जुबिली न्यूज डेस्क
दुनियाभर की सरकारों से संयुक्त राष्ट्र ने आग्रह किया है कि कृषि सब्सिडी के मुद्दे पर ज्यादा उग्र सुधारवादी तरीके से सोचा जाए।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कृषि सब्सिडी में बड़े बदलावों की जरूरत बताई है। यूएन का कहना है कि कृषि सब्सिडी पर दोबारा सोचे जाने की जरूरत है।
यूएन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि 80 फीसदी से अधिक सरकारी अनुदान या तो कीमतों को प्रभावित करता है, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है या असमानता बढ़ाता है।
मंगलवार को यूएन ने कृषि सब्सिडी की व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव की जरूरत बताते हुए एक रिपोर्ट जारी की है। कृषि सब्सिडी एक तरह का सरकारी खर्च है जो किसानों की मदद के लिए विभिन्न देश करते हैं।
यूएन ने अनुमान जताया है कि आने वाले सालों में यह खर्च बेतहाशा बढ़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों ने दुनियाभर की सरकारों से आग्रह किया कि अपने कृषि क्षेत्र की मदद के लिए किए जा रहे खर्चों का पुनर्गठन करें।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के अलग-अलग देश सालाना कुल मलाकर लगभग 540 अरब डॉलर सब्सिडी पर खर्च करते हैं। इसमें से करीब 470 अरब डॉलर को पुनर्गठित किए जाने की जरूरत है ताकि कृषि क्षेत्र को ज्यादा स्थिर, पर्यावरण के अनुकूल और न्यापूर्ण बनाया जा सके।
विश्व खाद्य और कृषि संगठन के महानिदेशक कू डोंग्यू ने कहा कि यह रिपोर्ट सरकारों के लिए चेतावनी जैसी है। तुरंत कदम उठाने की जरूरत बताते हुए डोंग्यू ने कहा कि इससे चार चीजें बेहतर होंगी-पोषण, उत्पादन, पर्यावरण और जीवन।
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सब्सिडी समाप्त न करो, बदलो ‘अरबों डॉलर का मौका’ नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट को अगले हफ्ते होने वाले यूएन के खाद्य व्यवस्था सम्मेलन से ठीक पहले सार्वजनिक किया गया है।
इस स्टडी के लिए यूएन के पर्यावरण कार्यक्रम और विकास कार्यक्रम ने मिलकर कराया है। रिपोर्ट के लेखकों ने जोर देकर कहा कि वे सब्सिडी खत्म करने की बात नहीं कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी खत्म करने की जगह हम कृषि उत्पादकों को मिलने वाली मदद की पुनर्योजना की बात कर रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल जहां भी सब्सिडी दी जा रही हैं, उनमें से अधिकतर या तो कीमतों में राहत के रूप में दी जा रही है या फिर आयात-निर्यात पर कर के रूप में। कुछ जगहों पर किसी खास उत्पाद या फसल को बढ़ावा देने के लिए भी धन से मदद की जा रही है।