आपूर्ति न होने से असहाय हैं।
इसी तरह से महामारी की तरह फैल रही डायबिटीज की दवा मेटफार्मिन, ग्लिमप्राइड, ब्लड प्रेशर की लोसार्टन, एटीनाल, हार्ट की दवा नाइट्रोकान्टिन, मोनोट्रेट, मेटाप्रोलाल, आईवी फ्लूड की भी जनपद के अस्पतालों में खूब किल्लत बनी हुई है।
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सांस के रोगियों की दवा टैब.इटोफाईलिन प्लस थियोफाईलिन,बच्चों के लिए सबसे महत्व की सीरप मेट्रोनिडाजाल, खुजली की दवा बीबी लोशन अस्पतालों में है नहीं। जब इतनी आवश्यक और पापुलर दवायें मरीज को उपलब्ध ही नहीं हो रही तो फिर कॉर्पोरेशन के गठन पर सवालिया निशान लगने स्वाभाविक है।
मेडिकल कॉर्पोरेशन का गठन जिले एवं स्वास्थ्य निदेशालय में बजट देने, दवाओं की खरीद में हो रही कमीशन खोरी को रोकने और दवाओं की कमी न होने देने के लिए किया गया था, लेकिन भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों से सेटिंग करके वही लोग जो पहले जनपदों में दवाओं की सप्लाई किया करते थे। उन्हीं का कारपोरेशन में भी वर्चस्व हो गया।
सूत्रों का कहना है कि जरूरत कि दवाओं की बजाय ज्यादा कमीशन वाली उन दवाओं की सप्लाई की जा रही है, जिनकी जरूरत या तो है ही नहीं या फिर कम है। भ्रष्टाचार के इस गोरखधंधे का धीरे-धीरे केन्द्रीयकरण भी होता जा रहा है। सरकार लगातार घोषणाएं कर खुद की पीठ भले ही थप-थपा ले, मगर असल में स्वास्थ्य महकमे में भ्रष्टाचार के कीटाणु लगातार पनप रहे हैं।
सूबे में स्वस्थ महकमे के नए मुखिया कैबिनेट मंत्री जय प्रताप सिंह इस मामले का कब संज्ञान लेंगे, ये तो भविष्य के गर्भ में है, मगर इतना तो तय ही है कि अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो बीमार मरीजों की तादाद भी बढ़ती रहेगी और प्रदेश का स्वास्थ्य स्तर बद्तर होता जायेगा।
(कॉर्पोरेशन में दवा दलालों की घुसपैठ और भ्रष्टाचार की कहानी आगे की किस्त में जारी रहेगी)