शबाहत हुसैन विजेता
दवा खरीदने के लिये मेडिकल स्टोर पर गया। इस मेडिकल स्टोर के एक हिस्से में स्किन स्पेशलिस्ट डाक्टर का चैम्बर भी है। नेमप्लेट के साथ ही लिखा है कंसल्टेशन फीस 300 रुपये। उस मेडिकल स्टोर के मालिक के हाथ से लेकर सर तक में सफ़ेद दाग थे। सफ़ेद दाग अब बहुत आम बीमारी हो चुकी है लेकिन स्किन स्पेशलिस्ट के चैम्बर के बाहर दवाओं के साथ बैठे शख्स के हाथ में सफ़ेद दाग देखकर अजीब सा लगा।
दवा खरीदकर घर आ गया। इस बात को दो दिन बीत गए हैं लेकिन डाक्टर की नेमप्लेट, उनका स्पेशलाईज़ेशन और दवाओं के बीच बैठे शख्स के जिस्म पर मौजूद सफ़ेद दाग नजरों से ओझल नहीं हो रहे हैं।
करीब बीस साल पहले एक पुलिस अधिकारी की पत्नी अपने एक रिश्तेदार के साथ भाग गई थी। यह पुलिस अधिकारी बहुत तेज़ तर्रार माने जाते थे। उनके छोटे-छोटे बच्चे थे। पत्नी के भाग जाने से मिली बदनामी के बावजूद इस पुलिस अधिकारी ने अपने बच्चो के भविष्य को देखते हुए अपनी पत्नी को माफ़ करते हुए उसे वापस लाने की खूब कोशिशें की थीं। वह उस घर तक गए जहाँ उनकी पत्नी रह रही थीं लेकिन उनकी पत्नी ने घर वापस आने से साफ़ इनकार कर दिया था।
अपने मासूम बच्चो का ज़िक्र भी उन्हें वापस नहीं ला सका। जिसका ज़िक्र सुनकर बड़े-बड़े बदमाश अपना रास्ता बदल लेते थे वह अपनी बीवी की बेवफाई का जवाब नहीं दे पाया था। इस पुलिस अधिकारी के बच्चे अब बड़े हो चुके हैं। बेटी की शादी भी हो गई है। उनकी वर्दी पर अभी भी शिकन नहीं दिखती लेकिन आँखों का वह रौब न जाने कहाँ खो चुका है।
लखनऊ में एक शख्स ने कुछ दशक पहले एक स्कूल खोला था। जब यह स्कूल खुला था तब पहले साल उसमें सिर्फ पांच बच्चो का एडमिशन हुआ था। इस शख्स ने दावा किया था कि आने वाले वक्त में उसके स्कूल का नाम लिए बगैर लखनऊ की एजूकेशन पर बात नहीं हो पायेगी। वक्त के साथ यह स्कूल तरक्की करता गया।
एक के बाद दूसरी ब्रांच खुलती गईं। जिस स्कूल के टीचर्स शहर की कालोनियों में घूमकर बच्चे तलाशते थे उसमें एडमिशन मिलना मुश्किल होता गया। सबसे ज्यादा स्टूडेंट वाले स्कूल की शक्ल में इस स्कूल का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ।
स्कूल की शानदार बिल्डिंग्स इसके बड़े होने का अहसास कराती हैं। स्कूल प्रबंधन बहुत सी बातों में सरकारी ऑर्डर्स को भी मानने से इनकार कर देता है। स्कूल का मीडिया मैनेजमेंट भी शानदार रहता है। इस स्कूल के मालिक पति-पत्नी आज भी ज़मीन पर बिस्तर बिछाकर सोते हैं और दुनिया के सबसे बड़े स्कूल के मालिक होकर भी अपने स्कूल के मुख्यालय में क्लर्कों के बीच ही बैठते हैं।
उनका अपना अलग चैम्बर नहीं है। ऐसे आदर्श की तस्वीर पेश करने वाले इस स्कूल मालिक की पत्नी ने 15-16 साल पहले अपने पति पर तमाम इलज़ाम लगाते हुए एक प्रेस नोट जारी कर दिया। स्कूल के पीआरओ हर अखबार के दफ्तर में घूम-घूमकर उस प्रेस नोट को न छापने और वापस कर देने के लिए हाथ जोड़ते रहे।
शाहजहांपुर की ऑफिसर्स कालोनी में एक इंजीनियर रहते थे। पति-पत्नी दोनों अच्छी कद-काठी के थे। उनका लॉन करीने से सेट रहता था, उनका ड्राइंग रूम हर वक्त सजा रहता था। उनकी गाड़ी पर कभी धूल का कड़ भी नहीं दिखता था।
ऑफिस से लौटने के बाद पति-पत्नी लॉन में बैठकर चाय पीते और रात में खाना खाकर सड़क पर टहलते थे तो कालोनी का सबसे अच्छा कपल लगते थे। हर किसी की निगाह उन्हीं पर टिकी रहती थी। कुछ दिन बाद पति-पत्नी में झगड़ा होने लगा। आये दिन घर से चीख-पुकार की आवाज़ बाहर आती थी।
अब उन्होंने लॉन में बैठना और सड़क पर टहलना छोड़ दिया था। बीच-बीच में पति-पत्नी गाड़ी में बैठकर घर से निकलते थे लेकिन अब लोगों ने उनकी तरफ देखना बंद कर दिया था। मेरे फादर का लखनऊ ट्रांसफर हो गया तो हम लोगों ने ऑफिसर्स कालोनी वाला मकान छोड़ दिया और लखनऊ चले आये।
कई साल बाद पता चला कि एक रात पति-पत्नी में खूब मारपीट हुई। रात-भर घर से चीख-पुकार की आवाज़ आती रही। सुबह सन्नाटा हो गया। शाम तक जब घर का दरवाज़ा नहीं खुला तो पड़ोसियों ने जाकर देखा। दोनों ने पंखे से लटक कर जान दे दी थी।
