अभिषेक श्रीवास्तव
दस दिन बाहर रह के लौटा तो पहले चौराहा चक्रमण में ही पंडीजी दिख गए। दाढ़ी बेतरतीब बढ़ी हुई। आंखों के नीचे काले गड्ढे। कोटरों में पुतलियां कुछ धंसी हुई सी। चेहरे पर सन्नाटा।
क्या हालचाल महराज? जय श्रीराम भइया- हमेशा की तरह सधा हुआ सीधा जवाब आया। मैंने भी हमेशा की तरह लैंगिक संतुलन बैठाते हुए जय सियाराम कहा। उन्होंने हमेशा की तरह मेरे इस पलट अभिवादन का जवाब मुस्करा कर दिया।
मेरा और उनका यह राड़ा बहुत पुराना है। बहुत पुराना मने जितनी पुरानी यह सरकार है। उसके पहले वे गुडमॉर्निंग आदि भी बोला करते थे। फिर एक दिन उन्हें अहसास हुआ कि यह ईसाइयों की करामात है। और वे जय श्रीराम बोलने लगे।
मैंने भी उनके हिसाब से खुद को इम्प्रोवाइज़ किया और उन्हें लैंगिक संतुलन की घुट्टी पिलायी। वे सैद्धांतिक रूप से सहमत तो हुए, लेकिन अपनी लाइन छोड़ने को तैयार नहीं हुए। तब से हम एक-दूसरे से मिलने पर यही कहते आए हैं।
अभिवादन के बाद मैंने पूछा कि चेहरे पर बड़ी थकान नज़र आ रही है, कोई अनिष्ट तो नहीं…। ना ना ना… वे तुरंत इनकार करते हुए चूंना लगा हाथ माथे पर धरकर कहते भये, ”दरअसल इस बार मैंने बहुत लोड ले लिया। पहली बार चला गया कांवड़ लेकर। फिर तीन रात से घूम घूम के अखंड रामायण पढ़ रहा हूं। इसीलिए थका लग रहा हूं, हालांकि…।”
मैं कथा के मोड में आ चुका था लेकिन उन्होंने ब्रेक मार दिया। मिनट भर पान लगाने के बाद उन्होंने सिर उठाया, ”अगले सोमवार कुछ होने वाला है क्या?” इस सवाल से मैं थोड़ा सहम गया। मैंने कहा- “महराज, होने को मंगलवार को भी होने वाला है और इतवार को भी। ये सोमवार का विशेष अभिप्राय क्या है?” इतना सुनते ही वे प्रुफल्लित भये और बालसुलभ खिलखिलाहट में ह ह ह करते हुए बोले, ”नहीं, वो सावन चल रहा है न! मोदीजी ने सावन के पहले सोमवार को चंद्रयान छोड़ा, दूसरे को तीन तलाक निपटा दिया। शुक्लाजी कह रहे थे कि इस बार का सावन बड़ा शुभ है। आखिरी सोमवार तक कुछ न कुछ बड़ा होगा, इसीलिए पूछे…।”
अबकी वाकई सहमने वाली बात कह दी थी उन्होंने। मेरा तो ध्यान ही नहीं गया था कि ये सावन क्या-क्या लेकर आया है।
आज जब राज्यसभा में सुबह उठते ही अध्यक्षजी को बोलते देखा, तो पंडीजी याद आए। आज भी सोमवार ही है। सावन का तीसरा सोमवार। और कश्मीर के टुकड़े-टुकड़े हो चुके हैं। अभी एक और सोमवार बाकी है। सावन खत्म होने में अभी पूरे दस दिन बाकी है। जाने क्या-क्या बरसे!
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कुछ बातें वाकई समझ से बाहर होती हैं। जैसे पंडीजी की बात। उस दिन मैंने उनकी बात को अगर सीरियसली ले लिया होता तो भविष्यद्रष्टा बन जाता या बाकी पत्रकारों पर लीड ले सकता था।
जनता को बेवकूफ समझने के अपने ख़तरे हैं। पढ़ा-लिखा आदमी इसकी कीमत चुकाता है। अब कौन से विज्ञान से इसकी व्याख्या की जा सकती है कि सरकार ने सावन के महीने में लगातार तीन सोमवार अपने तीन अहम एजेंडे निपटा दिए? दुनिया का कौन सा समाजशास्त्री या राजनीति विज्ञानी इस पर प्रकाश डालेगा?
