Saturday - 26 October 2024 - 3:10 PM

बड़े विभागों के लिए दबाव बना रहे हैं ‘महाराज’

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क 

शिवराज कैबिनेट का विस्तार सरकार गठन के बाद से ही उलझा हुआ था। तीन महीने तक माथापच्ची के बाद 2 जुलाई को कैबिनेट का विस्तार हो गया था। अब विभाग बंटवारे को लेकर हर गुट में संघर्ष जारी है। कैबिनेट विस्तार के बाद भोपाल में इसे लेकर 2 दिनों तक कोई बात नहीं बनी, तो सीएम शिवराज सिंह चौहान रविवार की सुबह दिल्ली चले गए हैं। अब दिल्ली में ही फैसला होगा कि किसे कौन सा विभाग मिले।

दरअसल, 2 जुलाई को शिवराज कैबिनेट में 28 नए लोग शामिल हुए हैं। शपथ के 3 दिन बाद भी उन्हें विभाग आवंटित नहीं हुआ है। राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के 12 लोगों ने कैबिनेट में शामिल होकर पहली जीत हासिल कर ली है। अभ प्रभावी विभागों की मांग को लेकर सरकार पर दबाव है।

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वहीं, संगठन की अलग चाहत है। ऐसे में सभी चीजों को सुलझाने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान केंद्रीय नेतृत्व के पास गए हैं। मंत्रियों को विभाग आवंटित करने में तीन जगहों से पेंच फंसा हुआ है। एक शिवराज सिंह चौहान के लोग, सिंधिया की टीम और केंद्रीय नेतृत्व का पसंद है। ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ही फैसला करेगा कि किसे कौन सा विभाग दिया जाए।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया की शिवराज कैबिनेट में 41 फीसदी हिस्सेदारी हैं। ऐसे में उनकी नजर अब प्रभावी विभागों पर है। उनकी चाहत है कि उनके लोगों को अब मलाईदार विभाग मिले। खास कर वो विभाग को कांग्रेस की सरकार में उनके पास था।

बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा कि यह कोई बड्डा मुद्दा नहीं है। मंत्रियों की दक्षता के अनुसार विभाग वितरण को लेकर चर्चा चल रही है। कुछ महत्वपूर्ण विभागों को सीएम के पास रखा जाना है। जल्द ही आम सहमति के बाद इस पर निर्णय हो जाएगा।

सीएम शिवराज सिंह चौहान इसे सुलझाने के लिए आज दिल्ली जा सकते हैं। अपने दिल्ली दौरे के दौरान वह केंद्रीय नेताओं, ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय मंत्रियों से विकास योजनाओं को लेकर भी मिल सकते हैं।

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सूत्रों के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया सभी पुराने विभाग अपने पास रखना चाहते हैं। जिसमें परिवहन और राजस्व शामिल हैं। वहीं, सिंधिया के खास तुलसी सिलावट अभी सरकार में जल संसाधन मंत्री हैं। कमलनाथ की सरकार में वह स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं, अभी स्वास्थ्य मंत्रालय नरोत्तम मिश्रा के पास है।

वहीं, सिंधिया के समर्थक मंत्री इमरती देवी ने कहा कि बीजेपी के लिए काम करना उनके लिए किसी भी बेशकीमती विभाग से ज्यादा महत्वपूर्ण है। मैं किसी भी विभाग से खुश हूं। मुझे पार्टी और जनता के लिए काम करना है। सिंधिया जी जो भी फैसला करेंगे, मैं स्वीकार करूंगा। मैंने महिला और बाल कल्याण मंत्री के रूप में काम किया था और अपने काम के लिए पुरस्कार भी जीता। कोई विवाद नहीं है।

सूत्रों के अनुसार केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश इकाई को स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी सिंधिया और उनके समर्थकों के कारण एमपी में सत्ता में वापस आ गई है, इसलिए बर्थ और पोर्टफोलियो के वितरण में कोई समझौता नहीं हो सकता है।

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सूत्रों के अनुसार सिंधिया अपने वफादारों पुराने विभागों के साथ ही कुछ और बड़े विभाग मांग रहे हैं। स्वास्थ्य, परिवहन, राजस्व, स्कूल शिक्षा, खाद्य और नागरिक आपूर्ति, श्रम और डब्ल्यूसीडी है। इसके साथ ही वह गृह मंत्रालय भी मांग रहे हैं, क्योकि कानून की दृष्टि से ग्वालियर-चबंल संभाग एक संवेदनशील क्षेत्र है। इसके साथ ही समान्य प्रशासन, उर्जा, वाणिज्य कर, खनन और शहरी विकास भी चाहते हैं।

वहीं, विभाग बंटवारे में फंसे पेंच को लेकर कांग्रेस ने तंज कसा है। कांग्रेस प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व एमपी में सरकार चला रहा है। मंत्रिमंडल का गठन और विभागों के वितरण सीएम के विशेषाधिकार हैं। लेकिन बीजेपी को क्या हुआ। दिल्ली से मंत्रियों का फैसला किया गया था और अब केंद्र से भी पोर्टफोलियो आएंगे। सिंधिया के पार्टी में शामिल होने के बाद, नई सरकार को चलाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है।

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