जिस दौर में लखनऊ की जेल आतंक का गढ़ मानी जाती थी। बड़े माफियाओं की धमक और कई जेल अधिकारियों की हत्या के बाद इस जेल का चार्ज कोई अधीक्षक लेने को तैयार नहीं था तब यहाँ का चार्ज एक युवा जेल अधीक्षक ने संभाला था। वह बहुत जांबाज़ थे और ज़्यादातर अपनी गाड़ी से जेल आते थे।
उन्होंने किसी भी माफिया के सामने न झुकने का एलान कर दिया था। उनके घर पर बम से हमला किया गया लेकिन उन्होंने इसकी एफआईआर भी नहीं कराई थी। समाजवादी पार्टी ने जेल भरो आन्दोलन चलाया और मुलायम सिंह यादव गिरफ्तार होकर लखनऊ जेल पहुंचे।
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जेल पहुंचकर मुलायम सिंह ने जेल अधीक्षक से नहाने की इच्छा जताई। जेल अधीक्षक ने अपने कमरे का बाथरूम दिखाया लेकिन वह मुलायम सिंह को पसंद नहीं आया। जेल अधीक्षक ने पूछा कि मेरे घर पर नहायेंगे क्या? मुलायम तैयार हो गए। अधीक्षक ने जेल के अन्दर अपनी कार मंगवाई और उसमें मुलायम सिंह को बिठाकर अपने घर चले गए। मुलायम सिंह यादव वहीं नहाये और चाय पीकर उन्हीं के घर सो गए। इधर जेल से मुलायम सिंह के गायब हो जाने से प्रशासनिक अमले में हड़कम्प मच गया। बड़े-बड़े अधिकारी जेल पहुँच गए।
अधीक्षक भी जेल में मौजूद नहीं थे। उनके घर अधिकारी पहुंचे तो मुलायम सिंह यादव वहां सोते हुए मिले। उसी रात जेल अधीक्षक के निलंबन का आदेश टाइप हो गया। मुलायम सिंह यादव ने अधीक्षक से कहा कि अगर तुम्हारी नौकरी जायेगी तो जीवन भर तुम्हारा वेतन मैं दूंगा। बाद में वह निलंबित नहीं हुए क्योंकि कोई वहां आने को तैयार नहीं था और वह बहुत अच्छे प्रशासक माने जाते थे।
यह जेल अधीक्षक व्यक्तिगत तौर पर मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे। तमाम मुद्दों पर वह मेरी राय लेते थे और उन पर अमल भी करते थे। लखनऊ पोस्टिंग के दौरान डीआईजी और जेल मंत्री को उन्होंने जेल से इसलिए बेइज्जत कर बाहर निकाल दिया था क्योंकि वह एक माफिया सरगना के साथ अधीक्षक के कक्ष में पार्टी कर रहे थे। जेल को शानदार तरीके से चलाने वाले जेल अधीक्षक का घर में पत्नी से किसी बात को लेकर विवाद हुआ।
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पत्नी ने नाराज़ होकर ज़हर खा लिया। इस घटना से उन्हें लगा कि जिस जेल में उनकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता उसमें उन्हें पत्नी की मौत के बाद कैदी के रूप में रहना पड़ेगा। उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए मिले रिवाल्वर से पहले दो गोलियां पत्नी पर चलाईं फिर खुद को गोली मार ली।
ज़िन्दगी ने ऐसी बहुत सी तस्वीरें दिखाई हैं जो चराग तले अँधेरा की कहावत को जिन्दा करती हैं। ज़िन्दगी के रंग इसी माहौल से पैदा होते हैं। आज हफ़ीज़ किदवई ने लिखा कि मैं दफ्न नहीं होऊँगा, मुझे बोया जायेगा। अपनी कब्र से कोपल की तरह मैं फूटूँगा। एक बड़ा पेड़ बनूँगा, फिर उसमें मेरे जैसे बहुत से हफ़ीज़ पैदा होंगे। मैं सलाम करता हूँ ऐसी सोच को जो मौत को भी इतने पोजिटिव तरीके से लेता है लेकिन क्या करूं उस डाक्टर का जो जहाँ बैठता है वहां बैठे मरीज़ को नहीं देख पाता।
क्या करूं उस पुलिस अधिकारी का जो गुंडों से निबटते-निबटते अपनी बीवी का ही ख्याल नहीं रख पाया। कैसे समझाऊँ उस स्कूल मालिक को जो दुनिया का सबसे बड़ा स्कूल बनाकर भी अपने घर में सुख का संसार नहीं बसा पाया। उस इंजीनियर और उसकी पत्नी के सुसाइड को कैसे आसानी से सुसाइड मान लूं जिसने खुद अपने आशियाने में आग लगा ली और कैसे वापस ले आऊँ अपने उस दोस्त जेल अधीक्षक को जो अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाने के बजाय रिवाल्वर निकाल लाया।
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कब्र में बीज की शक्ल में जाने के लिए ज़िन्दगी को बाहर से नहीं भीतर से भी मथना पड़ता है। मथे हुए बीज अंकुरित होकर पेड़ बन जाते हैं और बगैर कोशिश मिट्टी में दबाये गए बीज मिट्टी में ही सड़ जाते हैं।