जुबिली न्यूज डेस्क
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियां अभी से शुरू हो गई है। राजनीतिक दलों ने सिसायी समीकरण बनाना शुरू कर दिया है। मिशन यूपी 2022 की अभियान की शुरूआत के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह से सपा प्रमुख अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ को चुना है। ओवैसी के पूर्वांचल के दौरे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भी मौजूद रहेंगे।
हालांकि, ओवैसी पूर्वांचल के इस दौर में कोई सभा नहीं करेंगे, लेकिन वाराणसी के बाबतपुर एयरपोर्ट से आजमगढ़ जाने के लिए जिस तरह से जौनपुर का रास्ता चुना है, उसके पीछे AIMIM की सियासी मंशा साफ झलक रही है।
बिहार चुनाव की तर्ज पर छोटे दल यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में जातीय गणित को सुलझाने की कोशिश में हैं। यही वजह है कि ओमप्रकाश राजभर की अगुवाई में भागीदारी संकल्प मोर्चा में कई दलों के जुड़ने के बाद अब ओवैसी पूर्वांचल की सियासी तपिश नापने वाराणसी से जौनपुर, दीदारगंज, माहुल, आजमगढ़ होकर फूलपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ संवाद करेंगे।
वाराणसी से जौनपुर के रास्ते आजमगढ़ जाने का जो रास्ता ओवैसी ने चुना है, वो पूरी तरह से यादव और मुस्लिम बहुल माना जाता है। ओवैसी का इस दौरान पार्टी कार्यकर्ता जगह-जगह उनका स्वागत करेंगे और माना जा रहा है कि दोपहर में जोहर की नमाज वह जौनपुर के मशहूर गुरैनी मदरसे की मस्जिद में पढ़ेंगे। ऐसे में जाहिर है कि नमाज के वक्त लोगों की भीड़ को राजनीतिक लिहाज से भी साधने से ओवैसी नहीं चूकेंगे।
एआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने बताया कि पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए असदुद्दीन ओवैसी आजमगढ़ आ रहे हैं। इसीलिए कोई रैली और जनसभा नहीं रखी गई है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता रास्ते में जगह-जगह उनका स्वागत करेंगे।
उन्होंने बताया कि गुरैनी मदरसा के साथ-साथ मदरसा बैतुल उलूम सरायमीर जाएंगे, वह मदरसे के नाजिमे आला मुफ्ती अहमदुल्लाह फूलपुरी से मुलाकात करेंगे। मदरसे में चाय पियेंगे और साथ ही असर की नमाज भी पढ़ेंगे। इस दौरान ओमप्रकाश राजभर साथ रहेंगे।
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दिलचस्प बात यह है कि ओवैसी पूर्वांचल दौरे के लिए जिस समय वाराणसी एयरपोर्ट पर उतरेंगे, उसी बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी लैंड करेंगे। खास बात यह कि अखिलेश यादव भी जौनपुर जिले में रहेंगे।
ओवैसी जौनपुर जिले से गुजर रहेंगे तो महज 40 किलोमीटर दूर निगोह स्थित श्रीराम डिग्री कॉलेज में सपा के पूर्व कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव की जयंती समारोह में लोगों को संबोधित कर रहेंगे. इस तरह से दोनों पार्टियां अपनी-अपनी सियासी ताकत जरूर दिखाने की कोशिश करेंगी। इस दौरे से भविष्य की सियासत के साथ कई नए संकेत भी दे सकते हैं।
ओवैसी बिहार के बाद अब यूपी के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर चुकी है. पिछले महीने लखनऊ में ओम प्रकाश राजभर और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की मुलाकात हुई थी, जिसके बाद साफ हो गया था कि दोनों पार्टियां यूपी में एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरेंगी।
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राजभर यूपी में छोटे दलों को मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाने में जुटे हैं, जिनमें पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की जन अधिकार पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्रीय उदय पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी और प्रेमचन्द प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी शामिल है। इसके अलावा ओवैसी की AIMIM की एंट्री हुई है। ओवैसी ने लखनऊ में इस बात को स्वीकार भी किया था।