इन्हीं सब घटनाओं से जनता में मेरा भरोसा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। अभी पिछले सोमवार को मैंने एक कवि की चिंता पर चिंता जतायी थी जिसने सरकार से दुखी होकर कविता कहानी के खत्म होने की मुनादी कर दी थी। वह कवि जनता में नहीं जाता होगा, इतना पक्का है। अगर वो जाता, तो इतना दुखी नहीं होता।
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आज सुबह से ऐसे ही विद्वानों के दुख भरे मैसेज आ रहे हैं कि लोकतंत्र खत्म हो गया। उन्हें पता ही नहीं है कि जनता ने आज की घोषणा को लोकतंत्र की मज़बूती और देश की अखंडता के साथ जोड़कर और उसमें सावन के सोमवार का तड़का लगा कर पूरे प्रकरण को आध्यात्मिक बना डाला है। उसकी उम्मीदें परवान पर हैं और अगले सोमवार उसे राम मंदिर दिखायी दे रहा है।
जनता जो देखती है, बुद्धिजीवी उसका उलट देखता है। इस अवैज्ञानिक सूत्र में हालांकि मुझे मौजूदा ताकतवर सरकार के लिए कुछ खतरे दिख रहे हैं। मैं देशभक्त आदमी हूं इसलिए मालिकान को आगाह करना मेरा कर्तव्य है।
भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर, कॉमन सिविल कोड और 370 से अपनी राजनीति शुरू की थी। तीन तलाक और 370 तकरीबन निपट गए हैं। मान लीजिए कि मेनिफेस्टो के तीन मुद्दों में से डेढ़ हल हो गए हैं, डेढ़ बाकी हैं। अगर बाकी डेढ़ भी निपट गए तो जनता भाजपा को किस बात का वोट देगी? और सबसे अहम ये कि भाजपा किस मुद्दे पर जनता से वोट मांगेगी? क्या जनता ये तीनों वादे पूरे करने के एवज में भाजपा को हमेशा के लिए राजकाज सौंप देगी?
मैंने पंडीजी से नंबर लेकर शुक्लाजी से संपर्क किया तो एक चौंकाने वाली बात सामने आयी। आज के फैसले का शुभ लग्न केवल 9 अगस्त तक कायम है। उसके बाद भारी संकट है। शुक्लाजी के मुताबिक देश का सत्ता कारक ग्रह राहु के नक्षत्र में होने के कारण स्वार्थ की राजनीति का संकेत दे रहा है। लग्न भाव का स्वामी चंद्र भी राहु के नक्षत्र में है। दोनों का राहु में होना इनके फलों को दूषित कर रहा है। ऐसे में कश्मीर में शांति स्थापित करना आसान काम नहीं है।
शुक्लाजी के मुताबिक मंगल नीचस्थ है और शत्रु भाव पर अपनी चतुर्थ दृष्टि बनाए हुए है, लेकिन यह अवस्था 9 अगस्त को समाप्त हो रही है। यानी सरकार के लिए प्रतिकूल स्थितियां चार दिन बाद पैदा हो सकती हैं। कुल मिलाकर यह कि कश्मीर राज्य की कुंडली- जो कि कर्क लग्न और कुम्भ राशि की है- उसके मुताबिक आज का फैसला दोषपूर्ण और अशुभ है। भले सावन के सोमवार को लिया गया हो।
शुक्लाजी की यह व्याख्या जाकर मैंने पंडीजी को बतायी। वे बिफर गए। बोले- ”शुक्लवा फ्रॉड है।” हमने पूछा- ”महराज, आप तो शुक्लाजी का ही हवाला देकर सावन के सोमवार का महात्म्य बखान रहे थे। फिर उन्हीं का तो बताया मैं दोहरा रहा हूं।”
पंडीजी अब आधिकारिक लाइन पर आ गए- ”देखिए, राष्ट्रहित के खिलाफ कोई भी जाए, उक्ला हो चाहे शुक्ला, सब गलत है। जो राष्ट्रहित में है, वही सही है।”
और राष्ट्रहित में क्या है? मैंने पूछा। वे बोले- ”यही, कि आखिरी सोमवार तक मोदीजी राम मंदिर का भी काम निपटा दें।”
मैं चलने को हुआ, तो हमेशा की तरह वे टोक कर बोले- ”भइया, आप बुरा तो नहीं माने?” मैंने कहा- ”हमें तो सोमवार से विशेष प्रेम है। अगले हफ्ते का मसाला फिर मिल जाएगा लिखने को। महादेव…।”
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
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