जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ. कर्मचारी संगठन कई वर्षों से पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग कर रहे थे मगर भारी लागत और सरकारों की उपेक्षा ने इस मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. बीते करोना काल और पिछले तीन-चार वर्षों में आई भयानक आर्थिक मंदी और बेरोजगारी के कारण पेंशन एक महत्वपूर्ण सोशल सिक्योरिटी के रूप में सामने आयी, क्योंकि बाजार के मौजूदा उलटफेर और अविश्वसनीयता ने नई पेंशन स्कीम से कर्मचारियों का मोहभंग कर दिया.
माहौल में गर्मी तब आई जब मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी गठबंधन ने ‘सरकार’ बनने पर ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का वायदा कर दिया. उनके इस वायदे पर पहले तो सरकार समर्थक कर्मचारियों ने इसे भ्रामक और नामुमकिन कह कर टाला मगर अखिलेश यादव के दावा करने और केरल- बंगाल जैसे राज्यों में यह लागू होने के कारण सैकड़ों कर्मचारी संगठनों, शिक्षकों, सुरक्षाबलों ने जैसे एक अभियान सा शुरू कर दिया.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब अखिलेश के समर्थन में उत्तर प्रदेश आईं और उधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ट्वीट जिसमें कहा गया कि विपक्ष उत्तर प्रदेश को केरल बंगाल बनाना चाहता है, के बाद दफ्तरों में और किस्से शुरू हो गये कि केरल- बंगाल तो बनाना ही है जिससे सभी कर्मचारियों को पेंशन मिल सके.
ओल्ड पेंशन स्कीम का कार्ड समाजवादी पार्टी के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो रहा है क्योंकि आखिरी चार चरणों में सबसे ज्यादा कर्मचारी, शिक्षकों आदि की संख्या है, एक तो यह मध्यवर्गीय वर्ग है जो सबसे ज्यादा माहौल बनाता है दूसरी ओर यह माना जाता है यह भारतीय जनता पार्टी का परंपरागत वोटर है. मगर इस दांव से ये वर्ग अपने वर्गीय हितों के लिए सपा सरकार बनाने को सक्रिय हो गया है. इसकी एक वजह पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पुरानी विश्वसनीयता भी है.
समाजवादी पार्टी के विधायक एवं पूर्व मंत्री नरेन्द्र वर्मा ने तो अपनी पेंशन तक इसी मुद्दे पर छोड़ दी कि अगर प्रदेश के कर्मचारियों को पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी तो हम अपनी पेंशन कैसे ले सकते हैं.
सपा से पूर्व सांसद लोकसभा एवं राज्यसभा उदय प्रताप सिंह ने पहल करके इस महत्वपूर्ण मांग को न केवल पार्टी और जनता के बीच अहम कड़ी के रूप में महसूस किया वहीं मज़दूर संवाद यात्रा निकालकर मज़दूरों कर्मचारियों के सवालों को सपा के घोषणा पत्र में शामिल करवाने वाले विधायक शशांक यादव आदि के प्रयासों से अब पुरानी पेंशन का मुद्दा प्रदेश में एक अंडर करेंट बनता जा रहा है. इस मुद्दे को समाजवादी सांस्कृतिक मंच के संयोजक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर की संपर्क टीम ने इसे एक बड़े नेटवर्क में जन मुद्दे में बदल दिया है.
असर यह हुआ की विभिन्न शिक्षक -कर्मचारी संगठन उत्साहित होकर I Support OPS के बैज और स्टिकर लगाकर कार्यालयों से घरों तक संपर्क कर रहे हैं. चिकित्सा स्वास्थ्य महासंघ के प्रधान महासचिव अशोक कुमार ने बताया कि यह कर्मचारियों के लिए अभी या कभी नहीं की स्थिति है. हमारी साफ डिमांड है कि सभी लोकतंत्र का सम्मान करें, परन्तु वोट देने से पहले विचार करें जो पुरानी पेंशन बहाली एवं निजीकरण / प्राइवेटाइजेशन बंद करने की बात करेगा वही प्रदेश में राज करेगा.
हमारा महंगाई भत्ता जनवरी 2020 से जुलाई 2021 तक रोका गया. 22 अगस्त 2019 से परिवार कल्याण भत्ता रोका गया. पहली अप्रैल 2020 नगर प्रतिकर भत्ता रोका गया. इसके अतिरिक्त कई और भत्ते रोके गये. 25 फीसदी चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग में प्रोत्साहन धनराशि केवल तीन माह के लिए मिलना था परन्तु नहीं मिला. पुरानी पेंशन भी अप्रैल 2004 में रोकी गयी इसलिए अब ये ठान लिया गया है कि जो भी सरकार ये पूरा करेगी हम उसके साथ हैं.
विजय कुमार बंधु, प्रदेश अध्यक्ष अटेवा कहते हैं कि विधायक नरेंद्र वर्मा ने अपनी पेंशन छोड़कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है. देश के पहले विधायक हैं जिन्होंने इतना साहसिक निर्णय लिया है. अटेवा NMOPS इसकी सराहना करता है और नयी सरकार जो आएगी वो पुरानी पेंशन बहाली के ऐतिहासिक निर्णय लेगी. जो पूरे देश के लिए नजीर होगी. देश भर के शिक्षक कर्मचारी उत्तर प्रदेश चुनाव को लेकर आशान्वित हैं.
हालांकि इस दबाव को देखते हुए बसपा ने भी पेंशन की घोषणा की है मगर चुनाव में इस मुद्दे पर भाजपा की चुप्पी और समाजवादी गठबंधन का इसे प्रमुख वायदे के रूप में उठाना पूरे कर्मचारी शिक्षक वर्ग और उनके परिवारों को विपक्ष की ओर देखने को मजबूर कर रहा है और जमीन पर इसका असर अब साफ दिखने लगा है.
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