असदुद्दीन ओवैसी के साथ ओम प्रकाश राजभर के पूर्वांचल के एक दिवसीय दौरे को आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में जातीय गणित को सुलझाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। आजमगढ़ में मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी संख्या में है और राजभर समुदाय के वोट भी निर्णायक भूमिका में हैं। यही वजह रही कि ओवैसी ने यूपी में अपनी पार्टी की कमान शौकत अली को दे रखी है, जो आजमगढ़ के माहुल कस्बे के रहने वाले हैं तो गठबंधन के लिए राजभर से हाथ मिलाया है।
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ओवैसी की यूपी दस्तक से सबसे बड़ी चिंता सपा जैसी पार्टी के लिए बढ़ गई है, जो पिछले दो दशकों से ज्यादा समय से मुस्लिम मतों के बल पर सत्ता में आती रही है। बिहार में ओवैसी की पार्टी ने जिस तरह से मुस्लिम बहुल इलाके में पांच सीटें जीती हैं, उसे देखते हुए और यूपी में AIMIM की बढ़ती सक्रियता से खुद को सेकुलर कहने वाली पार्टियों को अब यह डर सताने लगा है कि सूबे के मुस्लिम समुदाय का झुकाव कहीं ओवैसी की एआईएमआईएम की तरफ हुआ तो उनकी सियासत खतरे में आ सकती है।
ऐसा होने पर सबसे अधिक नुकसान सपा को हो सकता है, क्योंकि सूबे में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 20 फीसदी है, जो अभी तक मुख्य रूप से सपा के साथ है, लेकिन ओवैसी जिस तरह से अखिलेश यादव के गढ़ से बिगुल फूंकने जा रहे हैं, उसके चलते आगे भी जबरदस्त सियासी घमासान देखने को मिलेगा।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ओवैसी के यूपी में चुनाव लड़ने से सपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, क्योंकि यहां पर सपा को हर पार्टियों की अपेक्षा मुस्लिम मतदाताओं का करीब 50 से 60 प्रतिशत वोट मिलता रहा है, ऐसे में ओवैसी जातीय समीकरण के साथ मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं, चाहे कांग्रेस हो या बसपा अब आम आदमी पार्टी भी मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए भाजपा पर हमला करते हैं।
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अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो सीधा नुकसान सपा को होगा, ऐसे में सपा को अपना मुस्लिम वोट बैंक बचाने के लिए रणनीति पर बदलाव करना होगा, भाजपा को बस थोड़ा बहुत राजभर वोटों का नुकसान हो सकता है, लेकिन ओवैसी की मौजूदगी से विपक्ष के वोटों में बिखराव से उसकी भरपाई हो जाएगी।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र दुबे कहते हैं कि एआईएमआईएम ओवैसी की पार्टी सपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है, क्योंकि वो सपा के वोट बैंक पर डायरेक्ट सेंधमारी कर सकती है। अगर ओवैसी की पार्टी विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से उतरी तो धुव्रीकरण होगा जिसका लाभ भाजपा को होगा।
उदाहरण बिहार का विधानसभा चुनाव और हैदराबाद नगर-निगम चुनाव है. यही नहीं, यूपी का इतिहास देखा जाए तो जब-जब सपा ने अपने को मुस्लिम वोटों का हितैषी बन चुनाव लड़ा है तब-तब भाजपा को फायदा मिला है। चाहे 2017 का चुनाव हो, चाहे 1991 का चुनाव रहा हो।
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ऐसे में धुव्रीकरण होता है, जिसमें हिन्दुओं के एकजुट होने की संभावना रहती है, जिसका भाजपा प्रचार करती रही है। इससे ओवैसी सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इसके लिए सपा को रणनीति बदलनी होगी। भाजपा को फायदा दिख रहा है। ओवैसी एक प्रखर वक्ता हैं। मुस्लिमों के लिए खुलकर बात रखतें है। जबसे भाजपा सत्ता में आयी है तब से सपा मुस्लिमों को लुभाने में पीछे रही है। बैकफुट में इसलिए भी है कि उनके बड़े नेता आजम खान जेल में हैं। ओवैसी की पार्टी से सपा को ज्यादा खतरा है।