नवेद शिकोह
उत्तर प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव बसपा बिना किसी गठबंधन के अकेले लड़ेगी। पार्टी सुप्रीमों मायावती ने जब ये बात स्पष्ट की तो सुरागकशी करने वालों का शक और भी गहरा गया।
चुनाव तो सारे विपक्षी मुख्यतः सत्तारूढ़ पार्टी से ही लड़ते हैं, तो फिर बहन जी भाजपा के बजाय सपा पर ही आक्रामक क्यों हैं ? भाजपा के खिलाफ बसपा ताल ठोकती नज़र क्यों नहीं आ रही ?
भाजपा से गठबंधन भी नहीं होना है तो क्या भाजपा-बसपा में अप्रत्यक्ष गठबंधन यानी फ्रेंडली फाइट होगी ! इस तरह के कयास यूपी की सियासत की एक नए तस्वीर पेश कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा 144 सीटें बसपा को देगी, इसपर भाजपा के डमी केंडिडेट खड़े होंगे और बसपा को वोट ट्रांसफर करने की कोशिश की जाएगी।
इन 144 बसपा उम्मीदवारों में कुछ भाजपा के रिकमेंड किए हुए भाजपाई भी होंगे। बसपा अपने इन 144 सीटों पर पूरा जोर लगाएगी जबकि अन्य सीटों पर वो भाजपा से नहीं लड़ेगी बल्कि सपा को कमजोर करेगी।
इस तरह की चर्चाएं करने वालों का तर्क है कि दोनों के इस अघोषित गठबंधन के बाद यदि भाजपा को सरकार बनाने में संख्या बल की जरूरत पड़ती है तो बसपा के समर्थन से भाजपा आसानी से सरकार बना लेगी।
इसके एवज़ में बसपा सरकार में शामिल नहीं होगी। क्योंकि सब जानते हैं कि बसपा का किसी भी दल के साथ गठबंधन या साझेदारी में सरकार बनाने का कोई भी अनुभव अच्छा नहीं रहा।
इसलिए सरकार मे साझेदारी के बिना भाजपा समय आने पर बसपा सुप्रीमों मायावती को राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनवा सकती है। ऐसे अनुमान और कहानियां उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल को आए दिन एक नई स्क्रिप्ट दे रही हैं।
कयास और कल्पनाएं स्वतंत्र होती हैं, इनपर पहरे नहीं बैठाए जा सकते। जनता और नेता के बीच रिश्ता जुमलों की डोर से जुड़ा रहता है।
पहले नेता ही जनता पर सच्चे-झूठे जुमलों का जादू चलाते थे पर अब चुनावी समर में जनता भी नेताओं को कयासों और कल्पनाओं के जुमलों से हिला देती है। सोशल मीडिया आम जनता की ताकत ही नहीं दिल और दिमाग का पारदर्शी रूप भी बन गई है।
यूपी विधानसभा चुनाव का चुनावी वर्ष नई-नई वास्तविक या काल्पिनिक कहानियों से दिलचस्प होगा इसके संकेत मिलने लगे हैं।
चार मे से तीन बड़े दलों ने किसी हद तक अपने पत्ते खोल दिए हैं लेकिन बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का एलान और और सत्तारूढ़ भाजपा के बजाय सपा पर हमलावर होना ऐसे कयासों को बल दे रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)