जुबिली न्यूज डेस्क
आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। काफी समय से महंगाई की मार से जनता कराह रही है और अब सरकार ने बिजली बचाने के लिए सड़क की लाइट तक बंद करने फैसला लिया है।
विदेशी मुद्रा भंडार में आई कमी और ईंधन समेत खाने पीने के सामान के दाम श्रीलंगा में सातवें आसमान पर पहुंच गए हैं। श्रीलंका दशकों बाद इस तरह के आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
अब हालत यह है कि बिजली बचाने के लिए सड़कों की बत्तियां बंद करने का फैसला लिया गया है। यही नहीं गुरुवार को श्रीलंका के मुख्य शेयर बाजार में ट्रेडिंग भी रोक दी गई।
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2.2 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका के लिए बढ़ती महंगाई बड़ी मुसीबत बन चुकी है और बिजली कटौती से जनता का जीना दूभर हो गया है।
श्रीलंका के पास ईंधन के आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है।
बिजली मंत्री पवित्रा वन्नियाराची ने कहा, “हमने पहले ही अधिकारियों को देश भर में सड़कों की बत्तियां बंद कर बिजली बचाने में मदद करने का निर्देश दे दिया है।”
दरअसल आवश्यक वस्तुओं की कमी और बढ़ती कीमतों से परेशान जनता का दर्द बिजली कटौती ने और बढ़ा दिया है।
खाद्य मुद्रास्फीति रिकॉर्ड स्तर
गुरुवार को श्रीलंका के सांख्यिकी विभाग ने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति मार्च में एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 18.7 फीसदी पर पहुंच गई है।
मार्च में खाद्य मुद्रास्फीति 30.2 फीसदी तक पहुंच गई, जो आंशिक रूप से मुद्रा अवमूल्यन और पिछले साल रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध से ऐसा हुआ, जिसे बाद में उलट दिया गया था।
फर्स्ट कैपिटल रिसर्च के शोध प्रमुख दिमंथा मैथ्यू के अनुसार, “श्रीलंका एक दशक से अधिक समय में मुद्रास्फीति इतना खराब स्तर अनुभव कर रहा है।”
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बिजली मंत्री वन्नियाराची ने कहा है कि भारत से 50 करोड़ डॉलर क्रेडिट लाइन की मदद के तहत डीजल शिपमेंट शनिवार तक आने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि इससे हालात सुधरने की उम्मीद नहीं है।
पवित्रा वन्नियाराची ने कहा, “एक बार इसके आने के बाद हम लोड शेडिंग के घंटों को कम करने में सक्षम होंगे, लेकिन जब तक बारिश नहीं होती है, शायद मई में कुछ समय के लिए बिजली कटौती जारी रखनी होगी। हम और कुछ नहीं कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि पनबिजली परियोजनाओं को चलाने वाले जलाश्यों में जल स्तर रिकॉर्ड स्तर पर गिर गया है, जबकि गर्म, शुष्क मौसम के दौरान मांग रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है।
फरवरी तक श्रीलंका के पास 2.31 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, जिसके बाद सरकार को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, भारत और चीन समेत अन्य देशों से मदद लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।