जुबिली न्यूज डेस्क
36 साल पहले आज ही के दिन 1984 में दो दिसंबर की रात को भोपाल में मौत ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उसके जख्म नहीं भर सके. इस घटना ने पूरी व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी थी। पूरी मानवता को भोपाल गैस त्रासदी ने कहां से कहां पहुंचा दिया था। ये हादसा पूरी दुनिया के लिए एक सबक बन गया।
त्रासदी को बीते 36 साल हो गए है लेकिन आज भी सरकार पीड़ितों के दर्द पर मरहम नहीं लगा पाई है। पीड़ित मुआवजे समेत बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। इस बीच मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान ने हादसे में अपना कुछ गवां चुके लोगों को 1000 रुपए पेंशन देने की बात दोहराई है।
सीएम शिवराज ने कहा कि जो गैस पीड़ित भाई-बहन बचे हैं उनकी ज़िंदगी कैसे गुजरी हम जानते हैं। मेरी वो विधवा बहनें जिनका सबकुछ त्रासदी में चला गया उनकी 1000 रु. की पेंशन जो 2019 में बंद कर दी गई थी दोबारा शुरू की जाएगी ताकि अंतिम समय उनका ऐसे संकटों से न गुज़रे।
बता दें कि ये घटना भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड के कारखाने में जहरीली गैस रिसाव से हुई थी। इससे समूचे शहर में मौत का तांडव मच गया था। हादसा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के पेस्टिसाइड प्लांट में गैस रिसने से हुआ था।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस लापरवाही की वजह से 5 लाख 58 हजार 125 लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस और दूसरे जहरीले रसायनों के रिसाव की चपेट में आ गए। इस हादसे में तकरीबन 25 हजार लोगों की जान गई।
इस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड के मुख्य प्रबंध अधिकारी वॉरेन एंडरसन रातो-रात भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका रवाना हो गए थे। घटना ने न सिर्फ उस पूरी नस्ल को बल्कि आने वाली नस्ल को भी बर्बाद कर दिया।
त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। ये भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और प्रभावित इलाकों में कई बच्चे असामान्यताओं के साथ पैदा होते रहे हैं।
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7 जून, 2010 को आए स्थानीय अदालत के फैसले में आरोपियों को सिर्फ दो-दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सभी आरोपी जमानत पर रिहा भी कर दिए गए।
बता दें कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन मुखिया और इस त्रासदी के मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन की भी मौत 29 सिंतबर 2014 को हुई।
गैस पीड़ितों के हितों के लिए पिछले तीन दशक से अधिक समय से काम करने वाले भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार की भी इसी साल मौत हो गई। अपनी मौत से कुछ ही दिन पहले उन्होंने कहा कि हादसे के 34 साल बाद भी न तो मध्य प्रदेश और न ही केन्द्र सरकार ने इसके नतीजों और प्रभावों का कोई आकलन करने की कोशिश की।
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उनका कहना था कि 14-15 फरवरी 1989 को केन्द्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम का हरेक गैस प्रभावित को पांचवें हिस्से से भी कम मिल पाया है।
नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है। जब्बार के अनुसार समझौते के तहत मृतकों और घायलों की संख्या बहुत कम दिखाई गई है।